शनिवार, 30 अप्रैल 2022

सवा सेर

 

जंगल में जंगल का कानून चलता था। बड़ी मछली जैसे छोटी मछली को खा सकती है, बिलकुल उसी तरह बड़े जीव छोटों को खा सकते थे। ये न भी हो तो हाथी जैसे जीवों के किसी तालाब पर पानी पीने आने पर खरगोश जैसे छोटे जीवों का कुचला जाना संभव था। इसलिए छोटे जीवों का तालाब अलग था। एक छोटे से पोखर पर वो लोग पानी पी लेते, बड़ी झीलों-नदियों की तरफ जाते ही नहीं थे। एक दिन एक सियार को वो छोटा तालाब दिख गया। उसने सोचा कि बाकी मांसाहारियों की तुलना में वो भी तो छोटा है, उसके लिए भी वही पोखर ठीक रहेगा।

एक बार जब गर्मियों में तालाब में पानी कम हुआ तो सियार के हाथ कुछ घोंघे लग लग गए। घोंघे खाकर सियार ने उनके रंग-बिरंगे खोल को कान में कुंडल की तरह लटका लिया। इतने दिनों में उसने देख लिया था कि पोखर पर अधिकांश छोटे शाकाहारी जीव आते हैं। उनपर वो अपनी धौंस भी जमा लेता था। अब जब सियार ने कुंडल पहनना शुरू कर दिया तो उसकी ठसक और बढ़ गयी। वो अपने आप को छोटे जीवों के इलाके का राजा घोषित करने पर तुल गया। राजा के लिए सिंहासन, सम्मान इत्यादि होना चाहिए, इसका इंतजाम भी उसने शुरू किया।

पोखर से ही गीली मिट्टी निकालकर उसने एक पीढ़ा (बैठने का जमीन से थोड़ा ऊँचा आसन) बना लिया। उसके ऊपर उसने आस पास से लम्बी घास नोचकर उसकी रस्सी बांटी और एक गद्दी सी लगा दी। खुद उसपर जा बैठा और पानी पीने आये छोटे जीवों को लगा धमकाने। पोखर को उसने अपना घोषित कर लिया और वहाँ पानी पीने की शर्त ये रखी कि पहले उसकी जयजयकार करनी होगी! कहानी मैथिलि लोककथा है, तो छोटे जंतुओं को कहना पड़ता था –
सोना के रे पीढ़िया रे पीढ़िया, मखमल मोढल ये!
कान दुनु में कुंडल शोभे, राजा बैसल ये!
(मोटे तौर पर इसका मतलब होता स्वर्ण का पीढ़ा है, जिसपर मखमली गद्दा लगा है। जिसके दोनों कानों में कुंडल शोभा देते हैं, वो राजा उसपर विराजमान है!)

छोटे जीवों के पास तो कोई चारा नहीं था इसलिए वो ये गीत गाते, फिर जाकर तालाब से पानी पीते। एक दिन वहाँ कहीं से एक भेड़िया आ गया। सियार ने उसके सामने भी पानी पीने की वही शर्त रखी। भेड़िये ने एक नजर सियार को ऊपर से नीचे तक देखा फिर गाना शुरू किया –
मैट के रे पीढ़िया रे पीढ़िया, जुन्ना मोढल ये!
कान दुनु में डोका टांगल, गीद्दड़ बैसल ये!
(मिट्टी का पीढ़ा है, जिसपर घास की रस्सी का गद्दा लगा है। जिसके दोनों कानों में घोंघे टंगे हैं, वो गीदड़ उसपर बैठा है!)
यूँ कहते-कहते भेड़िये ने एक लात मारकर गीदड़ को किनारे लुढ़का दिया और उसका मिट्टी का आसन नोचकर तोड़ डाला! जमीन सूंघते गीदड़ को अपने इधर-उधर गिरे घोंघे समेटने छोड़कर भेड़िया पानी पीने चला। आस-पास खड़े छोटे जीव गीदड़ की कुटाई देखकर मुस्कुराते रहे!

अक्सर ये कहानी “सेर को सवा सेर मिल ही जाता है” जैसी कहावतें सिखाने के लिए सुनाई जाती है। छोटे बच्चे कहीं “बुल्लीन्ग” (Bullying) न सीख लें, दूसरे अपने से छोटे-कमजोर बच्चों के साथ बदमाशी न करें, इसलिए ऐसी कहानियां सुनाई जाती रही है। बड़े होने के बाद ये कहानी इसलिए याद रखनी चाहिए क्योंकि हर पड़ाव पर ज्यादा समझ वाले , ज्यादा हौसले वाले मिल ही जाते हैं । तो  “सेर को सवा सेर मिलने” वाली कहानी याद रखिये। अकड़ किसी काम की नहीं होती । ये आगे की पीढ़ियों को सीख देने वाली लोककथाओं का सिलसिला जारी रहे, बस ।

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रविवार, 24 अप्रैल 2022

नज़र

 

बीते दिनों पूरे सोसल मीडिया पर ओस्कर अवार्ड की चर्चा रही,
जिसमें ऐंकर द्वारा विल  स्मिथ की वाइफ़ पर घटिया जोक मारने पर विल स्मिथ  ने मंच पर चढ़ कर ऐंकर को थप्पड़ जड़ दिया.

इस चर्चा में असल कहानी दब गई - विल स्मिथ को जिस फ़िल्म के लिए ओस्कर मिला है - किंग रिचर्ड्ज़ की.

यह कहानी है टेनिस की सुपर स्टार वीनस और सेरेना विलियम्स के पिता रिचर्ड्स की.

*यह कहानी है कि अगर आपमें विजन है तो आप कुछ भी कर सकते हैं.*

टेनिस महँगा खेल है. वह भी फ़ीमेल टेनिस - पूरी तरह से अमीर गोरे परिवार की लड़कियों का खेल.

रिचर्ड्स ब्लैक और गरीब. घर में तीन सौतेली और दो अपनी कुल पाँच बेटियाँ. लेकिन रिचर्ड्स का विजन इतना तगड़ा था कि अपनी बेटियों के पैदा होने के पहले ही उन्होंने 85 पन्नों का डॉक्युमेंट बना डाला था कि वह अपने बच्चों का टेनिस का चैम्पियन बनाएँगे.

