सोमवार, 28 मार्च 2022

असलियत

 


एक होटल से हर रोज़ एक व्यक्ति खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाता था। होटल पर ग्राहकों की भीड़ भी इतनी ज़्यादा होती थी की एक आदमी का बिना पैसे दिये चले जाना कोई मुश्किल भी नहीं था।
जो लोग रोज़ वहाँ खाना खाने आते थे उस व्यक्ति को देख आपस में ज़िक्र करते की यहाँ ग्राहकों की भीड़ इतनी होती है की यह रोज बिना पैसे दिये मुफ़्त में खाना खाकर चला जाता है।
एक दिन किसी ने होटल के मालिक से इस बात की चर्चा की। एक आदमी है जो हर रोज़ आपके होटल से खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाता है आप क्यों नहीं इस तरफ़ ध्यान देते। जो जवाब होटल के मालिक ने दिया शायद उस पर हर कोई विश्वास ना कर पाये:-
उसने कहा की मैं यह सब देख रहा हूँ और जानता भी हूँ की यह बिना बिल चुकायें खाना खाकर चला जाता है। आप जो इस होटल में ग्राहकों की भीड़ देख रहे हो यह केवल इस व्यक्ति के कारण ही है। क्योंकि यह सुबह से ही यहाँ आकर खड़ा हो जाता है और इन्तज़ार करता है ग्राहकों की उस भीड़ का जिसमें से यह आसानी से खाना खाकर बिना पैसे दिये चला जाये।
मेरा यह मानना है की यह ज़रूर प्रभु से प्रार्थना करता होगा की ग्राहकों की भीड़ इकट्ठा हो और यह चुपचाप खाना खाकर चला जाये। इस की इस प्रार्थना की वजह से ही मेरा होटल ग्राहकों से भरा रहता है। मैं कैसे इससे कहूँ की तुम मुफ़्त में खाना खाकर चले जाते हो।

*यह एक बहुत ही गहरी सोच वा सीख हो सकती है उस समाज के लिये जो सोचते हैं कि मेरी मेहनत से ही मैं पैसा कमा रहा हूँ जबकि असलियत यह होती है की कहीं ना कहीं इसमें किसी ना किसी का योगदान प्रार्थना व आशीर्वाद ज़रूर होता है*

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रविवार, 27 मार्च 2022

आत्मा से तृप्त

 

*पसंद उसे कीजिए,*
*जो आप में परिवर्तन लाए ।* 
*वरना प्रभावित तो* 
*मदारी भी कर लेते हैं ।*
 

*दिल्ली बस स्टैंड पर बैठा मैं पंजाब आने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस काउंटर पर नही लगी थी।*

*मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। मेरे को देखकर कोई 10 एक* *साल की बच्ची मेरे पास आकर* *बोली, "बाबू पैन ले लो,10 के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है कुछ खा लूंगी।"*

*उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका।*

*मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए।   *पर उसका जवाब इतना प्यारा था,* *"उसने कहा, फिर हम कुछ खाएंगे कैसे ?"*

*मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर।*

*मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया। पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा,"बाबू जी! एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे"।*

* मैं हैरान हो गया जवाब सुन के !*
*मैंने दुबारा कहा: "रख लो दोनों , कोई बात नहीं।"*

*फिर आत्मा को झिझोड़ दिया उसके के जवाब ने। उसने कहा: "तो फिर आप क्या खाओगे"?*

*मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा कि ये होते हैं आत्मा के तृप्त लोग।*

*बेशक कपड़े होण मैले,*
*पर इज्जत होवे कजी।*
*ढिडों बेशक भुखा होवे,* 
*पर रूह होवे रज्जी।*                                     
     *अपने देश के ही संस्कार हैं ये, गरीब हैं तो क्या हुआ !!*

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शनिवार, 26 मार्च 2022

गरीब की झोपड़ी

 

एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात को जोरों की वर्षा हो रही थी. सज्जन था, छोटी सी झोपड़ी थी . स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे. आधीरात किसी ने द्वार पर दस्तक दी।

उन सज्जन ने अपनी पत्नी से कहा - उठ! द्वार खोल दे. पत्नी द्वार के करीब सो रही थी . पत्नी ने कहा - इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई अगर शरण माँगेगा तो तुम मना न कर सकोगे?

