सोमवार, 27 दिसंबर 2021

वाणी का मोल

 

चिंतन के पल...

एक बूढ़ा राहगीर थक कर कहीं टिकने का स्थान खोजने लगा। एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया। बूढ़ा वहीं चैन से सो गया। सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए। बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी लकड़ियां इकठ्ठा की और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा। बटलोई उसने उसी महिला से मांग ली।

बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान बंटाते हुए कहा, 'एक बात कहूं.? बाड़े का दरवाजा कम चौड़ा है। अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया जाएगा.?' महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा, पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए।

उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी। इस बार बूढ़ा फिर उससे बोला: 'तुम्हारे हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है। यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा। ऐसे तो बहुत नुकसान हो जाएगा.?'

इस बार महिला से सहा न गया। वह भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी। चूल्हे की आग पर पानी डाल दिया। अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया।

तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया। उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे। रास्ते में लोगों ने पूछा, 'यह सब क्या है.?' बूढ़े ने कहा, 'यह मेरी जीभ का रस टपका है, जिसने पहले तिरस्कार कराया और अब हंसी उड़वा रहा है।'

तात्पर्य यह है के पहले तोलें फिर बोलें। चाहे कम बोलें मगर जितना भी बोलें, मधुर बोलें और सोच समझ कर बोलें।

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रविवार, 26 दिसंबर 2021

भारतीय रोटी

 

आज भूलवश 12 दिसम्बर वाली सामग्री ही फ़िर से भेजी गई, असुविधा हेतु छमाप्रार्थी हैं। रविवार है, तो यू ही कुछ चर्चा... गर्व कीजिये सनातन पर, सनातन दृष्टि पर, सोच पर...

साधारण रोटी की महिमा।
***
भारत के विशाल क्षेत्र में भोजन के समय रोटी खाई जाती है। कई लोग इस "साधारण" से दिखने वाले व्यंजन को चपाती या फुलका भी कहते है। चाहे गेंहू के आटे का फुलका हो, चने की मिस्सी रोटी; जवार एवं बाजरे का रोटला;  मक्के एवं मड़ुआ की चपाती; या फिर बाटी या लिट्टी।

इन सभी की पाक विधि भी अत्यधिक सरल है; ताम-झाम से दूर।  बस आवश्यकतानुसार किसी भी अन्न का पिसा आटा लिया; उसे किसी बर्तन या केले के पत्ते पर पानी मिलाकर सान लिया। छोटे-छोटे गोले बनाएं। एक गोले को हथेली पर चपटाकर दोनों हथेलियों पे अल्टा-पलटा; मनचाही मोटाई एवं गोलाई वाली रोटी का आकार दिया।  फिर सीधे लकड़ी, कोयला या फिर कंडे की आग पर डाल दिया। आग पर एक-दो बार अल्टा-पलटा और रोटी-चपाती-फुलका-बाटी तैयार।

आधुनिक समय में चकला-बेलन, चिमटा, तवा, गैस इत्यादि के आगमन से रोटी बनाने में कुछ उपकरण जुड़ गए है।  लेकिन अगर कोई भी उपकरण ना हो, तो केवल पानी, आटा, बड़ा पत्ता एवं आग से काम चल जाता है। 

आग से तुरंत निकली हुई उस रोटी पर घी-मक्खन लगाइये, या फिर सादी खाइए और खिलाइए।  साथ में 56 व्यंजन हो, या फिर कच्ची प्याज, हरी मिर्च हो, तब भी रोटी में वही स्वाद मिलेगा।

क्षेत्रानुसार रोटी कड़क हो सकती है; या फिर एकदम मुलायम। सतह पर अच्छी तरह से काले-भूरे गोले बने हो या फिर एक हल्का सा गुलाबी रंग। बीच में गर्म भाप भर जाए या फिर एकदम समतल रहे। क्षेत्र बदला; रूप-रंग बदला; आकार-प्रकार-स्वाद बदला। नहीं बदला तो बस बनाने की विधि।

दस हजार वर्ष  पहले जब कृषि का आविष्कार हुआ था, और हमारे पूर्वजों ने ज्वार-बाजरा-चना-गेहूँ इत्यादि की खेती की शुरुआत की, तब से भारतीय समाज में रोटी ऐसे ही बनाई और खाई जा रही है।

एक पल के लिए सोचिये।  सौ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज व्यापार, सामाजिक कार्य एवं उत्सव, युद्ध इत्यादि के लिए बैलगाड़ी, घोड़े या फिर तांगे पर निकलते थे। ना आधुनिक होटल, ना ही रेस्टोरेंट होते थे। जैसे ही सूर्यास्त होने को आया, वही डेरा डाल दिया। तब रोटी बनाने की यही साधारण सी तकनीकी उनको तृप्त रखती थी।

रोटी पर यह विचार इसलिए आया क्योंकि अभी पढ़ा कि टर्की में मंहगाई इतनी बढ़ गयी है कि वहां की सरकार को बनी-बनाई रोटियां बाजार भाव से अत्यधिक कम (सब्सिडी) दामों पर बेचना पड़ रहा है। सरकारी दुकानों से एक रोटी को लगभग सात रुपये में बेचा जा रहा है, जबकि बाजार भाव 25 रूपए है। ऐसी सरकारी दुकानों के बाहर प्रतिदिन लंबी लाइन लग रही है, जबकि प्राइवेट बेकरी वाले दिवालिया हुए जा रहे है।

कारण यह है कि गेंहू खाने वाले अधिकतर देशो में रोटी बनाने की प्रक्रिया थोड़ी भिन्न एवं जटिल है। इन देशो में मैदा के सने आटे में खमीर उठाया जाता है जिसमे कुछ घंटे से लेकर एक दिन तक लग सकता है। तद्पश्चात उस आटे को हाथ से लंबी-मोटी या फिर बड़े कटोरे जैसी ब्रेड या फिर तंदूरी रोटी से कुछ मोटी ब्रेड का आकार दिया जाता है।  कुछ घंटे फिर उस ब्रेड में खमीर उठने दिया जाता है। फिर उसे एक धधकते हुए तंदूर में, जिसमे तापमान 250 डिग्री सेल्सियस से अधिक मेंटेन रखा जाता है - उसमे कुछ मिनट से लेकर आधे घंटे तक ब्रेड को पकाया जाता है। ब्रेड निकलने के बाद उसे कुछ देर ठंडा होने देते है क्योकि गरम होने के कारण अंदर से ब्रेड अभी भी पक रही होती है।