खुद सिक्यरिटी गार्ड थे, पत्नी नर्स, पर बेटियों को टेनिस जैसा महँगा खेल खिलाया. बड़ी मुश्किल से बड़ी बेटी वीनस के लिए वर्ल्ड क्लास कोच तलाश पाए. रिचर्ड ने फ़ैसला कर रखा था वह अपनी बेटियों को जूनियर लेवल पर नहीं खिलाएँगे, सीधे सीनियर खिलाएँगे. क्योंकि प्रायः जूनियर लेवेल पर प्रसिद्धि मिल जाने पर लोग सीनियर तक यह स्टैमिना क़ायम नहीं रख पाते. कोच ने विरोध किया तो उसे ही फ़ायर कर दिया. इतना क्लीयर विजन था रिचर्ड का कि चाहते तो बेटी को जूनियर लेवल पर खिला अरबों बना लेते, लेकिन लगे रहे कि नहीं सीधे विश्व चैम्पियन बनाएँगे.

एक समय ऐसा आया जब बड़ी बेटी से भी झगड़ा हुआ इसी बात पर. वीनस का भी मन करता वह प्रोफेशनल लेवल पर खेले, tv पर आए लेकिन पिता जी थे कि मानते ही न थे. वह बेटी को प्रोफेशनल लेवल तभी खिलाना चाहते थे जब भरोसा हो जाए कि विश्व चैम्पियन बनेगी. अंततः वीनस ने खेलना आरम्भ किया. पहले मैच से पहले ही विज्ञापन की डील मिल गई तीन मिलियन डालर. एक सिक्यरिटी गार्ड इसका दस प्रतिशत ज़िंदगी में न बचा पाए. लेकिन रिचर्ड का विजन क्लीयर था. उनकी बेटी छोटे मोटे में नहीं फँसेगी, विश्व चैम्पियन बनेगी.

और फ़िर हुआ यही. वीनस विलियम्स पहली ब्लैक महिला बनी जो टेनिस में नम्बर एक रैंक पर पहुँची. पाँच विम्बलडन जीते. छोटी बहन सेरेना ने तो 23 ग्रैंड स्लैम जीते और मानवता के इतिहास की सबसे सफल महिला खिलाड़ी बनी.

इनकी यह सफलता कहानी है इनके पिता रिचर्ड के क्लीयर विजन की. उन्होंने बेटियों के पैदा होने के पहले ही एक विजन बनाया और उसे पूरा किया. किंग रिचर्ड्स फ़िल्म है इसी कहानी पर. और दोनों बेटियाँ विल्यम्ज़ सिस्टर्ज़ इस फ़िल्म की इग्ज़ेक्युटिव प्रडूसर हैं. रिचर्ड का नाम भी अमर हो गया.

यदि आप में भी कोई विजन है तो रिचर्ड की ही भाँति अर्जुन की तरह अपने अंतिम नतीजे पर फ़ोकस रखें. सफलता मिलनी तय है ।

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शनिवार, 23 अप्रैल 2022

लक्ष्मी

 


रात 8 बजे का समय रहा होगा, एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है. गांव का रहने वाला था पर तेज था ,उसका बोलने का लहज़ा गाव वालो की तरह का था, पर बहुत ठहरा हुआ लग रहा था. लगभग 22 वर्ष का रहा होगा .

दुकानदार की पहली नज़र पैरों पर ही जाती है. उसके पैर में लेदर के शूज थे,सही से पाॅलीश किये हुये थे

दुकानदार - क्या सेवा करू ?
लड़का - मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये,किंतु टिकाऊ होनी चाहिये
दुकानदार - वे आई है क्या ?उनके पैर का नाप ?"

लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, उसको चार बार फोल्ड किया एक कागज़ पर पेन से  आऊटलाईन बनाई दोनों पैर की.

दुकादार - अरे मुझे तो नाप के लिये नम्बर चाहिये था.

वह लड़का ऐसा बोला मानो कोई बाँध फूट गया हो "क्या नाप बताऊ साहब?
मेरी माँ की जिंदगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पल नही पहनी, माँ मेरी मजदूर है, काँटे झाड़ी में भी जानवरो जैसे मेहनत करकर के मुझे पढ़ाया , पढ़कर,अब नोकरी लगी. आज पहली तनख़्वाह मिली दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊ ? तो मन मे आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ ."

दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी .
"चलेगी क्या "वह उसके लिये तैयार था.

दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया; "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"

"अभी तो बारह हजार,रहना - खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाते है यहाँ, और दो - तीन हजार माँ को भेज देता हूँ."

अरे फिर आठ सौ रूपये कहीं  ज्यादा तो नहीं  .....तो बीच में ही काटते हुए बोला .... नही कुछ नही होता

दुकानदार ने बाॅक्स पेक कर दिया उसने पैसे दिये.
ख़ुशी ख़ुशी वह बाहर निकला.

चप्पल जैसी चीज की, कोई किसी को इतनी महंगी भेंट नही दे सकता. ......... पर दुकानदार ने उसे कहा- "थोड़ा रुको! दुकानदार ने एक और बाॅक्स उसके हाथ में दिया. "यह चप्पल माँ को तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाय तो दूसरी पहन लेना नँगे पैर नही घूमना,और इसे लेने से मना मत करना."

दुकानदार की और उसकी दोनों की आँखे भर आईं.

दुकानदार ने पूछा "क्या नाम है तेरी माँ का?" .
"लक्ष्मी "उसने उत्तर दिया.
दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा, उन्हें "मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?

वह पेपर जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी,वही पेपर मुझे चाहिये.
वह कागज़ दुकानदार के हाथ मे देकर ख़ुशी ख़ुशी चला गया ।

वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा.
दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि ये क्या है पापा  ?"

दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला;
"लक्ष्मीजी के पैर " है बेटा
एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है . इससे धंधे में बरकत आती है."

बच्चों ने, दुकानदार ने और सभी ने मन से उन पैरों को प्रणाम किया,......