वर्षा जोर की हो रही है. कोई शरण माँगने के लिए ही द्वार आया होगा न! जगह कहाँ है? उस सज्जन ने कहा - जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी.   तू दरवाजा खोल!

लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है. दरवाजा खोला. कोई शरण ही माँग रहा था. भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी . वह अंदर आ गया . तीनों बैठकर गपशप करने लगे . सोने लायक तो जगह न थी .

थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी. फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा - खोल ! पत्नी ने कहा - अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? अगर किसी ने शरण माँगी तो?

उस सज्जन ने कहा - अभी बैठने लायक जगह है फिर खड़े रहेंगे . मगर दरवाजा खोल! जरूर कोई मजबूर है . फिर दरवाजा खोला . वह अजनबी भी आ गया . अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे . इतना छोटा झोपड़ा ! और खड़े हुए चार लोग!

और तब अंततः एक कुत्ते ने आकर जोर से आवाज की . दरवाजे को हिलाया . फकीर ने कहा - दरवाजा खोलो . पत्नी ने दरवाजा खोलकर झाँका और कहा - अब तुम पागल हुए हो!

यह कुत्ता है . आदमी भी नहीं! सज्जन बोले - हमने पहले भी आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था!!  हमारे लिए जानवर और इंसान में क्या फर्क?

हमने मदद के लिए दरवाजा खोला था . उसने भी आवाज दी है . उसने भी द्वार हिलाया है . उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम करना है . दरवाजा खोलो!

उनकी पत्नी ने कहा - अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा - अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर थोड़े सटकर खड़े होंगे . और एक बात याद रख ! यह कोई अमीर का महल नहीं है , कि जिसमें जगह की कमी हो!

यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!! जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह दिलों में होती है!

अक्सर आप पाएँगे कि गरीब कभी कंजूस नहीं होता! उसका दिल बहुत बड़ा होता है!!

कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं . पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है, उसमें मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है .

जरूरतमंद को अपनी क्षमता अनुसार शरण दीजिए . दिल बड़ा रखकर अपने दिल में औरों के लिए जगह जरूर रखिये ।।

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रविवार, 20 मार्च 2022

मीठे बोल

 