तंदूर भी इतना बड़ा होता है जो आधुनिक फ्लैट के बाथरूम जितनी जगह ले लेता हैं। अधिक तापमान के लिए उसमे अत्यधिक लकड़ी, कोयला या फिर गैस की सप्लाई करनी पड़ती है।

फिर उस ब्रेड को बेचा जाता है।  चाहे खाड़ी के देश हो, यूरोप हो या अमेरिका, सभी जगह ब्रेड बाजार से खरीद कर खाई जाती है। प्रतिदन भोजन के समय ब्रेड को चाकू से काटकर या फिर हाथ से तोड़कर एक प्लेट में रख देते है और फिर उसे परोसा जाता है।

लेकिन इस जटिलता के कारण अधिकतर घरो में नियमित रूप से ब्रेड नहीं बनती है।

हमें अपने पूर्वजो की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने रोटी पकाने की प्रक्रिया को इतना आसान रखा कि वह असाधारण रोटी हर घर में प्रतिदिन बनाई जाती है। परिवार के साथ दाल-भात-तरकारी के साथ खाई जाती है।

चाहे ईंट भट्टे पे या किसी निर्माण स्थल पर काम करने वाला मजूर हो, या मंदिर में भजन गा रहे भक्त, साधू-संत; छह ईंट जोड़कर एक साधारण से चूल्हे पर या कुछ कंडे जलाकर  वह प्रतिदिन ताज़ी रोटी बनाते है।

एक साधारण रोटी में भी सनातनी अंतर्दृष्टि व्याप्त है।

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समाधान

 

किसी शहर में एक व्यक्ति था, वह हमेशा दु:खी रहा करता था, क्योंकि उसकी समस्याएँ कभी खत्म नहीं नहीं होती थी। इसीलिए धीरे-धीरे उसे ऐसा लगने लगा कि उससे दु:खी व्यक्ति संसार में कोई और नहीं है।

उसकी बातें तक कोई सुनना नहीं चाहता था क्योंकि हमेशा वो नकारात्मक बातें ही किया करता था। इस बात से तो वह और परेशान हो जाता कि उसकी बात कोई सुनने वाला नहीं है।       

एक दिन उसे पता चला कि शहर में कोई महात्मा आने वाले है। जिनके पास सभी समस्याओं का समाधान है। यह जानकार वह महात्मा के पास पहुंचा। उस महात्मा के साथ हमेशा एक काफिला चला करता था जिसमें कई ऊंट भी थे ।

महात्मा के पास पहुँच कर उस व्यक्ति ने कहा – गुरुजी, सुना है कि आप सभी समस्याओं का समाधान करते है। मैं बहुत दु:खी व्यक्ति हूँ। मेरे इर्द-गिर्द हमेशा बहुत सारी समस्याएँ रहती है। एक को सुलझाता हूँ तो दूसरी पैदा हो जाती है । मैं अपनी आपबीती किसी को सुनता हूं तो कोई सुनता ही नहीं है। दुनिया बड़ी मतलबी हो गयी है। अब आप ही बताइये क्या करूँ ?       

महात्मा ने उसकी बातें ध्यान से सुनी और कहा – भाई, मैं अभी तो बहुत थक गया हूँ परंतु कल सुबह मैं तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा। इस बीच तुम मेरा एक काम कर दो, मेरे ऊंटों की देखभाल करने वाला आदमी बीमार है। आज रात तुम इनकी देखभाल कर दो
जब सभी ऊंट बैठ जाये तब तुम सो जाना। मैं तुमसे कल सुबह बात करूंगा ।

अगले दिन महात्मा ने उस आदमी को बुलाया। उसकी आंखे लाल थी। महात्मा ने पूछा – तो बताओ कल रात कैसी नींद आयी ?

व्यक्ति बोला – गुरुजी, मैं तो रात भर सोया ही नहीं। आपने कहा था जब सभी ऊंट बैठ जाये तब सो जाना। पर ऐसा नहीं हुआ जब भी कोशिश करके एक ऊंट को बिठाता दूसरा खड़ा हो जाता। सारे ऊंट बैठे ही नहीं इसीलिए मैं भर रात सो नहीं सका।  

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा – मैं जानता था कि इतने ऊंट एक साथ कभी नहीं बैठ सकता, फिर भी मैंने तुम्हें ऐसा करने को कहा।

यह सुनकर व्यक्ति क्रोधित होकर बोला – महात्मा जी, मैं आपसे हल मांगने आया था पर आपने भी मुझे परेशान कर दिया।

महात्मा बोले – नहीं भाई, दरअसल यह तुम्हारे समस्या का समाधान है। संसार के किसी भी व्यक्ति की समस्या इन ऊंटों की तरह ही है। एक खत्म होगी तो दूसरी खड़ी हो जाएगी । अतः सभी समस्याओं के खत्म होने का इंतज़ार करोगे तो कभी भी चैन से नहीं जी पाओगे।

समस्याएँ तो जीवन का ही अंग है। इन्हें महसूस करते हुए जीवन का आनंद लो। जीवन में सहज रहने का यही एक उपाय है। दुनिया के किसी भी व्यक्ति को तुम्हारी समस्याएँ सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्यूं की उनकी भी अपनी समस्याएँ है। महात्मा जी की बात सुनकर व्यक्ति के चेहरे पर संतोष और सहजता के भाव उमड़ पड़े। मानो उसे अपनी सभी समस्याओं से निपटने का अचूक मंत्र प्राप्त हो गया हो।

अतः समस्याओं से घबराये नहीं ।।  उनका डटकर सामना करें । आत्मविश्वास बनाये रखें और भरपूर जीवन जियें । सदैव मस्त रहें ।

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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

महक

 



*“अच्छा, मेरा स्टेशन आ गया है, मैं चलता हूँ, ईश्वर ने चाहा तो फिर मुलाकात होगी।"* इतना कह वो अपना बैग उठा ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे तक पहुँच गये।