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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

स्वास्थ्य चिंतन

 

आजकल शादियों का सीजन चल रहा है।

      सलाह है कि शादी में खाना खाने के बाद चाय या कॉफी की जगह इमली का पानी पीएं। इमली का पानी हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद है।आम्ल पानी यानी इमली का पानी । बीकानेर , राज. में तो प्रथा है कि शहर स्थापना दिवस व दुसरे दिन अक्षय तृतीया के दिन , दो दिन खीचड़ा व ईमली पानी घर घर बनेगा, यही भोजन होगा ।

    आजकल फास्ट फूड का जमाना है और शादियों में भी फास्ट फूड का चलन बहुत ज्यादा है। शादियों में जो भी खाना बनता है उसमें भी तीखे मसाले आदि होते हैं जो शरीर को बहुत नुकसान करते हैं।

    शादियों में खाना खाने के बाद एक गिलास इमली का पानी जरूर पिएं। इमली का पानी फास्ट फूड के कारण शरीर में होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करता है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।

     सलाह मानिए कि महीने में कम से कम 2 बार इमली का पानी पिए। इसका फायदा यह होगा कि पेस्टसाइड युक्त अनाजों और सब्जियों के कारण शरीर पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है, इमली का पानी उन दुष्प्रभावों को खत्म कर देता है।

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रविवार, 17 अप्रैल 2022

स्वभाव

 

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे,एक गरीब था तो दूसरा अमीर..दोनों पड़ोसी थे..,,गरीब ब्राम्हण की पत्नी ,उसे रोज़ ताने देती , झगड़ती एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है ,ये सोच कर कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा..।

जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है...वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है...। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है..हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा ,शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा... ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा...इसे बचायें कैसे???

उसे उपाय सुझता है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है..ओ जंगल के राजा... उठो, जागो..आज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें...आपका मोक्ष हो जायेगा.. ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये,आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा...।

शेर दहाड़ कर उठता है,हंस की बात उसे सही लगती है,और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख ,शीश नवाता है,जीभ से उनके पैर चाटता है..।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...ये सिंह है.. कब मन बदल जाय..ब्राह्मण बात समझता है घर लौट जाता है.... पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है....अब शेर का पहेरादार बदल जाता है..नया पहरेदार होता है ""कौवा""

जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है ... बढीया है ..ब्राह्मण आया.. शेर को जगाऊं ...शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा,तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा...

ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव...चिल्लाता है..शेर गुस्सा हो जगता है..दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव..कांव कर रहा है..वो अपने, पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता..पर फिर भी नहीं शेर,शेर होता है जंगल का राजा...

वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है..""हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान...थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ,,,,मैं किनाइनी जिजमान...,

अर्थात हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये है और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है..मेरी बुद्धि घूमें, उससे पहले ही, हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ..शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है..वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।

दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है...

*हंस और कौवा कोई और नहीं ,,,हमारे ही चरित्र हैं...कोई किसी का दु:ख देख कर दु:खी होता है और उसका भला सोचता है ,,,वो हंस है...और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है ,,,किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता ...वो कौवा है...*
*जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं..जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं, वे कौवे की प्रवृति के हैं..*
*कार्यालय में, व्यवसाय में, समाज में या किसी संगठन में हो जो किसी सहयोगी साथी की गलती या कमियों को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं, उसको हानि पहुंचाने के लिए उकसाते हैं...वे कौवे जैसे हैं..और जो किसी सहयोगी, साथी की गलती, कमियों  पर भी विशाल ह्रदय रख कर अनदेखी करते हुए क्षमा करने को कहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के है..*

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शनिवार, 16 अप्रैल 2022

नज़रिया

 

*छोटी छोटी ख़ुशी का आनन्द ले*

एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला, *“चलिए, surprise test के लिए तैयार हो जाइये।*

सभी स्टूडेंट्स घबरा गए…कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो *कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे।*

पेपर बाँट दिए गए। “ठीक है! अब आप पेपर देख सकते हैं!”, प्रोफेसर ने निर्देश दिया। अगले ही क्षण सभी question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या *इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट!*

ये क्या सर, इसमें तो कोई question ही नहीं है?, एक छात्र खड़ा होकर बोला। *प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है, आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है*… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”

स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answers लिखने लगे। *समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect कीं और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे।*

*लगभग सभी ने ब्लैक स्पॉट को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी।*

प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और न ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है….

*मैं आपको जीवन का सच बताना चाहता हूँ…देखिये…*

इस पूरे पेपर का 99% हिस्सा सफ़ेद है, लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और *अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र 1% है और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है ।*

*समस्याएँ, हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं…*

कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है।

*हम क्यों नहीं अपनी blessings को count करके खुश होते हैं… क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं ?*

हम क्यों नहीं अपनी प्यारी सी फॅमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं….

*क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं, जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।*

*आज से हम जीवन की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को enjoy करना सीखें यही जीवन का सच है….तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे….।*

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शनिवार, 9 अप्रैल 2022

परनिन्दा

 

गाँव के बीच शिव मन्दिर में एक संन्यासी रहा करते थे। मंदिर के ठीक सामने ही एक वेश्या का मकान था। वेश्या के यहाँ रात−दिन लोग आते−जाते रहते थे। यह देखकर संन्यासी मन ही मन कुड़−कुड़ाया करता। एक दिन वह अपने को नहीं रोक सका और उस वेश्या को बुला भेजा। उसके आते ही फटकारते हुए कहा—‟तुझे शर्म नहीं आती पापिन, दिन रात पाप करती रहती है। मरने पर तेरी क्या गति होगी?”

