प्रासंगिक
हम बहुधा माताओं को सार्वजनिक स्थानों पर अपनी संतान को स्तनपान करवाते देखते है और उस दृश्य को देखकर या तो अपना शिशुकाल स्मरण कर भावविभोर हो जाते है अथवा चुपचाप अपनी दृष्टि वहाँ से हटा लेते हैं ,जबकि ऐसा कोई कानून नही है ,कोई घोषित नियम नही है ,किन्तु हमारी मानवता हमे यह स्वतः सिखा देती है कि क्या देखना है और क्या नही ।
पहले जब इतनी व्यवस्थाएं नही थी तब कई बार प्रसूताएं सार्वजनिक स्थानों पर प्रसव हेतु बाध्य होती थी तब वहाँ उपस्थित पुरुषो को समझाना नही पड़ता था कि उन्हें क्या करना चाहिए तब ,वे समझते थे कि क्या करना है । समाज आपको यह सब स्वतः सिखाता आया है ।
शस्त्रों में ऐसे कई प्रसंग है जिसमे साधु संत ऋषि आदि वनगमन के समय यक्ष,गंधर्व ,मनुष्यो सहित अन्य जातियों को प्रणयरत अवस्था मे देख लेते थे ,ध्वनि से समझ जाते थे कि आगे क्या चल रहा है तब वे चुपचाप वहाँ से अन्यत्र मुड़ जाते थे।आज भी हम लोग पशुओं को गुह्य अवस्थाओं में देखते है तब भी नजरे फिरा कर ऐसे सभी कृत्यों को अनदेखा कर देते है ।
यही सभ्य मानव समाज की शिष्टता है ।
आज फिर से इसकी अत्यंत आवश्यकता है । चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में जो कुछ हुआ है वहाँ से जो कुछ भी इंटरनेट पर बह रहा है उसे स्थिरप्रज्ञ शिष्ट मनुष्य की तरह अनदेखा करें ,डिलीट करें और उन बच्चियों के सम्मान एवं जीवन की रक्षा करें।
यही भारतीय पुरुषार्थ है ,यही श्रेष्ठ है ।
बच्चियों ! जीवन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ! हमारा धर्म ,हमारे शास्त्र ऐसी किसी भी घटना पर आपके साथ खड़े है वे स्पष्ट कहते है कि ऐसे कृत्य जो धोखे ,दबाव ,छल एवं बलपूर्वक किये जाते है उसके लिए स्त्रियां दोषी नही है बल्कि दोषी वे नराधम है जो ऐसा करते है या उसमें सहयोग करते है ।ऐसे प्रकरणों में स्त्रियां स्वर्ण के समान शुद्ध मानी गई है । यह सब शास्त्रोक्त है ,पुष्ट है ,सिद्ध है ।
आप लोग आत्महत्या जैसा पाप न करें ,हम सभी आप के साथ खड़े है जो दोषियों को दंडित करने के ये कटिबद्ध है ।
आप सशक्त होकर बिना किसी ग्लानि के आगे खड़े रहे ,हम आपके साथ है बिल्कुल हमारे घर के बच्चे -बच्चियों के समान ही !
वंदे भारत माता !! जगतजननी जगदायिनी जगदम्बा !!!
गोविंद जी ने लिखा, तो मन बन गया चर्चा आप तक पहुंचे ।
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