मैं अवाक् हो उनका सीट से उठना और दरवाजे की ओर जाना देख रहा था। इतने समय का साथ और उनसे बातचीत का दौर अब अंतिम पड़ाव पर था। रेलगाड़ी की रफ़्तार धीरे-धीरे कम होती गयी और वारंगल स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म आ गया। ट्रेन के रुकते ही उन्होंने मुझे एक बार देखा और एक मधुर मुस्कान के साथ हाथ हिला कर उतर गए। मेरी नज़र उनका पीछा करती रही  पर कुछ ही क्षण में वो मेरी आँखों से ओझल हो गए। रेलगाड़ी कुछ समय के पश्चात सीटी बजाने के बाद चलने लगी और फिर उसने गति पकड़ ली।मैं बीते हुए समय के भंवर से बाहर आया और अपने आसपास देखा... कुछ नहीं बदला था, बस वो नहीं थे, जो पिछले 9-10 घंटे से मेरे साथ यात्रा कर रहे थे। अचानक मुझे उनके बैठे हुए स्थान से भीनी खुशबू का एक झोंका आता प्रतीत हुआ। मैंने आश्चर्य से एक स्लीपर क्लास रेलगाड़ी के डब्बे में फैली खाने की गंध, टॉयलेट से आती बदबू और सहयात्रियों के पसीने की बदबू की जगह एक भीनी महक से मेरा मन प्रसन्न हो गया।

*परन्तु मेरे जहन में सवाल ये था कि इस बदबू भरे वातावरण में यह भीनी-भीनी खुशबू कैसे फैली ???*

ये जानने के लिए आपको मेरे साथ दस घंटे पहले के क्षणों में जाना होगा।मैं चेन्नई में कार्यरत था और मेरा पैतृक घर भोपाल में था। अचानक घर से पिताजी का फ़ोन आया कि तुरन्त घर चले आओ, कोई अत्यंत आवश्यक कार्य है। मैं आनन फानन में रेलवे स्टेशन पहुंचा और तत्काल रिजर्वेशन की कोशिश की परन्तु गर्मी की छुट्टियाँ होने के कारणवश एक भी सीट उपलब्ध नहीं थी।

सामने प्लेटफार्म पर ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस खड़ी थी और उसमें भी बैठने की जगह नहीं थी, परन्तु... मरता क्या नहीं करता, घर तो कैसे भी जाना था। बिना कुछ सोचे-समझे सामने खड़े स्लीपर क्लास के डिब्बे में  घुस गया। मैंने सोचा... इतनी भीड़ में रेलवे टी.टी. कुछ नहीं कहेगा। डिब्बे के अन्दर भी बुरा हाल था। जैसे-तैसे जगह बनाने हेतु एक बर्थ पर एक सज्जन को लेटे देखा तो उनसे याचना करते हुए बैठने के लिए जगह मांग ली। सज्जन मुस्कुराये और उठकर बैठ गए और बोले-- *"कोई बात नहीं, आप यहाँ बैठ सकते हैं।"*

मैं उन्हें धन्यवाद दे, वही कोने में बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया और रफ़्तार पकड़ ली। कुछ मिनटों में जैसे सभी लोग व्यवस्थित हो गए और सभी को बैठने का स्थान मिल गया, और लोग अपने साथ लाया हुआ खाना खोल कर खाने लगे। पूरे डिब्बे में भोजन की महक भर गयी। मैंने अपने सहयात्री को देखा और सोचा... बातचीत का सिलसिला शुरू किया जाये। मैंने कहा-- *"मेरा नाम आलोक है और मैं  इसरो में वैज्ञानिक हूँ। आज़ जरुरी काम से अचानक मुझे घर जाना था इसलिए स्लीपर क्लास में चढ़ गया, वरना मैं ए.सी. से कम में यात्रा नहीं करता।"*

वो मुस्कुराये और बोले-- *"वाह ! तो मेरे साथ एक वैज्ञानिक यात्रा कर रहे हैं। मेरा नाम जगमोहन राव है। मैं वारंगल जा रहा हूँ। उसी के पास एक गाँव में मेरा घर है। मैं अक्सर शनिवार को घर जाता हूँ।"*

इतना कह उन्होंने अपना बैग खोला और उसमें से एक डिब्बा निकाला। वो बोले-- *“ये मेरे घर का खाना है, आप लेना पसंद करेंगे ?”*

मैंने संकोचवश मना कर दिया और अपने बैग से सैंडविच निकाल कर खाने लगा। जगमोहन राव ! ... ये नाम कुछ सुना-सुना और जाना-पहचाना सा लग रहा था, परन्तु इस समय याद नहीं आ रहा था।

कुछ देर बाद सभी लोगों ने खाना खा लिया और जैसे तैसे सोने की कोशिश करने लगे। हमारी बर्थ  के सामने एक परिवार बैठा था। जिसमें एक पिता, माता और दो बड़े बच्चे थे । उन लोगों ने भी खाना खा कर बिस्तर लगा लिए और सोने लगे। मैं बर्थ के पैताने में उकडू बैठ कर अपने मोबाइल में गेम खेलने लगा।

रेलगाड़ी तेज़ रफ़्तार से चल रही थी। अचानक मैंने देखा कि सामने वाली बर्थ पर 55-57 साल के जो सज्जन लेटे थे, वो अपनी बर्थ पर तड़पने लगे और उनके मुंह से झाग निकलने  लगा। उनका परिवार भी घबरा कर उठ गया और उन्हें पानी पिलाने लगा, परन्तु वो कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे।मैंने चिल्ला कर पूछा-- *"अरे ! कोई डॉक्टर को बुलाओ, इमरजेंसी है।"*

रात में स्लीपर क्लास के डिब्बे में डॉक्टर कहाँ से मिलता??? उनके परिवार के लोग उन्हें असहाय अवस्था में देख रोने लगे। तभी मेरे साथ वाले जगमोहन राव नींद से जाग गए। उन्होंने मुझसे पूछा -- *" क्या हुआ ?"*

मैंने उन्हें सब बताया। मेरी बात सुनते ही वो लपक के अपने बर्थ के नीचे से अपना सूटकेस को निकाले और खोलने लगे। सूटकेस खुलते ही मैंने देखा उन्होंने स्टेथेस्कोप निकाला और सामने वाले सज्जन के सीने पर रख कर धड़कने सुनने लगे। एक मिनट बाद उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं। उन्होंने कुछ नहीं कहा और सूटकेस में से एक इंजेक्शन निकाला और सज्जन के सीने में लगा दिया और उनका सीना दबा-दबा कर, मुंह पर अपना रूमाल लगा कर अपने मुंह से सांस देने लगे। कुछ मिनट तक सी.पी.आर. देने के बाद मैंने देखा कि रोगी सहयात्री का तड़फना कम हो गया।

जगमोहन राव जी ने अपने सूटकेस में से कुछ और गोलियां निकाली और परिवार के बेटे से बोले-- *“बेटा !, ये बात सुनकर घबराना नहीं। आपके पापा को मेसिव हृदयाघात आया था, पहले उनकी जान को ख़तरा था परन्तु मैंने इंजेक्शन दे दिया है और ये दवाइयां उन्हें दे देना।”