संन्यासी की बात सुनकर वेश्या को बड़ा दुःख हुआ। वह मन ही मन पश्चाताप करती भगवान से प्रार्थना करती अपने पाप कर्मों के लिए क्षमा याचना करती।

बेचारी कुछ जानती नहीं थी। बेबस उसे पेट के लिए वेश्यावृत्ति करनी पड़ती किन्तु दिन रात पश्चाताप और ईश्वर से क्षमा याचना करती रहती।

उस संन्यासी ने यह हिसाब लगाने के लिए कि उसके यहाँ कितने लोग आते हैं एक−एक पत्थर गिनकर रखने शुरू कर दिये। जब कोई आता एक पत्थर उठाकर रख देता। इस प्रकार पत्थरों का बड़ा भारी ढेर लग गया तो संन्यासी ने एक दिन फिर उस वेश्या को बुलाया और कहा “पापिन? देख तेरे पापों का ढेर? यमराज के यहाँ तेरी क्या गति होगी, अब तो पाप छोड़।”

पत्थरों का ढेर देखकर अब तो वेश्या काँप गई और भगवान से क्षमा माँगते हुए रोने लगी। अपनी मुक्ति के लिए उसने वह पाप कर्म छोड़ दिया। कुछ जानती नहीं थी न किसी तरह से कमा सकती थी। कुछ दिनों में भूखी रहते हुए कष्ट झेलते हुए वह मर गई।

उधर वह संन्यासी भी उसी समय मरा। यमदूत उस संन्यासी को लेने आये और वेश्या को विष्णु दूत। तब संन्यासी ने बिगड़कर कहा “तुम कैसे भूलते हो। जानते नहीं हो मुझे विष्णु दूत लेने आये हैं और इस पापिन को यमदूत। मैंने कितनी तपस्या की है भजन किया है, जानते नहीं हो।”

यमदूत बोले “हम भूलते नहीं, सही है। वह वेश्या पापिन नहीं है पापी तुम हो। उसने तो अपने पाप का बोध होते ही पश्चाताप करके सच्चे हृदय से भगवान से क्षमा याचना करके अपने पाप धो डाले। अब वह मुक्ति की अधिकारिणी है और तुमने सारा जीवन दूसरे के पापों का हिसाब लगाने की पाप वृत्ति में, पाप भावना में जप तप छोड़ छाड़ दिए और पापों का अर्जन किया। भगवान के यहाँ मनुष्य की भावना के अनुसार न्याय होता है। बाहरी बाने या दूसरों को उपदेश देने से नहीं।

परनिन्दा,छिद्रान्वेषण, दूसरे के पापों को देखना उनका हिसाब करना, दोष दृष्टि रखना अपने मन को मलीन बनाना ही तो है।

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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

 

राज शेखर तिवारी जी ने बताया कि
कोई डॉक्टर जितेंद्र कुमार हैं अलीगढ़ विश्वविद्यालय में ,  उन्होंने कुछ स्लाइड्स बनवा कर दिखायी है , उसमें बाक़ी बकवास जो उन्होंने करी है उस पर मैं स्पष्ट रूप से सनातन धर्म का दृष्टिकोण रख देता हूँ, आप लोग पोस्ट सुरक्षित रख कर यह उत्तर सोशल मीडिया के माध्यम से औरों को दें ..

01. पहला प्वाइंट उस मुर्ख ने ब्रह्मा और सरस्वती का दिया है । यह दोनों अवतारी देवता न होकर केवल आध्यात्मिक देवता हैं । अध्यात्म अर्थात् शरीर के अंदर , आपके मन में । भौतिक रूप से नहीं बल्कि सूक्ष्म रूप से इसे समझें ।

थोड़ी देर के लिए ब्रह्मा सरस्वती भूल जाएँ ।

आपका अपना मन , आपकी अपनी बुद्धि, आपका अपना चित् और आपका अपना अहंकार ही आपका अंतःकरण है । यही चारों चार मुँह वाले ब्रह्मा हैं ।

अब आपकी मेरी या धूर्त जितेंद्र कुमार की वाणी कहाँ से उत्पन्न होती है ? मन से । अर्थात् वह वाणी ही सरस्वती है , और मन से उत्पन्न होने के कारण , वह वाणी आपकी बेटी है ।

अब वाणी रहती कहाँ है ? वह रहती है आपके साथ ? और जो जीवन भर आपके साथ रहे वह आपकी पत्नी ।

तो पुराणों की यह भाषा है , अंतःकरण और वाणी के समष्टि को समझाने की ।

ब्रह्मा की सृष्टि मानसिक सृष्टि थी । बाद में प्रजापति इत्यादि के द्वारा भौतिक सृष्टि सृजन हुयी । क्योंकि मानसिक सृष्टि से व्यवहार चल ही नहीं सकता ।

02. दूसरा प्वांइट जलंधर के वध संबंधित है । यहाँ पर सतीत्व की महिमा बतायी गयी है ।

जलंधर ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा था पर उसका वध केवल इसलिए नहीं हो पा रहा था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा ( तुलसी ) एक सती थी , और जब तक वृंदा का सतीत्व भंग नहीं होता तब तक जलंधर का न तो वध होता और न ही विश्व का कल्याण ।

अब बड़ी बात क्या थी तो विश्व के कल्याण के लिए वृंदा का सतीत्व भंग किया गया ..

पर क्या इससे वृंदा या तुलसी की निंदा हुयी सनातन धर्म में ? नहीं वह पूजनीय हो गयीं और आज भी वृंदावन में नित्य विहार कर रही हैं । वृंदा ने नारायण को पत्थर रूप में अपने समक्ष रहने को कहा और आज भी ठाकुर जी ( श्री शालिग्राम) पत्थर के जैसे जड़ बनकर रहते हैं । तुलसी के अतिरिक्त नारायण को पत्थर बनाने का सामर्थ्य किसी और में नहीं आया ।

03. और तीसरी कथा रामावतार की है । इंद्र सभी इंद्रियों ( ग्यारहों ) का राजा होता है और जैसे व्यष्टि में हम बहक जाते हैं वैसे ही समष्टि में वह बहक गया , और आपको पता ही है की रामावतार में राम नहीं चाहते थे की लोग उन्हें ईश्वर रूप में पहचानें पर एक काम उन्हें ऐसा करना था की बाद में लोग कह सकें ऐसा करना तो केवल ईश्वर के लिए ही संभव है ,

और वह था किसी स्त्री जिसका शील भंग हुआ हो उसे पुनः सती बना देना , अहनी लियते इति अहिल्या । और आज भी अहिल्या की गिनती सती अहिल्या के रूप में होती है । वहाँ , ईश्वरीय पहचान करायी गयी है न की इंद्र का कुकृत्य ।