         एक बार एक राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गये है, केवल सामने का एक बड़ा दाँत ही मुँह में बचा हैं।
         सुबह राजा ने दरबार में अपना स्वप्न सुनाया, और उसका प्रतिफल जानना चाहा। मंत्रियों ने सलाह दी कि स्वप्न विशेषज्ञों को बुलाकर स्वप्न का फलादेश पूछा जायें।
         राज्य में ढिंढोरा फिरवा कर घोषणा कि गयी कि जो भी विद्वान, ज्ञानी, राजा को उनके स्वप्न का फलादेश बतायेगा, उसे उचित ईनाम दिया जायेगा। कई व्यक्ति दरबार में आये, परन्तु कोई भी राजा को सही जवाब से संतुष्ट नहीं कर सका।
         एक दिन एक विद्वान व्यक्ति जिसने काशी से विद्या प्राप्त की थी, दरबार में आया और बोला.....
          "महाराज! मैं आपके स्वप्न का सही फलादेश बता सकता हूँ।"
        राजा सहित सभी दरबारी जिज्ञासा से उस व्यक्ति की ओर देखने लगे।
         राजा ने अपना स्वप्न सुनाकर कर कहा,"बताइये मेरे इस स्वप्न का फलादेश क्या है?"
         उस व्यक्ति ने कहा.. "राजन! आपका यह स्वप्न तो बहुत बेकार है। इसके फल स्वरूप आपके सामने ही आपके परिवार के सभी सदस्य मर जायेगें और आप सबके बाद मरेगें।"
         यह सुनते ही राजा को क्रोध आगया और उस व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया।
         दूसरे दिन एक साधारण सा व्यक्ति दरबार में आया और बोला, "राजन! आप अपना स्वप्न मुझे बताइयें, मैं उसका सही फलादेश बताने की कोशिश करुगाँ।"
         राजा ने अपना स्वप्न सुनाया,स्वप्न सुनकर वह व्यक्ति कुछ देर सोचने के बाद बोला......
         "राजन! यह बहुत ही अच्छा स्वप्न आया हैं आपको। हम सभी प्रजा जन पर ईश्वर की विशेष कृपा है कि आप जैसे धर्मात्मा, पुण्यात्मा और प्रजापालक राजा को दीर्घायु (लंबी आयु) दी हैं। राजन आपके परिवार में आपकी आयु सबसे लंबी होगी। इस राज्य का यह सौभाग्य है कि आप कई वर्षो तक राज्य करेगें।"
         स्वप्न का फलादेश सुनकर राजा बहुत खुश हुआ, और उस व्यक्ति का विशेष सम्मान कर उसे काफी धन दिया।
         दोनों ही व्यक्तियों ने स्वप्न का एक ही फलादेश बताया, दोनो का एक ही मतलब था। फिर भी एक व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल भेजा गया और दूसरे को विशेष सम्मान कर उसे धन-दौलत का ईनाम मिला! *क्यों?*
         क्योंकि एक व्यक्ति ने महान विद्वान होते हुए भी अपने उत्तर और बोलने में उचित शब्दो का प्रयोग नहीं किया, जबकि दुसरे व्यक्ति ने, साधारण होते हुए भी अपने उत्तर और बातचीत में उचित और सही शब्दो का प्रयोग किया।
         निष्कर्ष: *हमारी रोज की बोलचाल, बातचीत और व्यवहार में शब्दों का ही विशेष महत्व होता है।*
          *उचित, सम्मानित शब्दों के प्रयोग और मीठा और सभ्य बोलने के तरीके से दुश्मन के मन में भी प्यार भर जाता है,और ऐसे ही गलत शब्दों के प्रयोग असभ्य,अमर्यादित व रूखा बोलने के तरीकों से अपनों के दिलो में भी नफरत पैदा कर हो जाती है।*

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शनिवार, 19 मार्च 2022

बहती धारा

 

गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे।

एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा।

जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा, “आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा…चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।”

वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा– रुक जा गंगा….अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती….मैं तुझे यहीं रोक दूंगा!

पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी…उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।

पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी.. वो लगातार संघर्ष कर रहा था…नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा, जहां लड़कर.. थककर.. हारकर पहुंचेगा!

पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. उसके संताप का काल बन जाएगा।

वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था।

यह कहता हुआ कि “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…
चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा….तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।"

नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी। पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है ,कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।

आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है!

पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का…. उसके आनंद का काल बन जाएगा।
जो पत्ता नदी से लड़ रहा है…उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है

और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार का कोई उपाय संभव नहीं है।

हमारा जीवन भी उस नदी के सामान है जिसमें सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं ...

और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकने का प्रयास भी करता है, तो वह मूर्ख है

क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है।

वह अज्ञान में है जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है ।

क्योंकि सुख की धारा जितने दिन बहनी है... उतने दिन तक ही बहेगी। आप उसे बढ़ा नहीं सकते,
और अगर आपके जीवन में दुःख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा, फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की फ़िज़ूल मेहनत करना।

बल्कि जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश हो कर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ....
जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो।

सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ।
 
और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या? और दुःख क्या ?