उनका बेटा आश्चर्य से बोला-- *“पर आप कौन हो ?"*

वो बोले-- *“मैं एक डॉक्टर हूँ। मैं इनकी केस हिस्ट्री और दवाइयां लिख देता हूँ, अगले स्टेशन पर उतर कर आप लोग इन्हें अच्छे अस्पताल ले जाइएगा।"*

उन्होंने अपने बैग से एक लेटरपेड  निकाला और जैसे ही मैंने उस लेटरपेड का हैडिंग पढ़ा,  मुझे याद आ गया।

उस पर छपा था... डॉक्टर जगमोहन राव हृदय रोग विशेषज्ञ, अपोलो अस्पताल चेन्नई।

अब तक मुझे याद आ गया कि कुछ दिन पूर्व मैं जब अपने पिता को चेकअप के लिए अपोलो हस्पताल ले गया था, वहाँ मैंने डॉक्टर जगमोहन राव के बारे में सुना था। वो अस्पताल के सबसे वरिष्ठ, विशेष प्रतिभाशाली हृदय रोग विशेषज्ञ थे। उनका appointment लेने के लिए महीनों का समय लगता था। मैं आश्चर्य से उन्हें देख रहा था। एक इतना बड़ा डॉक्टर स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहा था। और मैं एक छोटा सा तृतीय श्रेणी वैज्ञानिक घमंड से ए.सी. में चलने की बात कर रहा था और ये इतने बड़े आदमी इतने सामान्य ढंग से पेश आ रहे थे। इतने में अगला स्टेशन आ गया और वो हृदयाघात से पीड़ित बुजुर्ग एवं उनका परिवार टी.टी. एवं स्टेशन पर बुलवाई गई मेडिकल मदद से उतर गया।

रेल वापस चलने लगी। मैंने उत्सुकतावश उनसे पूछा-- *“डॉक्टर साहब ! आप तो आराम से ए.सी. में यात्रा कर सकते थे फिर स्लीपर में क्यूँ ?"*

वो मुस्कुराये और बोले-- *“मैं जब छोटा था और गाँव में रहता था, तब मैंने देखा था कि रेल में कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं होता, खासकर दूसरे दर्जे में। इसलिए मैं जब भी घर या कहीं जाता हूँ तो स्लीपर क्लास में ही सफ़र करता हूँ... न जाने कब किसे मेरी जरुरत पड़ जाए। मैंने डॉक्टरी...मेरे जैसे लोगों की सेवा के लिए ही की थी। हमारी पढ़ाई का क्या फ़ायदा यदि हम किसी के काम न आ पाए ???"*

इसके बाद सफ़र उनसे यूं ही बात करते बीतने लगा। सुबह के चार बज गए थे। वारंगल आने वाला था। वो यूं ही मुस्कुरा कर लोगों का दर्द बाँट कर, गुमनाम तरीके से मानव सेवा कर, अपने गाँव की ओर निकल लिए और मैं उनके बैठे हुए स्थान से आती हुई खुशबू का आनंद लेते हुए अपनी बाकी यात्रा पूरी करने लगा।

*अब मेरी समझ में आया था कि इतनी भीड़ के बावजूद डिब्बे में खुशबू कैसे फैली। ये उन महान व्यक्तित्व और पुण्य आत्मा की खुशब थी जिसने मेरा जीवन और मेरी सोच दोनों को महका दिया।*

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सोमवार, 20 दिसंबर 2021

टेक्नोलॉजी

 

*~चिंतन के पल....*

     _टेक्नोलॉजी का ज़माना अभी बस स्टार्ट हुआ है। भविष्य बेहद अलग तरह का होगा। सबसे बड़ी टैक्सी कंपनी(UBER) के पास टैक्सी नही, सबसे ज्यादा होटल कमरे उपलब्ध कराने वाली कंपनी(Airbnb) के पास एक होटल कमरा नही।_
      सबसे कीमती व्हॉलसेलर (Alibaba) के पास कोई माल नही। सबसे पॉपुलर मीडिया हाउस (FB) जीरो कंटेंट पैदा करता है।
     दुनिया के सबसे बड़े फाइनेंसियल टूल (बिटकॉइन) के पास कोई कैश नही है।

     आज हर 50 साल से कम उम्र देशवाशियों को कहूँगा की बिना टेक्नोलॉजी कोई नॉकरी, कोई व्यापार, कोई कमाई नही कर पाओगे इसलिये तेजी से खुद को upskill करो।
     डेटा की वैल्यू मानव ज़िंदगी से महत्वपूर्ण है। अल्गोरिथम 99% लीडर्स से महत्वपूर्ण है।

    आदमी की जगह तेजी से खत्म हो रही है। बहुत सम्भव है मात्र 10 साल के अंदर बैंक की 99% ब्रांच की जरूरत खत्म हो जाये। इन्शुरन्स बेचने वाले एजेंट्स पक्का 90% खत्म हो जाएंगे।
     _मोहल्ले के जनरल फिजिशियन की जगह पूरी तरह personalized App ले लेगा। ऑपरेशन्स करने मे 90% काम रोबोट करेंगे जो सर्जन से अधिक कामयाब है। एक Dr Anupama पिछले छह साल मे 800 रोबोटिक ऑपरेशन्स कर चुकी है।_       
        मात्र 10 सालो मे खदानों, भट्टियों, कार फैक्टरियों, परमाणु संस्थानों, हॉस्पिटल्स मे 90% काम रोबोट करेंगे। ड्राइवर की नोकरिया बेहद तेजी से घटेगी। किसानों द्वारा खेत मे रोबोट प्रयोग बेहद आम हो जाएगा।
      _अभी IFFCO ने यूरिया/पेस्टिसाइड्स छिड़कने का जो ड्रोन बनाया वो मजदूर से सस्ता व एफक्टिव पड़ता है। ओर सस्ता है तो तेजी से प्रयोग होगा। इंसान सिर्फ प्रोडक्शन चैंन के टॉप पर काम करेगा। एक BBC सर्वे के अनुसार किचन असिस्टेंट, बार स्टाफ, बेसिक सेल्स, रिटेल स्टोर असिस्टेंट, वैटर्स की 70% से ज्यादा नोकरिया खत्म होने की सम्भावनाये है।_
       10 साल मे स्कूल कॉलेज के हरेक पांच मे से दो बन्दे अपनी नॉकरी खो देंगे। और वर्तमान स्वरूप वाले बारहवीं तक के स्कूल एक दशक मे आधे रह जाएंगे। बहुत तेजी से experiential schooling रियल्टी बनने वाली है।