अपेक्षा करता हूँ की आप लोग इन उत्तर को और भी लोगों तक पहुँचाएँगे ।

हमारे पुराणों में शास्त्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर आपको ग्लानि करनी है बस उन कथाओं के उद्देश्य को समझना है ।
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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

समय की क़ीमत

 

कस्बे मे एक छोटी सी स्टैशनेरी की दुकान थी - दुकान के मालिक का नाम प्रेमू था। मेरे बचपन का सपना था एक दिन बहुत पैसे  कमाऊँगा और प्रेमू की दुकान से मन भर कर शॉपिंग करूंगा। हम सभी बच्चों ने अपनी विश लिस्ट भी बना रखी थी कि अंडा वाली बाल, चिड़िया, ढेर सारी पापीन्स, टंकी वाला निब पेन यह सब खरीद लेंगे।

जाहिर सी बात है जब बड़े हुवे, इस लायक हुवे कि यह सब खरीद सकें तो इनकी जरूरत नहीं रह गई।

जब छोटा घर था तो रहने वाले इतने लोग होते थे कि एक एक कमरे मे दस बारह लोग हों। जब घर बड़ा हुआ रहने वाले लोग उसी अनुपात मे कम होते गए।

जब खाने की इच्छाएं और सामर्थ्य होता है, तब पैसे नहीं होते हैं। जब पैसे आते हैं तब डाइबीटीज जैसी ढेरों बीमारियाँ या जाती हैं और अब खा  नहीं सकते हैं।

जब घूमने का वक्त था, तब समय नहीं था नौकरी और जिंदगी के जंजाल मे। जब वक्त हुआ तो शरीर जवाब दे चुका था।

जब चार हजार तनख्वाह होती है, तो लगता है अभी क्या दान दक्षिणा दें, चालीस हजार तनख्वाह हो जाए आधी तनख्वाह धर्म कर्म पर खर्च करूंगा। तनख्वाह चार लाख हो जाती है, तीन लाख ईएमआई मे चले जाते हैं, महीने के अंत तक उधारी हो जाती है।

जब रिश्ते निभाने की सामर्थ्य, इच्छा और शक्ति होती है तब रिश्ते नहीं होते हैं। बुढ़ापे तक आते आते सैंकड़ों रिश्ते बन चुके होते हैं पर अब वह अच्छे नहीं लगते, खुद से प्यार हो जाता है।

ईश्वर ने आक्सीजन मुफ़्त दी है। आजीवन उसका मुफ़्त उपभोग करते हैं। अंतिम समय पता लगता है यह तो अनमोल थी। कितनी भी कीमत दे लो अंत मे इसी की कमी से प्राण चले जाते हैं।

माँ का प्रेम, प्रेयसी / पत्नी का प्यार, सूर्य की किरणें, चंद्रमा की चाँदनी सब मुफ़्त है। तब इसकी कद्र नहीं होती। जब इसकी कद्र करना आता है तब तक यह हाथ से निकल चुके होते हैं।

जिंदगी का सच यही है। जब चीजें उपलब्ध होती हैं, तो उनकी उतनी वैल्यू नहीं होती है। जब वैल्यू पता लगती है तो चीजें गायब हो चुकी होती हैं।  जब जहां जिस क्षण पर हैं, उसे ही परफेक्ट मानते हुवे जिंदगी का हर क्षण जीते हुवे चलें। कल की प्रतीक्षा न करें।

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रविवार, 3 अप्रैल 2022

समय

 

आज भोर में एक प्रश्न दृष्टिगोचर हुआ- यदि आपको जीने के लिए एक ऐतिहासिक युग चुनना हो, तो आप कौन सा युग चुनेंगे और क्यों?

प्रश्न पढ़कर मेरा मन किया कि मैं भी इसका उत्तर दूँ...

आज से कुछ पैंतीस वर्ष पूर्व की बात है। रात का समय था, हम लोग भोजन कर चुके थे। 'हम लोग' मने मम्मी, पापा, भाई और मैं। भोजन के उपरांत भाई टहलने की कहकर घर से बाहर चला गया। मैं मम्मी पापा के संग बैठी बातें कर रही थी। तभी भाई वापस लौट आया, वह हमारे लिए कसाटा आइसक्रीम लेकर आया था। हम चारों ने बैठकर बातें करते हुए सुकून से आइसक्रीम खाई। उस समय ऐसी कोई 'प्रसन्नता का अतिरेक' जैसी भावना मन में नहीं आयी, परन्तु मन में सहजता व सुकून की भावना अवश्य थी।

जानते हैं, उस दिन के पश्चात ईश्वर ने बड़े से बड़े रेस्टोरेंट में खाने का अवसर प्रदान किया, परन्तु उस दिन वाली कसाटा जैसा स्वाद फिर कभी नहीं मिल पाया...
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मुझे आज एक प्रश्न का उत्तर देना है, फिर क्यों मैं इस 'कसाटा आइसक्रीम' का किस्सा ले बैठी?!

चलिये, अब उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करती हूं, शायद कसाटा आइसक्रीम का अपने प्रिय युग से सम्बंध स्पष्ट कर पाऊं...

ऐतिहासिक युग का तो पता नहीं, परन्तु मैं आज से करीब पैंतीस वर्ष पीछे जाना चाहूंगी। उस समय हमारे पास बहुत अधिक मात्रा में संसाधन नहीं होते थे, सिर्फ़ जरूरतभर की वस्तुएं हुआ करती थीं। फिर भी मन में एक सुकून अवश्य स्थायी रूप से वास करता था।

आज के समय में कोई हमारे मैसेज या फ़ोन कॉल का रिप्लाई दस सेकेंड में न करे तो मन बैचेन होने लगता है, रिश्ते टूटते से प्रतीत होते हैं। कुछ वर्ष पहले किसी भी मित्र या रिश्तेदार को पत्र लिखकर, उसके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा महीनों किया करते थे, फिर भी मन में रिश्तों के होने की निश्चिंतता बनी रहती थी।