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सोमवार, 14 मार्च 2022

लक्ष्य

 

मित्र ने बताया कि वे  एक ओपन नेशनल स्पोर्ट्स टूर्नामेंट को लाईव देख रहे थे ।

एक मैच देखा जिसमें एक ओर धामपुर (उत्तर प्रदेश) का एक साधारण सा दिखने वाला लड़का दिल्ली के एक हाई फाई लड़के से भिड़ रहा था।

दिल्ली के लड़के की जुराब की कीमत उतनी ही थी जितनी धामपुर के लड़के ने पूरी किट पहन रखी थी।

टूर्नामेंट नॉयडा में था। दिल्ली के लड़के के साथ भरपूर पब्लिक स्पोर्ट था। धामपुर के लड़के के स्पोर्ट में केवल उसका कोच खड़ा था।

दिल्ली का लड़का जब पॉइंट स्कोर करता तो आस पास खड़े स्पोर्ट करने वालों की तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठता।

धामपुर का लकड़ा पॉइंट स्कोर करता तो कोच की शाबाशी की आवाज़ सुनाई देती।

पहला सेट धामपुर का लड़का जीत गया।
दूसरे सेट में धमपुर का लड़का पब्लिक की हूटिंग से स्पष्ट रूप से प्रभावित दिखाई दिया। उसकी एकाग्रता डोलती दिखाई दी। पब्लिक के तानों की गूंज उनके चेहरे पर दबाव जमाने लगी। दिल्ली के लड़के ने मौके का फायदा उठाते हुये वापसी की और दूसरा सेट जीत लिया।

तीसरा सेट शुरु होने को था। मैं धामपुर के लड़के के बगल में खड़ा था। कोच ने लड़के से कहा......"आसपास मत देख बस अपनी गेम की ओर देख।"

लड़के ने जब यह बात सुनी तो उसके चेहरे पर एक चमक आ गयी।

फ़ाइनल सेट शुरू हुआ तो धामपुर का लड़के की बॉडी लैंग्वेज देखने लायक थी।

ऐसा लगा के उसे आस पास खड़े दिल्ली के लौंडे के स्पोर्टस की हूटिंग सुनाई ही नहीं दे रही।

वह एकाग्रचित्त था।

उसकी आँखें उसके प्रतिद्वंद्वी की ओर थी और ऐसा लगा के उसके कानों ने प्रतिद्वंद्वी के समर्थकों के तानों को सुनना बंद कर दिया है।।

उसका पूरा ध्यान ......पूरी कॉनसन्ट्रेशन.....पूरी एकाग्रता अपने लक्ष्य की ओर ओर थी .....और लक्ष्य अपने प्रतिद्वंद्वी को पराजित करना था।

हुआ भी कुछ ऐसा ही।

धामपुर के एक साधारण से दिखने वाले लड़के ने दिल्ली के हाई फाई लौंडे को फ़ाइनल सेट में यूँ हराया ..........यूँ हराया के एक बार तो दिल्ली के लौंडे के समर्थक भी धामपुर के लड़के के लिये तालियाँ पीटने लगे।

धामपुर का लड़का मैच जीता ......बड़ी ही विनम्रता और शालीनता से दिल्ली के लौंडे की ओर गया और उससे हाथ मिलाया और फिर एक नज़र उन महानुभावों की ओर दौड़ाई जो उसके ख़िलाफ़ हूटिंग कर रहे थे .....फ़्तबियाँ कस रहे थे.....अनाप शनाप बातें कह रहे थे।

प्रतिद्वंद्वी चुप था और प्रतिद्वंद्वी के सर्मथन में खड़ी भीड़ चुप थी। जो कुछ समय पहले चीख चिल्ला रहे थे वह शांत हो चुके थे।।

निष्कर्ष क्या था?

खेल खेलते समय बाहर बैठे दर्शकों की परवाह करने वाला कभी खेल में विजयी नहीं हो सकता।

कारवां निकल जाता है और 🐕  भौंकते रहते हैं।

सोचिये।

अगर हम यह सोचेंगे .......के दुनिया क्या सोचेगी.....तो दुनिया क्या सोचेगी।

इसलिये दुनिया जो सोचती है....जो कहती है ....कहने दीजिये .....चीखने दीजिये....चिल्लाने दीजिये। उनके चीखने चिल्लाने से बेखबर और बेअसर अपने लक्ष्य की ओर एकाग्रचित्त होकर बढ़ते रहेगी।