       कानून बहुत पेचीदा विषय है। कोर्ट मे एक एक नुक्ता जीवन मृत्यु तय करता है। कानूनों का इंटरप्रिटेशन सुपर एक्सपर्ट सब्जेक्ट है। अब उसमे भी अमेरिका मे IBM द्वारा बनाये गए वाटसन सॉफ्टवेयर ने वहां एंट्री लेवल पर हर 10 मे से 7 वकील बेकार कर दिए।
   _स्पेशल बात ये की सॉफ्टवेयर की सलाह अधिकतर मामलों मे वकीलों से बेहतर है। आज नये वकीलों की ऐसी फौज तैयार हो रही है जो सड़क पर एम्बुलेंस देखते ही उसके पीछे बाइक लेकर भागते है ताकि जिसका एक्सीडेंट हुआ है उसका बीमा क्लेम या कॉम्पेनसेशन दिलवाने का केस मिल जाये।_
       यहां तक कि पूरी तरह मानव की सोच, रचनात्मकता व सर्जनशीलता वाले कला क्षेत्र मे भी आर्टिफिशल इंटेलीजेंस घुस चुकी है। बहुत संभव है कि कोई कंप्यूटर अंतिम रिजल्ट्स मे माइकल एंजिलो, पाब्लो पिकासो, लियोनार्डो द विंची से आगे निकल जाए।
     _क्या आप तैयार है कि किसी फिल्म मे एक्टर की आवाज लेकर कोई कंप्यूटर उसकी आवाज मे गाना गाये ओर आप कभी नही समझ सके कि गाना मशीन ने गाया है।_
      भविष्य को किसी मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या लता मंगेशकर की कोई जरूरत महसूस नही होगी। अभी बीते 9th Oct को जर्मनी के बोन शहर मे विश्व के एक्सपर्ट म्यूजिक सिंथेसाइज़र इकट्ठा हुए, मौका था विश्वप्रसिद्ध संगीतकार बीथोवन की दसवीं अधूरी सिम्फनी को पूरा करने का।
     _इसके लिए करीब दो सौ साल पहले दुनिया छोड़ चुके बीथोवन के मस्तिष्क को खंगालना था। सुपर;कंप्यूटर ने 18 महीने AI का प्रयोग करके उनकी दसवी सिम्फनी के 20-20 मिनुट्स लंबे दो नोट्स रिलीज किये।_
      जब नई सिम्फनी बजायी गयी तो musicians ये पहचानने मे फैल रहे कि कहां तक बीथोवन के नोट्स थे और कहां से कंप्यूटर ने म्यूजिक बनाया था। कहने का मतलब दो सौ साल पहले के बीथोवन को ज़िंदा कर लिया गया।

       80% सरकारी विभाग अमेरिका की तरह प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर के तहत आ जाएंगे। सरकारी नोकरिया एक प्रतिशत से ज्यादा नही होंगी उनमें भी सिपाही, सैनिक जैसी निम्न दर्जे की नोकरिया ज्यादा होंगी।
     जैसे जैसे सरकारी नॉकर रिटायर होते जाएंगे उसके आधी  भी नई भर्तियां नही होंगी।
     _बहुत जल्दी बेहद बड़ी जनसंख्या अनावश्यक बेकार हो जाएगी। इसलिये तेजी से सीखिये क्योंकि टेक्नोलॉजी का ज़माना अभी स्टार्ट हुआ है._

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रविवार, 19 दिसंबर 2021

पागल भिखारी

 


मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।
👇

हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।

अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े।
कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।

फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।

उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मुझे आवाज लगाई :
"उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,
वो बूढा तो पागल है । "

लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।

मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? "

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : "Good afternoon doctor...... I think I may have some eye problem in my right eye .... "

इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं।
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में ।
मैंने कहा : " मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। "

बुजुर्ग बोले : "Oh, cataract ?
I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital."

मैंने पूछा : " बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? "

बुजुर्ग : " मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ  सर" ।

मैं : " ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। "

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : "पढ़े लिखे ?? "

मैंने कहा : "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। "

बाबा : " Oh no doc... Why would I ?... Sorry if I hurt you ! "

मैं : " हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। "

बुजुर्ग : " समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? "
अच्छा "ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। "(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।

" Well Doctor, I am Mechanical Engineer...."--- बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की--- "
मैं, * कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।
एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में  कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? "
"फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। "

मैं चकराया, बोला : " बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? "

बुजुर्ग : " मैं...?
किस्मत का शिकार हूँ ...."
" बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। "
ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : " लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। "

अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : " लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे  ? "

बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : "आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। "

बुजुर्ग : " Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। "

मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला :
"तो फिर आप यहाँ कैसे ? "
बुजुर्ग : "डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। "
" मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। "

आश्चर्य से मैंने पूछा : " बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? "

बुजुर्ग : " डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। "

मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं,
जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।
कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : " बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? "

बुजुर्ग : " No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? "

" लेकिन बाबा "--- मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। "
" अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। "

बुजुर्ग : " No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती । "
" मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। "

मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।

भरे गले से मैंने फिर कहा : "बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? "

बुजुर्ग : " दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। "

मैं मुस्कुराया और बोला : " और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? "

बुजुर्ग : " अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा...."

बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : " बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। "

बुजुर्ग : " No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। "
" OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। "

मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : " बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। "

अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : " डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर...."
" आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही...."

ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : "अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे..."

शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।

उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।

*हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में* *जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।*
*हो सकता है इन्हें देख हमें* *हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले....*    

हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...

कहानी से कुछ प्रेरणा मिले तो जीव मात्र पर दया करना ओर परोपकार की भावना बच्चों में जरूर दें।

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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

गुरु

 

बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे। उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर दूर से शिष्य आते थे।

एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, स्वामीजी आपके गुरु कौन है? आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है? महंत शिष्य का सवाल सुन मुस्कुराए और बोले, मेरे हजारो गुरु हैं! यदि मै उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनो लग जाए। लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओ के बारे मे तुम्हे जरुर बताऊंगा। मेरा पहला गुरु था एक चोर।

एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैने उससे पूछा कि मै कहा ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होंगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो। मै एक चोर हु और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते है। वह इतना प्यारा आदमी था कि मै उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने तक रह गया! वह हर रात मुझे कहता कि मै अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो। जब वह काम से आता तो मै उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हे? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और हमेशा मस्त रहता था। कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस अपने घर आ गया। जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था। और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता|मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था।

एक बार बहुत गर्मी वाले दिन मै कही जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता। अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई। अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का हिम्मत से साहस से मुकाबला करता है। मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है।

मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था।

मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है? वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहा से वह ज्योति आई?

वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहा गई वह? आप ही मुझे बताइए।

मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए। शिष्य होने का अर्थ क्या है? शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।कभी किसी कि बात का बूरा नहि मानना चाहिए, किसी भी इंसान कि कही हुइ बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए के उसने क्या-क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और अपनी कमियों को दूर करें।

जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए। यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है, यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नहीं।

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सोमवार, 13 दिसंबर 2021

वापस लौट चलें

 

एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब था, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए...
राजा दयालु था..उसने पूछा कि "क्या मदद चाहिए..?"

आदमी ने कहा.."थोड़ा-सा भूखंड.."

राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना..ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे, जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा...!" 

आदमी खुश हो गया...
सुबह हुई..
सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा...
आदमी दौड़ता रहा.. दौड़ता रहा.. सूरज सिर पर चढ़ आया था.. पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था.. वो हांफ रहा था, पर रुका नहीं था... थोड़ा और.. एक बार की मेहनत है.. फिर पूरी ज़िंदगी आराम...
शाम होने लगी थी... आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा...
उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था.. अब उसे लौटना था.. पर कैसे लौटता..? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था.. आदमी ने पूरा दम लगाया..
वो लौट सकता था... पर समय तेजी से बीत रहा था.. थोड़ी ताकत और लगानी होगी... वो पूरी गति से दौड़ने लगा... पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था.. वो थक कर गिर गया... उसके प्राण वहीं निकल गए...!

राजा यह सब देख रहा था...
अपने सहयोगियों के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था...
राजा ने उसे गौर से देखा..
फिर सिर्फ़ इतना कहा...
*"इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीं की दरकार थी... नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था...! "*

आदमी को लौटना था... पर लौट नहीं पाया...
वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता...

अब ज़रा उस आदमी की जगह अपने आपको रख कर कल्पना करें, कही हम भी तो वही भारी भूल नही कर रहे जो उसने की
हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता...
हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत..
अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते... जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है...
फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता...

*"यदि जीवन के 50 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें....इससे पहले की देर हो जाये... इससे पहले की सब किया धरा निरर्थक हो जाये....."✍️*

*लौटना क्यों है*❓
*लौटना कहाँ है*❓
*लौटना कैसे है*❓

इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए ही टॉलस्टाय की मशहूर कहानी ध्यान में लाई गई।

*"लौटना कभी आसान नहीं होता*"

अतः *आज अपनी डायरी पैन उठाये कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर अनिवार्य रूप से लिखें* ओर उनके जवाब भी लिखें
मैं जीवन की दौड़ में सम्मिलित हुवा था, आज तक कहाँ पहुँचा?
आखिर मुझे जाना कहाँ है ओर कब तक पहुँचना है?
इसी तरह दौड़ता रहा तो कहाँ ओर कब तक पहुँच पाऊंगा?

यही इस चर्चा की सार्थकता होगी, कि हम सबके जीवन को दिशा मिल जाये... हम लौटने की तैयारी कर पाए*

हम सभी दौड़ रहे हैं... बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है...
अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था... हम सब अभिमन्यु ही हैं.. हम भी लौटना नहीं जानते...

सच ये है कि "जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं... पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता..."

काश टॉलस्टाय की कहानी का वो पात्र समय से लौट पाता...!

*" भगवान  सभी को जिंदगी सार्थक करने की एवं वापिस लौटने की समझ दे"*

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रविवार, 12 दिसंबर 2021

समस्याओं की समझ

 

किसी शहर में एक व्यक्ति था, वह हमेशा दु:खी रहा करता था, क्योंकि उसकी समस्याएँ कभी खत्म नहीं नहीं होती थी। इसीलिए धीरे-धीरे उसे ऐसा लगने लगा कि उससे दु:खी व्यक्ति संसार में कोई और नहीं है।

उसकी बातें तक कोई सुनना नहीं चाहता था क्योंकि हमेशा वो नकारात्मक बातें ही किया करता था। इस बात से तो वह और परेशान हो जाता कि उसकी बात कोई सुनने वाला नहीं है।       

एक दिन उसे पता चला कि शहर में कोई महात्मा आने वाले है। जिनके पास सभी समस्याओं का समाधान है। यह जानकार वह महात्मा के पास पहुंचा। उस महात्मा के साथ हमेशा एक काफिला चला करता था जिसमें कई ऊंट भी थे ।

महात्मा के पास पहुँच कर उस व्यक्ति ने कहा – गुरुजी, सुना है कि आप सभी समस्याओं का समाधान करते है। मैं बहुत दु:खी व्यक्ति हूँ। मेरे इर्द-गिर्द हमेशा बहुत सारी समस्याएँ रहती है। एक को सुलझाता हूँ तो दूसरी पैदा हो जाती है । मैं अपनी आपबीती किसी को सुनता हूं तो कोई सुनता ही नहीं है। दुनिया बड़ी मतलबी हो गयी है। अब आप ही बताइये क्या करूँ ?       

महात्मा ने उसकी बातें ध्यान से सुनी और कहा – भाई, मैं अभी तो बहुत थक गया हूँ परंतु कल सुबह मैं तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा। इस बीच तुम मेरा एक काम कर दो, मेरे ऊंटों की देखभाल करने वाला आदमी बीमार है। आज रात तुम इनकी देखभाल कर दो
जब सभी ऊंट बैठ जाये तब तुम सो जाना। मैं तुमसे कल सुबह बात करूंगा ।

अगले दिन महात्मा ने उस आदमी को बुलाया। उसकी आंखे लाल थी। महात्मा ने पूछा – तो बताओ कल रात कैसी नींद आयी ?

