एक दार्शनिक अपने एक शिष्य के साथ कहीं से गुजर रहा था। चलते-चलते वे एक खेत के पास पहुंचे। खेत अच्छी जगह स्थित था लेकिन उसकी हालत देखकर लगता था मानो उसका मालिक उस पर जरा भी ध्यान नहीं देता है।
खैर, दोनों को प्यास लगी थी सो वे खेत के बीचो-बीच बने एक टूटे-फूटे घर के सामने पहुंचे और दरवाज़ा खटखटाया।
अन्दर से एक आदमी निकला, उसके साथ उसकी पत्नी और तीन बच्चे भी थे। सभी फटे-पुराने कपड़े पहने हुए थे।
दार्शनिक बोला, “ श्रीमान ! क्या हमें पानी मिल सकता है? बड़ी प्यास लगी है!”
“ज़रूर!”, आदमी उन्हें पानी का जग थमाते हुए बोला।
“मैं देख रहा हूँ कि आपका खेत इतना बड़ा है पर इसमें कोई फसल नहीं बोई गयी है, और न ही यहाँ फलों के वृक्ष दिखायी दे रहे हैं तो आखिर आप लोगों का गुजारा कैसे चलता है?”, दार्शनिक ने प्रश्न किया।
“जी, हमारे पास एक भैंस है, वो काफी दूध देती है उसे पास के गाँव में बेच कर कुछ पैसे मिल जाते हैं और बचे हुए दूध का सेवन कर के हमारा गुजारा चल जाता है।”, आदमी ने समझाया।
दार्शनिक और शिष्य आगे बढ़ने को हुए तभी आदमी बोला, “ शाम काफी हो गयी है, आप लोग चाहें तो आज रात यहीं रुक जाएं!”
दोनों रुकने को तैयार हो गये।
आधी रात के करीब जब सभी गहरी नींद में सो रहे थे तभी दार्शनिक ने शिष्य को उठाया और बोला, “चलो हमें अभी यहाँ से चलना है, और चलने से पहले हम उस आदमी की भैंस को कहीं दूर ले जाकर छोड़ देते हैं।”
शिष्य को अपने गुरु की बात पर यकीन नहीं हो रहा था पर वो उनकी बात काट भी नहीं सकता था।
दोनों भैंस को बहुत दूर छोड़कर रातों-रात गायब हो गये।
यह घटना शिष्य के जेहन में बैठ गयी और करीब 10 साल बाद जब वो एक सफल उद्यमी बन गया तो उसने सोचा क्यों न अपनी गलती का पश्चाताप करने के लिये एक बार फिर उसी आदमी से मिला जाये और उसकी आर्थिक मदद की जाये।
अपनी चमचमाती कार से वह उस खेत के सामने पहुंचा।
शिष्य को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वह उजाड़ खेत अब फलों के बागीचे में बदल चुका था। टूटे-फूटे घर की जगह एक शानदार बंगला खड़ा था और जहाँ अकेली भैंस बंधी रहती थी वहां अच्छी नस्ल की कई गाएं और भैंस अपना चारा चर रही थीं।
शिष्य ने सोचा कि शायद भैंस के न रहने पर वो परिवार सब बेच-बाच कर कहीं चला गया होगा और वापस लौटने के लिये वो अपनी कार स्टार्ट करने लगा कि तभी उसे वो दस साल पहले वाला आदमी दिखा।
“ शायद आप मुझे पहचान नहीं पाये, सालों पहले मैं आपसे मिला था।”, शिष्य उस आदमी की तरफ बढ़ते हुए बोला।
“नहीं-नहीं, ऐसा नहीं है, मुझे अच्छी तरह याद है, आप और आप के गुरु यहाँ आये थे। उस दिन को कैसे भूल सकता हूँ। उस दिन ने तो मेरा जीवन ही बदल कर रख दिया।
आप लोग तो बिना बताये चले गये पर उसी दिन ना जाने कैसे हमारी भैंस भी ग़ायब हो गयी।
कुछ दिन तो समझ ही नहीं आया कि क्या करें, पर जीने के लिये कुछ तो करना था, सो लकड़ियाँ काट कर बेचने लगा। उससे कुछ पैसे हुए तो खेत में बोवाई कर दी। सौभाग्य से फसल अच्छी हो गयी, बेचने पर जो पैसे मिले उससे फलों के बागीचे लगवा दिये और यह काम अच्छा चल पड़ा और इस समय मैं आस-पास के हज़ार गाँव में सबसे बड़ा फल व्यापारी हूँ। सचमुच, ये सब कुछ ना होता अगर उस भैंस की गायब ना हुई होती ।
“लेकिन यही काम आप पहले भी कर सकते थे?”, शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।
आदमी बोला, “ बिलकुल कर सकता था। पर तब ज़िन्दगी बिना उतनी मेहनत के आराम से चल रही थी। कभी लगा ही नहीं कि मेरे अन्दर इतना कुछ करने की क्षमता है सो कोशिश ही नहीं की , पर जब भैंस गायब हो गयी तब हाथ-पाँव मारने पड़े और मुझ जैसा गरीब-बेहाल इंसान भी इस मुकाम तक पहुँच पाया।”
आज शिष्य अपने गुरु के उस निर्देश का असली मतलब समझ चुका था और बिना किसी पश्चाताप के वापस लौट गया।
आदी जिंदगी यानि 'कम्फर्ट जोन' से बाहर आना जरूरी ।
कई बार हम अपनी परिस्थितियों के इतने आदी हो जाते हैं कि बस उसी में जीना सीख लेते हैं,और नये काम या व्यापार के बारे में सोचते ही नहीं। इस तरह की आदी ज़िंदगी यानी 'कम्फर्ट जोन' में हम कभी भी अपने क्षमता को महसूस ही नहीं कर पाते और बहुत सी ऐसी चीजें करने से चूक जाते हैं जिन्हें करने के लिये हमारे अन्दर अदृश्य आंतरिक क्षमता विद्यमान है और जो हमारी जिंदगी को बहुत ही बेहतर बना सकती है।
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