इतना याद रखिये के ......कुत्ते भौंकते रहते हैं....और कारवां निकल जाता है।

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रविवार, 13 मार्च 2022

जीवन कैसे जीना

 

एक बार यूनान के मशहूर दार्शनिक सुकरात भ्रमण करते हुए एक नगर में गये।वहां उनकी मुलाकात एक वृद्ध सज्जन से हुई। दोनों आपस में काफी घुल मिल गये।

*वृद्ध सज्जन आग्रहपूर्वक सुकरात को अपने निवास पर ले गये।भरा-पूरा परिवार था उनका, घर में बहु- बेटे, पौत्र-पौत्रियां सभी थे।*

सुकरात ने वृद्ध से पूछा- “आपके घर में तो सुख-समृद्धि का वास है। वैसे अब आप करते क्या हैं?" इस पर वृद्ध ने कहा- “अब मुझे कुछ नहीं करना पड़ता। ईश्वर की दया से हमारा अच्छा कारोबार है, जिसकी सारी जिम्मेदारियां अब बेटों को सौंप दी हैं।घर की व्यवस्था हमारी बहुयें संभालती हैं। इसी तरह जीवन चल रहा है।"

*यह सुनकर सुकरात बोले-"किन्तु इस वृद्धावस्था में भी आपको कुछ तो करना ही पड़ता होगा। आप बताइये कि बुढ़ापे में आपके इस सुखी जीवन का रहस्य क्या है?"*

वह वृद्ध सज्जन मुस्कुराये और बोले- *“मैंने अपने जीवन के इस मोड़ पर एक ही नीति को अपनाया है कि दूसरों से अधिक अपेक्षायें मत पालो और जो मिले, उसमें संतुष्ट रहो।*  मैं और मेरी पत्नी अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व अपने बेटे- बहुओं को सौंपकर निश्चिंत हैं। अब वे जो कहते हैं, वह मैं कर देता हूं और जो कुछ भी खिलाते हैं, खा लेता हूं।अपने पौत्र- पौत्रियों के साथ हंसता-खेलता हूं। मेरे बच्चे जब कुछ भूल करते हैं । तब भी मैं चुप रहता हूं । मैं उनके किसी कार्य में बाधक नहीं बनता। पर जब कभी वे मेरे पास सलाह-मशविरे के लिए आते हैं तो मैं अपने जीवन के सारे अनुभवों को उनके सामने रखते हुए उनके द्वारा की गई भूल से उत्पन्न् दुष्परिणामों की ओर सचेत कर देता हूं । *अब वे मेरी सलाह पर कितना अमल करते या नहीं करते हैं, यह देखना और अपना मन व्यथित करना मेरा काम नहीं है। वे मेरे निर्देशों पर चलें ही, मेरा यह आग्रह नहीं होता। परामर्श देने के बाद भी यदि वे भूल करते हैं तो मैं चिंतित नहीं होता।* उस पर भी यदि वे मेरे पास पुन: आते हैं तो मैं पुन: सही सलाह देकर उन्हें विदा करता हूं।

*बुजुर्ग सज्जन की यह बात सुन कर सुकरात बहुत प्रसन्न हुये। उन्होंने कहा- “इस आयु में जीवन कैसे जिया जाए, यह आपने सम्यक समझ लिया है।*

*यह कहानी सबके लिए है।अगर आज आप बूढ़े नही हैं तो कल अवश्य होंगे ।* इसलिए आज *बुज़ुर्गों की 'इज़्ज़त' और 'मदद' करें जिससे कल कोई आपकी भी 'मदद' और 'इज़्ज़त' करे ।*
*याद रखें जो ---- आज दिया जाता है वही कल प्राप्त होता है।*

*अपनी वाणी में सुई भले ही रखो, पर उसमें धागा जरूर डालकर रखो, ताकि सुई केवल छेद ही न करे आपस में माला की तरह जोडकर भी रखे।*

*वरिष्ठ नागरिक घर में वाणप्रस्थी*
  *बनकर रहने का अभ्यास करें।*
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शनिवार, 12 मार्च 2022