व्यक्ति बोला – गुरुजी, मैं तो रात भर सोया ही नहीं। आपने कहा था जब सभी ऊंट बैठ जाये तब सो जाना। पर ऐसा नहीं हुआ जब भी कोशिश करके एक ऊंट को बिठाता दूसरा खड़ा हो जाता। सारे ऊंट बैठा ही नहीं इसीलिए मैं भर रात सो नहीं सका।  

महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा – मैं जानता था कि इतने ऊंट एक साथ कभी नहीं बैठ सकता, फिर भी मैंने तुम्हें ऐसा करने को कहा।

यह सुनकर व्यक्ति क्रोधित होकर बोला – महात्मा जी, मैं आपसे हल मांगने आया था पर आपने भी मुझे परेशान कर दिया।

महात्मा बोले – नहीं भाई, दरअसल यह तुम्हारे समस्या का समाधान है। संसार के किसी भी व्यक्ति की समस्या इन ऊंटों की तरह ही है। एक खत्म होगी तो दूसरी खड़ी हो जाएगी । अतः सभी समस्याओं के खत्म होने का इंतज़ार करोगे तो कभी भी चैन से नहीं जी पाओगे।

*समस्याएँ तो जीवन का ही अंग है। इन्हें महसूस करते हुए जीवन का आनंद लो। जीवन में सहज रहने का यही एक उपाय है।*  दुनिया के किसी भी व्यक्ति को तुम्हारी समस्याएँ सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्यूंकी उनकी भी अपनी समस्याएँ है।"  महात्मा जी की बात सुनकर व्यक्ति के चेहरे पर संतोष और सहजता के भाव उमड़ पड़े। मानो उसे अपनी सभी समस्याओं से निपटने का अचूक मंत्र प्राप्त हो गया हो।

अतः समस्याओं से घबराये नहीं । उनका डटकर सामना करें । आत्मविश्वास बनाये रखें और भरपूर जीवन जियें । सदैव मस्त रहें ।

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शनिवार, 11 दिसंबर 2021

अवसर

 

एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया।  उसे घर पहुंच कर इस बात का पता चला। बटुए में जरूरी कागजों के अलावा कई हजार रुपये भी थे। फौरन ही वो मंदिर गया और प्रार्थना करने लगा कि बटुआ मिलने पर प्रसाद चढ़ाउंगा,गरीबों को भोजन कराउंगा आदि।

संयोग से वो बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला। बटुए पर उसके मालिक का नाम लिखा था।इसलिए उस युवक ने सेठ के घर पहुंच कर बटुआ उन्हें दे दिया। सेठ ने तुरंत बटुआ खोलकर देखा। उसमें सभी कागजात और रुपये यथावत थे।

सेठ ने प्रसन्न हो कर युवक की ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे बतौर इनाम कुछ रुपये देने चाहे, जिन्हें लेने से युवक ने मना कर दिया।इस पर सेठ ने कहा, अच्छा कल फिर आना।

युवक दूसरे दिन आया तो सेठ ने उसकी खूब खातिरदारी की। युवक चला गया। युवक के जाने के बाद सेठ अपनी इस चतुराई पर बहुत प्रसन्न था कि वह तो उस युवक को सौ रुपये देना चाहता था। पर युवक बिना कुछ लिए सिर्फ खा -पी कर ही चला गया।

उधर युवक के मन में इन सब का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उसके मन में न कोई लालसा थी और न ही बटुआ लौटाने के अलावा और कोई विकल्प ही था।

सेठ बटुआ पाकर यह भूल गया कि उसने मंदिर में कुछ वचन भी दिए थे।सेठ ने अपनी इस चतुराई का अपने मुनीम और सेठानी से जिक्र करते हुए कहा कि देखो वह युवक कितना मूर्ख निकला। हजारों का माल बिना कुछ लिए ही दे गया।

सेठानी ने कहा, तुम उल्टा सोच रहे हो। वह युवक ईमानदार था। उसके पास तुम्हारा बटुआ लौटा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। उसने बिना खोले ही बटुआ लौटा दिया। वह चाहता तो सब कुछ अपने पास ही रख लेता। तुम क्या करते?

ईश्वर ने दोनों की परीक्षा ली। वो पास हो गया, तुम फेल। अवसर स्वयं तुम्हारे पास चल कर आया था, तुमने लालच के वश उसे लौटा दिया। अब अपनी गलती को सुधारो और जाओ उसे खोजो।

उसके पास ईमानदारी की पूंजी है, जो तुम्हारे पास नहीं है। उसे काम पर रख लो।

सेठ तुरत ही अपने कर्मचारियों के साथ उस युवक की तलाश में निकल पड़ा। कुछ दिनों बाद वह युवक किसी और सेठ के यहां काम करता मिला।

सेठ ने युवक की बहुत प्रशंसा की और बटुए वाली घटना सुनाई, तो उस सेठ ने बताया, उस दिन इसने मेरे सामने ही बटुआ उठाया था।

मैं तभी अपने गार्ड को लेकर इसके पीछे गया। देखा कि यह तुम्हारे घर जा रहा है। तुम्हारे दरवाजे पर खड़े हो कर मैंने सब कुछ देखा व सुना। और फिर इसकी ईमानदारी से प्रभावित होकर इसे अपने यहां मुनीम रख लिया।

इसकी ईमानदारी से मैं पूरी तरह निश्चिंत हूं।बटुए वाला सेठ खाली हाथ लौट आया। पहले उसके पास कई विकल्प थे , उसने निर्णय लेने में देरी की उस ने एक विश्वासी पात्र खो दिया। युवक के पास अपने सिद्धांत पर अटल रहने का नैतिक बल था।उसने बटुआ खोलने के विकल्प का प्रयोग ही नहीं किया। युवक को ईमानदारी का पुरस्कार मिल गया दूसरे सेठ के पास निर्णय लेने की क्षमता थी। उसे एक उत्साही , सुयोग्य और ईमानदार मुनीम मिल गया।

जिन वस्तुओं के विकल्प होते हैं , उन्हीं में देरी होती है। विकल्पों पर विचार करना गलत नहीं है।लेकिन विकल्पों पर ही विचार करते रहना गलत है।हम ' यह या वह ' के चक्कर में फंसे रह जाते हैं।

*किसी संत ने कहा है- विकल्पों में उलझकर निर्णय पर पहुंचने में बहुत देर लगाने से लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो जाती है।*