घर में एक बाथरूम होने के पश्चात भी घर का कोई सदस्य काम पर जाने में लेट नहीं होता था तब। हर सदस्य स्नान करके ही घर से बाहर कदम रखता था आज हर रूम के साथ अटैच्ड बाथरूम होने के पश्चात भी हर कोई लेट होकर दौड़ता नज़र आता है।

उस समय रसोईघर में रस बरसता था, घर का सादा खाना भी अमृत लगता था, और अगर कभी कोई घर का बड़ा खाने के बाद आम या कसाटा आइसक्रीम ले आता तो बैठे बिठाए पार्टी हो जाया करती थी। आज फाइव स्टार के भोजन में भी वो बात नहीं। आजकल पार्टियों में ढेरों प्रकार के व्यंजन होने पर भी वह कसाटा वाली पार्टी जैसा स्वाद नहीं।

तब अच्छे पैसे वाले लोग भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल किया करते थे। डीटीसी की बस में कब हँसते बोलते रास्ता कट जाता था, अहसास ही नहीं होता था। बस में बैठे बैठे ही एक से एक लेटेस्ट न्यूज़ सुनने को मिल जाती थीं सो अलग। आज पैसे वालों की बात छोड़िए, मध्यम वर्ग भी रीस में आकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करना नहीं चाहता। घर में जितने सदस्य हैं, उतनी ही गाड़ियां हैं।

उस समय शादी ब्याह में रेखा वशिष्ठ  { स्वयं} जैसे कुछ लोग स्कूल की सफ़ेद स्कर्ट पहनकर खुशी खुशी चले जाया करते थे। यही सोचकर मन खुश हो जाता था कि मेरे मम्मी पापा मुझे अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। हर महीने केंद्रीय विद्यालय की साढ़े बारह रुपये फीस भर रहे हैं। आज का हिसाब बिल्कुल उल्टा है। जो जितने महंगे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ रहा है, वह उतना ही असंतुष्ट है। उन्हें रोज नए नए खिलौने, महंगे वस्त्र, लेटेस्ट इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स चाहियें।

उस समय और अबके समय की तुलना में गिनवाने को बहुत कुछ है। क्या क्या गिनवाऊं व क्या क्या छोड़ दूँ...
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बीता हुआ समय कभी लौटकर वापस नहीं आता। हमें वो पहले वाली सहजता फिर से शायद न मिले। परन्तु, इसका यह अर्थ नहीं कि हम प्रयास ही न करें। जीवन को सहज बनाये रखने के लिए हमसे जो बन पड़े हमें करते रहना चाहिए।

स्वयं सहज बने रहने के लिए व बच्चों को सहजता सिखाने के लिए घर में कुछ न कुछ प्रयास हम लोग करते रहते हैं। उनमें से कुछ आप भी जानिए, कदाचित आपको भी कुछ लाभ पहुँचे-

★हमारे घर में एक अनकहा नियम है। हम दोनों बच्चों के साथ दिन में एक या दो बार वॉक करने जरूर जाते हैं। अगर हम में से कोई एक फ्री है तो एक ही चला जाता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि मुझे दिन में तीन चार बार कभी बेटी के साथ तो कभी बेटे के साथ वॉक करने जाना पड़ता है। वॉक के समय बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है। वे अपने मन में चल रहे विभिन्न द्वंदों को प्रकट करते हैं, और हम धैर्यपूर्वक सुनते हैं। फिर हम बात बातों में अपना मत भी प्रकट कर देते हैं। बच्चे उस समय चाहे हमारे बताए उपाय से संतुष्ट न हों, परन्तु बाद में वे वही कार्य करते दृष्टिगोचर होते हैं। याद रखिये, आप बच्चों के नाम कितना कुछ छोड़कर जाते हैं, वह उन्हें याद नहीं रहेगा। परन्तु उन्हें सदैव स्मरण रहेगा कि आपने उनके साथ कितना समय व्यतीत किया, क्या क्या बात की व उन्हें क्या क्या परामर्श दिए।

★आज भी हमारे घर में बच्चों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने को प्रेरित किया जाता है। अपना कोई वाहन नहीं है उनके पास। सिर्फ पतिदेव के पास एक गाड़ी है, जिसमें बैठकर हम सब कभी कभार इकट्ठे घूमने चले जाया करते हैं।

★मेरे बच्चे बहुत कुछ आज के बच्चों जैसे हैं, खूब शॉपिंग करते हैं व खूब बाहर से भी खाते हैं। पर जब वे अपने माता पिता को देखते हैं कि वे स्कूल दफ्तर घर से टिफिन लेकर जाते हैं, वहाँ एक भी पैसा खाने पर खर्च नहीं करते, वे यह भी देखते हैं कि उनके माता पिता शादी ब्याह व पार्टियों में वही पुराने कपड़े रिपीट करने में जरा भी गुरेज नहीं करते; तब वे भी कहीं न कहीं सीखते हैं कम में सुकून से रहना। वे सीखते हैं घर के भोजन का स्वाद, वे सीखते हैं सहजता व बेफिक्री। उस 'कसाटा आइसक्रीम' की तरह वे भी दुनिया की बेस्ट पार्टी का आनन्द लेते हैं अपनी माँ के हाथ से बने गाजर के हलवे में।

यहाँ भी कहने को बहुत कुछ है। समझ नहीं पाती क्या कहूँ व क्या जाने दूँ!

खैर, इतना अवश्य कहूँगी कि समय लौटकर आये या न आये परन्तु इस विश्व को रहने लायक स्थान बनाने के लिए, मनुष्यों की बेचैनी को सहजता में परिवर्तित करने के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए... ✍️रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

मुफ्त की सामग्री

 

राजा साहब राजा थे तो विचित्र निर्णय लेने से उन्हें रोकता कौन? इसलिए जब उन्होंने निर्णय लिया कि उनकी राजधानी के बाजारों में जो भी बिकने आये, वो सूर्यास्त तक न बिके तो वो स्वयं खरीदेंगे, या कहिये राज्य क्रय कर लेगा, तो किसी ने उन्हें नहीं टोका। वैसे भी राज्य की व्यवस्था अच्छी चल रही थी। आय अधिक था, खर्चे कम थे। तो शुरू में तो इस निर्णय से कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन थोड़े ही दिन में देवताओं का ध्यान इस व्यवस्था पर चला गया। उन्होंने सोचा ऐसा कैसे? कोई राजा इतने पुण्य करे तो लोग कष्टों से बच जायेंगे और हमपर तो कोई ध्यान ही नहीं देगा। कष्ट हों, तब तो लोग सहायता के लिए देवताओं को पुकारते!