टाइमिंग

 

दो दोस्त थे, दोनों एक बार एक चर्च के सामने से गुजर रहे थे। एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से पूछा कि यार ये बताओ कि क्या हम प्रार्थना करते हुए सिगरेट पी सकते हैं? दूसरे दोस्त ने कहा कि बिल्कुल नहीं। प्रभु को याद करते हुए सिगरेट को पीना पाप है। उसका दोस्त नहीं माना, उसने कहा कि पादरी से पूछ कर आओ।

दोस्त चर्च के भीतर गया और उसने पादरी से पूछा कि फादर क्या हम प्रार्थना करते हुए सिगरेट पी सकते हैं?
पादरी ने कहा, “नहीं मेरे बच्चे। प्रार्थना के दौरान सिगरेट नहीं पीनी चाहिए। ये पाप होगा।”

पादरी की बात सुन कर वो दोस्त मुस्कुराया और उसने कहा देखा मैंने क्या कहा था?

दूसरे दोस्त ने पहले से कहा, "रुको। अब मैं पूछता हूं।"

दूसरा दोस्त उसी पादरी के पास गया और उसने पूछा, फादर एक सवाल दिल में है, क्या मैं पूछ सकता हूं? पादरी ने कहा, "हां, मेरे बच्चे, पूछो।"

उसने पूछा, फादर क्या मैं सिगरेट पीते हुए प्रभु की प्रार्थना कर सकता हूं?

पादरी ने दोनों हाथ फैला कर कहा, हां मेरे बच्चे। प्रार्थना के लिए कोई समय नहीं होता। तुम जब चाहो प्रार्थना कर सकते हो, प्रभु को याद कर सकते हो।

अब आप देखिये पादरी ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। उसने एक से कहा कि प्रार्थना के दौरान सिगरेट नहीं पीनी चाहिए, दूसरे से कहा कि सिगरेट पीते हुए प्रार्थना कर सकते हो। बात एक थी, मसला भी एक था। लेकिन नतीजे दो थे।

कामयाबी के लिए जरुरी ये नहीं कि आप क्या कह रहे हैं, जरुरी होता है कि कैसे कह रहे हैं। इसलिए  किसी का काम बन जाता है, किसी का काम अटक जाता है। आप कुछ भी सोच सकते हैं, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि हम किस वक्त किस तरीके से खुद को प्रस्तुत करते हैं, ये सबसे अहम होता है। अंग्रेजी में इसे टाइमिंग कहते हैं। टाइमिंग अर्थात सही समय पर सही तरीके से अपनी बात को रखना।

जीवन में हमें यह बात सदैव स्मरण रखनी चाहिए।

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रविवार, 6 मार्च 2022

अवसर का लाभ

 

एक गाँव में एक अर्थविद रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया।

काफी देर चर्चा के बाद उसने कहा "महाशय, आप बहुत बडे अर्थ ज्ञानी है, पर आपका लडका इतना मूर्ख क्यों है? उसे भी कुछ सिखायें। उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नही पता॥"
यह कहकर वह जोर से हंस पडा।

अर्थविद को बुरा लगा, वह घर गया व लडके से पूछा "सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है?"

"सोना", बिना एकपल भी गंवाए उसके लडके ने कहा।

"तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं  कहा? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उठाई।"

लडके समझ मे आ गया, वह बोला "राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं, जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे हि पडता है।

मुझे देखते हि बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ मे सोने का व दूसरे मे चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं ऒर मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं।
सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं।
ऐसा तकरीबन हर दूसरे दिन होता है।"

"फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नही उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी।"

लडका हंसा व हाथ पकडकर अर्थविद को अंदर ले गया ऒर कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।

यह देख अर्थविद हतप्रभ रह गया।

लडका बोला "जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नही मिलेगा।"

*मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग। स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है हर मॊके को स्वर्ण मे तब्दील करना।*

