सोमवार, 5 सितंबर 2022

हम सब एक हैं

 

सतीश जी बता रहे थे कि उनकी  कल  एक बेहद घनिष्ट एवं एक कट्टर हिंदूवादी मित्र से धर्म पर ही चर्चा हो रही थी.

इधर मुझे भी लगा कि ये ज्ञान और विज्ञान कि चर्चा का रसास्वादन हम सब भी लें ।

और, चर्चा के दौरान कुमार सतीश जी ने उन मित्र को  बताया कि... हम सब स्वयंभू मनु की संतान हैं यार..
इसीलिए, हम सब एक हैं.

इस पर वो आश्चर्य से मुँह खोलते हुए बोला कि....
तो, इसका मतलब तो फिर ये हुआ कि हम सब भाई-बहन हुए .

तो, क्या हम सब आपस में भाई-बहन में ही शादी कर लेते हैं ??? 😲

उन्ही के शब्दों में -

उसकी ऐसी मासूमियत को देख मुझे जोर की हंसी आ गई..

लेकिन, ये सवाल सिर्फ मेरे मित्र का ही नहीं है बल्कि बहुत सारे हिन्दू इस बात पर कंफ्यूज होते हैं कि जब हम एक ही ओरिजिन (मनु-सतरूपा) से आये हैं तो इस लिहाज से हम सब आपस में भाई-बहन कैसे नहीं हुए ??

और, अगर ऐसा है तो फिर अपने ही भाई-बहन में शादी कैसे हो सकती है ???

लेकिन, इसका जबाब बहुत ही आसान है एवं इसका जबाब हमारी ही परंपराओं तथा मान्यताओं में छुपा हुआ है.

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि...  हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है.....
अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि.... आखिर ऐसा क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????

असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं ....
बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया में छुपा विज्ञान है.

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......

एक स्त्री में गुणसूत्र XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है.

इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है.

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.

और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है....  या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि....  Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके ""पति के गोत्र से जोड़ दिया"" जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यही है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है.....
क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी.....  यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.

और.... मुल्लों के जन्मजात अज्ञानी अल्पबुद्धि होने का भी यही प्रमुख कारण है.... क्योंकि, वे अपनी माँ, बहन, मौसी और चाची तक से बच्चा पैदा करने में गुरेज नहीं करते.

खैर...... मलेछों की चर्चा छोड़कर.... अपने गोत्र सिस्टम को आगे बढ़ाते हैं...

जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो....  वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर....  यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....
और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".

लेकिन.....  यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं....
अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.

अब सबसे महत्वपूर्ण बात कि... फिर, ""कन्यादान का रहस्य"" क्या है ???

तो, कन्यादान का रहस्य ये है कि....
माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...

बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि...
दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए.

पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में माता के वे डीएनए रहेंगे ही,
इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.

शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.

क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!

और चूंकि.....  कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए,  हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.

आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

शायद अब आप समझ गए होंगे कि शादी के समय हमारे सनातन हिन्दू धर्म सात पुश्तों तक की बात क्यों की जाती है ???

और, सात पुश्तों के बाद उन्हें अलग क्यों मान लिया जाता है.

सात पुश्तों के बाद अपने रिश्तेदारों को अलग मान लेने का कारण ये कतई नहीं है कि... उतना मानने लगेंगे तो हमारा परिवार इतना बड़ा हो जाएगा कि संभालना मुश्किल हो जाएगा.

बल्कि, सात पुश्तों के बाद उन्हें अलग मान लेने का मतलब ये होता है कि... अब उस परिवार में हमारे परिवार का DNA नहीं बचा है.

और, वे दूसरे DNA के लोग हैं.

इस तरह... सात पुश्तों के बाद हम आपस में भाई-बहन नहीं रह जाते हैं.

और, सात पुश्त मतलब निकल रहा है कि...
अगर किसी को 30 वर्ष की आयु में बच्चे होते हैं..
तो, 30×7 = 210 साल के बाद उनके DNA बदल जाते हैं.

अब अगर मनु-सतरूपा को हम बहुत कम अर्थात मात्र 20-25 हजार साल ही पहले का ही मान लें..

तो, ये कल्पना की जा सकती है कि उसके बाद कितनी पुश्तें गुजर चुकी है.

इसीलिए... धार्मिक ग्रंथों से इतर विज्ञान की दृष्टि से भी हम सभी हिनू आपस में भाई-बहन नहीं हैं..

और, हमारी आपस में शादी भाई-बहन में शादी नहीं है.

असल में लोगों के मन में ये सब फालतू सवाल इसीलिए उपजते हैं क्योंकि अंग्रेजों ने हमलोगों के मन में एक कुंठा बो दी है.....

इसीलिए, हम कुंठित दिमाग से उन्हीं की तरह बात करने लगते हैं.

जबकि, अब जरूरत है हमें उस अंग्रजों द्वारा बोई गई कुंठा से बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझते हुए उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की.

इसके साथ ही मैं अपनी बात फिर से दुहराता हूँ कि... आधुनिकतम विज्ञान एवं पावरफुल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के आने के बाद भी जिस DNA और क्रोमोजोम्स के विभक्तिकरण की प्रक्रिया को समझने में वैज्ञानिकों को पसीने आ जाते हैं...

इतने गूढ़ विषय को हमारे ऋषि मुनियों ने आज से हजारों साल पहले न सिर्फ अच्छी तरह समझ लिया था..

बल्कि, उन्होंने अपनी सात पीढ़ियों तक शादी नहीं करने की परंपरा बनाकर उसका समाधान भी बता दिया था कि हम इस प्रॉब्लम से ऐसे निपट सकते हैं.

तो... अब आधुनिकतम विज्ञान द्वारा अपने पूर्वज ऋषि-मुनियों की बातें और हमारे लिए बनाई परंपराओं के सत्यापित हो जाने के बाद आखिर हमें अपने विद्वान पूर्वजों एवं उनके ज्ञान पर गर्व क्यों नहीं होना चाहिए ???
जय सनातन...!!🚩

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