चुनांचे देवताओं ने राजा की जांच करने की ठानी। धर्म ने स्वयं एक ब्राह्मण का वेश धारण किया, एक संदूक में कबाड़ भरा और राजा की राजधानी में उसे बेचने पहुँच गए। हाट में बैठकर उन्होंने कबाड़ की कीमत हजार अशर्फियाँ बतानी शुरू की। कोई हजार अशर्फियों में कबाड़ क्यों खरीदता? जैसा कि होना था, सूर्यास्त हुआ और वो बिना अपना सौदा बेचे बैठे थे। राज्य के कर्मचारी जांच के लिए आये तो देखा कि उनका सौदा बिका नहीं। मूल्य पूछा गया, और जब देखा गया कि हजार अशर्फियों में वो क्या बेचने बैठे हैं, तो सबने उनकी मूर्खता का मजाक उड़ाया। नियम था ये सभी को पता था, इसलिए जब कबाड़ बेचने बैठा ब्राह्मण नहीं माना तो उच्चाधिकारियों को इस विषय में बताया गया।

थोड़ी देर और मामले की जांच हुई क्योंकि पहले कभी ऐसा हुआ नहीं था। अंततः राजा तक बात पहुंची। राजा बोले नियम तो मैंने ही बनाया है, अब अपनी बात से कैसे फिरूं? खरीद लो जो कुछ भी है। रात में राजा भोजन इत्यादि करके एक बाहर के ओसारे सी जगह में बैठे थे जब कुछ नौकर-चाकर कबाड़ भरा संदूक उनके पास रख गए। देर रात तक राजा इसी सोच में बैठे थे कि कहीं राज्य के और लोग भी देखा-देखी ऐसा ही करने लगे तो? गुप्तचरों को उन्होंने पहले ही ब्राह्मण का पीछा करने भी भेज दिया था। आधी रात बीत चुकी थी कि महल के अन्दर की ओर से पायलों-चूड़ियों के खनकने की सी आवाज आई।

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राजा चौंके, इतनी रात में भला कौन स्त्री महल से बाहर जा रही है? उन्होंने स्त्री को जाते देख आवाज लगाई तो वो ठहरी। राजा ने पास जाकर देखा तो स्वर्ण-आभूषणों से लदी कोई सुन्दर स्त्री थी जिसे उन्होंने कभी देखा नहीं था। स्त्री ने स्वयं अपना परिचय देते हुए कहा कि वो राज्य-लक्ष्मी है। संदूक में भरे कबाड़ के साथ महल में दरिद्रता का प्रवेश हो गया है, इसलिए वो जा रही है। राजा ने हाथ जोड़े और उन्हें विदा किया। वो वापस आकर बैठे ही थे कि श्वेत वस्त्रों में एक युवक निकलता दिखा। राजा ने उसे भी टोका तो उसने कहा कि वो दान है, जहाँ लक्ष्मी ही नहीं वहाँ दान कहाँ होगा? राजा ने उसकी बात से सहमती जताई और उसे भी जाने दिया।

थोड़ी देर और बीतने के बाद एक और सुदर्शन युवक निकला। राजा कुछ पूछते, इससे पहले ही उसने स्वयं बताया। वो धर्म थे। उनका कहना था लक्ष्मी और दान के बिना धर्म का पालन नहीं हो सकता, इसलिए उन्हें भी विदा दी जाए। राजा ने सोचा, बात तो सही है और धर्म को भी जाने दिया। उसके पीछे पीछे एक और युगल निकले जिन्होंने बताया कि वो यश और कीर्ति हैं। लक्ष्मी, दान और धर्म के बिना यश-कीर्ति कहाँ हो? इसलिए वो भी जा रहे थे। ब्रह्म मुहूर्त होने में अभी कुछ ही देर बाकी था कि चेहरा ढकने का प्रयास करते एक और युवक निकलने लगा। राजा ने उसे भी नहीं पहचाना और परिचय पूछा। युवक ने बताया कि वो सत्य है। जहाँ लक्ष्मी, दान और धर्म नहीं, वहाँ उसकी जरुरत भी नहीं होगी, लेकिन राजा ने बड़ी निष्ठा से उसका पालन किया था, इसलिए वो मुंह छुपाता हुआ जा रहा था।

इस बार राजा ने कड़क कर कहा, आप जा नहीं सकते। सत्य के पालन की खातिर ही मैंने हजार अशर्फियों में इस कबाड़ रुपी दरिद्रता को लाना स्वीकार किया। आपके पालन की लिए ही लक्ष्मी जाने पर चुप रहा, दान-धर्म को जाने दिया, आप कैसे जा सकते हैं? सत्य सोच में पड़ गया। राजा की बात सही थी। सत्य ने आपनी भूल स्वीकार की और महल में वापस लौट गया। राजा वापस बैठे ही थे कि भागे-भागे यश-कीर्ति वापस आ गए। राजा ने उन्हें देखकर हाथ जोड़े तो यश ने कहा, महाराज, सिर्फ सत्य पर टिके रहे तो यश और कीर्ति तो उससे मिलेगी ही। सत्य के बिना यश-कीर्ति मिल भी जाएँ तो ठहरते नहीं। सत्य आपके पास ही है, इसलिए हम जा नहीं पाए। वो अन्दर गए ही थे कि पीछे-पीछे धर्म लौटे।

धर्म ने कहा धर्म का पालन अवश्य लक्ष्मी और दान से होता है, लेकिन धर्म का मूल स्वरुप तो सत्य ही है। इसलिए सत्य के पास वो भी लौट आये थे। थोड़ी देर में दान लौटे। उन्होंने कहा कि जहाँ सत्य न हो वहाँ दान की बातें चाहे जितनी हों, दान तो होगा नहीं। इसलिए वो भी सत्य के पास लौट आये हैं। थोड़ी देर और हुई, तो ब्रह्म मुहूर्त होते-होते लक्ष्मी लौट आयीं। उन्होंने कहा मैं तो दान-धर्म, यश-कीर्ति और सत्य का प्रतिफल हूँ। जैसे मेरे द्वारा इनका पालन होता है, वैसे ही इनके माध्यम से मैं आती हूँ। इसलिए राजन मैं भी तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकती!