*जैसे समुद्र सबके लिए समान होता है, कुछ लोग पानी के अंदर टहलकर आ जाते हैं, कुछ मछलियाँ ढूंढ पकड लाते हैं व कुछ मोती चुन कर आते हैं।*

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शनिवार, 5 मार्च 2022

वाणी का चयन

 


         एक बार एक राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गये है, केवल सामने का एक बड़ा दाँत ही मुँह में बचा हैं।
         सुबह राजा ने दरबार में अपना स्वप्न सुनाया, और उसका प्रतिफल जानना चाहा। मंत्रियों ने सलाह दी कि स्वप्न विशेषज्ञों को बुलाकर स्वप्न का फलादेश पूछा जायें।
         राज्य में ढिंढोरा फिरवा कर घोषणा कि गयी कि जो भी विद्वान, ज्ञानी, राजा को उनके स्वप्न का फलादेश बतायेगा, उसे उचित ईनाम दिया जायेगा। कई व्यक्ति दरबार में आये, परन्तु कोई भी राजा को सही जवाब से संतुष्ट नहीं कर सका।
         एक दिन एक विद्वान व्यक्ति जिसने काशी से विद्या प्राप्त की थी, दरबार में आया और बोला.....
          "महाराज! मैं आपके स्वप्न का सही फलादेश बता सकता हूँ।"
        राजा सहित सभी दरबारी जिज्ञासा से उस व्यक्ति की ओर देखने लगे।
         राजा ने अपना स्वप्न सुनाकर कर कहा,"बताइये मेरे इस स्वप्न का फलादेश क्या है?"
         उस व्यक्ति ने कहा.. "राजन! आपका यह स्वप्न तो बहुत बेकार है। इसके फल स्वरूप आपके सामने ही आपके परिवार के सभी सदस्य मर जायेगें और आप सबके बाद मरेगें।"
         यह सुनते ही राजा को क्रोध आ गया और उस व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया।
         दूसरे दिन एक साधारण सा व्यक्ति दरबार में आया और बोला, "राजन! आप अपना स्वप्न मुझे बताइयें, मैं उसका सही फलादेश बताने की कोशिश करुगाँ।"
         राजा ने अपना स्वप्न सुनाया,स्वप्न सुनकर वह व्यक्ति कुछ देर सोचने के बाद बोला......
         "राजन! यह बहुत ही अच्छा स्वप्न आया हैं आपको। हम सभी प्रजा जन पर ईश्वर की विशेष कृपा है कि आप जैसे धर्मात्मा, पुण्यात्मा और प्रजापालक राजा को दीर्घायु (लंबी आयु) दी हैं। राजन आपके परिवार में आपकी आयु सबसे लंबी होगी। इस राज्य का यह सौभाग्य है कि आप कई वर्षो तक राज्य करेगें।"
         स्वप्न का फलादेश सुनकर राजा बहुत खुश हुआ, और उस व्यक्ति का विशेष सम्मान कर उसे काफी धन दिया।

         दोनों ही व्यक्तियों ने स्वप्न का एक ही फलादेश बताया, दोनो का एक ही मतलब था। फिर भी एक व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल भेजा गया और दूसरे को विशेष सम्मान कर उसे धन-दौलत का ईनाम मिला!
*क्यों?*
         क्योंकि एक व्यक्ति ने महान विद्वान होते हुए भी अपने उत्तर और बोलने में उचित शब्दो का प्रयोग नहीं किया, जबकि दुसरे व्यक्ति ने, साधारण होते हुए भी अपने उत्तर और बातचीत में उचित और सही शब्दो का प्रयोग किया।
         निष्कर्ष: *हमारी रोज की बोलचाल, बातचीत और व्यवहार में शब्दों का ही विशेष महत्व होता है।*
          *उचित, सम्मानित शब्दों के प्रयोग और मीठा और सभ्य बोलने के तरीके से दुश्मन के मन में भी प्यार भर जाता है,और ऐसे ही गलत शब्दों के प्रयोग असभ्य,अमर्यादित व रूखा बोलने के तरीकों से अपनों के दिलो में भी नफरत पैदा कर हो जाती है।*

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