सिर्फ एक सत्य का पालन करने पर क्या होता है, ये हम लोगों ने हाल ही में एक फिल्म के बनने में देखा है। फिल्म केवल सत्य घटनाओं पर आधारित थी। कोई बड़े सितारे फिल्म में नायक-नायिका नहीं थे, फिल्म में गाने-आइटम सोंग्स नहीं थे। कोई नामी गिरामी डायरेक्टर नहीं था, प्रचार में बहुत पैसे खर्च नहीं हुई क्योंकि बड़ा बजट भी नहीं था। सिर्फ सत्य का आधार बनाये रखने का नतीजा ये हुआ कि यश-कीर्ति आई। धर्म की साथ है ये कहा जाने लगा। सचमुच कुछ दे या नहीं, दान की बातें हो रही हैं। लक्ष्मी आई या नहीं, इसके बारे में तो खैर, कुछ कहने की भी जरुरत नहीं रह गयी है।

सत्य को भगवद्गीता के आधार पर देखें तो ये सत्रहवें अध्याय के तेईसवें श्लोक के हिसाब से देखें तो तीन नामों से परमात्मा का निर्देश दिया गया है –

तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।।17.23

अर्थात, ऊँ, तत् और सत् -- इन तीनों नामों से जिस परमात्मा का निर्देश किया गया है, उसी परमात्मा ने सृष्टि के आदि में वेदों, ब्राह्मणों और यज्ञों की रचना की है।

अगर दूसरे अध्याय के सोलहवें श्लोक में देखें तो वहाँ भी सत्य की चर्चा आती है –

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।2.16

यहाँ कहा गया है कि असत्य की तो सत्ता ही नहीं है, यानि वो होता ही नहीं, और सत्य कभी विद्यमान न हो, ऐसा भी नहीं होता। इसके अलावा भी अलग-अलग स्थानों पर भगवद्गीता में माया और सत्य के अंतर पर बातें हुई हैं। अगर सत्रहवें अध्याय के तेईसवें श्लोक से पहले देखेंगे तो वहाँ दान के विषय में भी चर्चा मिल जाएगी।

बाकी किसी पुरानी सी, नैतिकता की कहानी के जरिये आप ये भी सीख सकते हैं कि शासन-सत्ता को मुफ्तखोरी को बढ़ावा क्यों नही देना चाहिए। आंनद कुमार कहते हैं कि जो भगवद्गीता के श्लोको के सम्बन्ध में बताया वो नर्सरी स्तर का है, और पीएचडी के लिए आपको खुद ही पढ़ना होगा !!
।।।।
नितांत ताज़ा उदाहरण हम अपने पड़ोसी श्रीलंका का देख सकते हैं, तत्कालीन सहानुभुति बटोरने वहां के शाशन ने फ्री की सुविधाएं शुरू की, अब वहां सरदर्द की गोली लेने भी लम्बी लाइन में लगना पड़ रहा, रसोई गैस - अन्य जीवनोपयोगी सामग्री का अभाव हो गया , गृहयुद्ध से हालात । आज ही आपातकाल लागू किया गया है । फ्री की स्कीम सिर्फ तबाही ही लाती है ...

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

 

आज के दिन/ सुनी सुनाई...
एक बेटी ने जब सुनाई अपनी यादें ...

उन दिनों जब फोन का मतलब बस लैंडलाइन फोन ही होता था। लोग एक बार घर से बाहर गए तो कह कर जाते थे, कहीं एसटीडी मिली तो कॉल करेंगे। तब न तो कोई हड़बड़ाहट थी और न ही कोई फिक्र! कम बात होने के बाद भी एक तसल्ली थी जीवन मे। किसी का कॉल आता, तो कोशिश रहती कि 60 सेकेंड से पहले फोन रख दें, क्योंकि दूसरे मिनट लगते ही दो कॉल के पैसे लग जाएंगे।

खैर, मुझे यह सब क्यों याद आया?

आज पहली अप्रैल है। और बचपन से लेकर अब तक पापा को अप्रेल फूल बनाना मेरा प्रिय शगल हुआ करता है।

जब घर में लैंडलाइन था, तो उसमें 162 डायल करने पर अपने ही फोन पर रिंग बजती थी। मैं हर साल 162 डायल कर के फोन रखती। फोन की घण्टी बजती और मैं उठाकर कहती...पापा आपका कॉल है!

पापा आते हेलो हेलो करते और मैं ताली बजा बजाकर हँसती...अप्रेल फूल बनाया:-) सालों से पापा को सेम तरीके से अप्रेल फूल बनाती। और वो बन भी जाते। और मुस्कराते।

अब जब दूर रहती हूँ तब भी हर साल फोन कर के कुछ न कुछ कहकर अप्रेल फूल बनाती ही हूँ। आज भी यही हुआ। पापा बन भी गए...और मैं ज़ोरों से चिल्लाई ; अप्रेल फूल  अप्रेल फूल और पापा कहने लगे अरे..आज अप्रेल फूल डे है क्या?? तूने तो सुबह सुबह फूल बना दिया!

मैं एकदम खुश थी तब पीछे से माँ की आवाज़ आई;

"अरे आपको 5 मिनट पहले ही तो बताया था कि आज 1 अप्रेल है। वो जरूर फोन करेगी, उसकी बातों में मत आना और आज तो अप्रेल फूल मत ही बनना"

माँ की बात सुनकर मुझे पता चला कि, सालों से मैं नहीं...बल्कि पापा ही जानबूझकर अप्रेल फूल बनकर, मुझे ही फूल बनाते हैं। और जब मैं हँसती हूँ तो वो मन ही मन मुस्कराते हैं।

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