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सोमवार, 6 दिसंबर 2021

यात्रा के पथिक

*चिंतन के पल...*

*एक मक्खी एक हाथी के ऊपर बैठ गयी। हाथी को पता न चला मक्खी कब बैठी।*

*मक्खी बहुत भिनभिनाई आवाज की, और कहा, ‘भाई! तुझे कोई तकलीफ हो तो बता देना।* वजन मालूम पड़े तो खबर कर देना, मैं हट जाऊंगी।’ लेकिन हाथी को कुछ सुनाई न पड़ा। फिर *हाथी एक पुल पर से गुजरने लगा बड़ी पहाड़ी नदी थी, भयंकर गङ्ढ था, मक्खी ने कहा कि ‘देख, दो हैं, कहीं पुल टूट न जाए!* अगर ऐसा कुछ डर लगे तो मुझे बता देना। मेरे पास पंख हैं, मैं उड़ जाऊंगी।’

हाथी के कान में थोड़ी-सी कुछ भिनभिनाहट पड़ी, पर उसने कुछ ध्यान न दिया। *फिर मक्खी के बिदा होने का वक्त आ गया। उसने कहा, ‘यात्रा बड़ी सुखद हुई, साथी-संगी रहे, मित्रता बनी, अब मैं जाती हूं, कोई काम हो, तो मुझे कहना, तब मक्खी की आवाज थोड़ी हाथी को सुनाई पड़ी, उसने कहा,  ‘तू कौन है कुछ पता नहीं, कब तू आयी, कब तू मेरे शरीर पर बैठी, कब तू उड़ गयी, इसका मुझे कोई पता नहीं है।* लेकिन मक्खी तब तक जा चुकी थी सन्त कहते हैं, ‘हमारा होना भी ऐसा ही है। इस बड़ी पृथ्वी पर हमारे होने, ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

*हाथी और मक्खी के अनुपात से भी कहीं छोटा, हमारा और ब्रह्मांड का अनुपात है। हमारे ना रहने से क्या फर्क पड़ता है? लेकिन हम बड़ा शोरगुल मचाते हैं।* वह शोरगुल किसलिये है? वह मक्खी क्या चाहती थी? वह चाहती थी हाथी स्वीकार करे, तू भी है; तेरा भी अस्तित्व है, वह पूछ चाहती थी। *हमारा अहंकार अकेले तो नहीं जी सक रहा है। दूसरे उसे मानें, तो ही जी सकता है।* इसलिए हम सब उपाय करते हैं कि किसी भांति दूसरे उसे मानें, ध्यान दें, हमारी तरफ देखें; उपेक्षा न हो।

*सन्त विचार- हम वस्त्र पहनते हैं तो दूसरों को दिखाने के लिये, स्नान करते हैं सजाते-संवारते हैं ताकि दूसरे हमें सुंदर समझें। धन इकट्ठा करते, मकान बनाते, तो दूसरों को दिखाने के लिये। दूसरे देखें और स्वीकार करें कि तुम कुछ विशिष्ट हो, ना की साधारण।*

*तुम मिट्टी से ही बने हो और फिर मिट्टी में मिल जाओगे,  तुम अज्ञान के कारण खुद को खास दिखाना चाहते हो वरना तो तुम बस एक मिट्टी के पुतले हो और कुछ नहीं।*  अहंकार सदा इस तलाश में है–वे आंखें मिल जाएं, जो मेरी छाया को वजन दे दें।

*याद रखना आत्मा के निकलते ही यह मिट्टी का पुतला फिर मिट्टी बन जाएगा इसलिए अपना अहंकार छोड़ दो और सब का सम्मान करो क्योंकि जीवों में परमात्मा का अंश आत्मा है..!!*

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रविवार, 5 दिसंबर 2021

साहस के साथी

 

जंगली भैंसों का एक झुण्ड जंगल में घूम रहा था तभी एक बछड़े  ने पुछा पिताजी, क्या इस जंगल में ऐसी कोई चीज है जिस से डरने की ज़रुरत है।

बस शेरों से सावधान रहना …भैंसा बोला

'हाँ,मैंने भी सुना है कि शेर बड़े खतरनाक होते हैं अगर कभी मुझे शेर दिखा तो मैं जितना हो सके उतनी तेजी से दौड़ता हुआ भाग जाऊँगा"- बछड़ा बोला

"नहीं इससे बुरा तो तुम कुछ कर ही नहीं सकते"- भैंसा बोला

बछड़े को ये बात कुछ अजीब लगी वह बोला "क्यों" ?

"वे खतरनाक होते हैं  मुझे मार सकते हैं तो भला मैं भाग कर अपनी जान क्यों ना बचाऊं"

भैंसा समझाने लगा-
"अगर तुम भागोगे तो शेर तुम्हारा पीछा करेंगे, भागते समय वे तुम्हारी पीठ पर आसानी से हमला कर सकते हैं और तुम्हे नीचे गिरा सकते हैं और एक बार तुम गिर गए तो मौत पक्की समझो"

"… तो.. तो। .. ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए"-बछड़े ने घबराहट में पुछा

”अगर तुम कभी भी शेर को देखो , तो अपनी जगह डट कर खड़े हो जाओ और ये दिखाओ की तुम जरा भी डरे हुए नहीं हो, अगर वो ना जाएं तो उसे अपनी तेज सींघें दिखाओ और खुरों को जमीन पर पटको अगर तब भी शेर ना जाएं तो धीरे -धीरे उसकी तरफ बढ़ो और अंत में तेजी से अपनी पूरी ताकत के साथ उसपर हमला कर दो"- भैंसे ने गंभीरता से समझाया

"ये तो पागलपन है ऐसा करने में तो बहुत खतरा है अगर शेर ने पलट कर मुझपर हमला कर दिया तो"- बछड़ा नाराज होते हुए बोला

"बेटे,अपने चारों तरफ देखो, क्या दिखाई देता है"-भैंसे ने कहा

"बछड़ा घूम -घूम कर देखने लगा  उसके चारों तरफ ताकतवर भैंसों का बड़ा सा झुण्ड था

"अगर कभी भी तुम्हे डर लगे तो ये याद रखो कि हम सब तुम्हारे साथ हैं, अगर तुम मुसीबत का सामना करने की बजाये भाग खड़े होते हो तो हम तुम्हे नहीं बचा पाएंगे लेकिन अगर तुम साहस दिखाते हो और मुसीबत से लड़ते हो तो हम मदद के लिए ठीक तुम्हारे पीछे खड़े होंगे"

बछड़े ने गहरी सांस ली और अपने पिता को इस सीख के लिए धन्यवाद दिया

*हम सभी की ज़िन्दगी में शेर हैं, कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनसे हम डरते हैं , जो हमें भागने पर, हार मानने को मजबूर करना चाहती हैं , लेकिन अगर हम भागते हैं तो वे हमारा पीछा करती हैं और हमारा जीना मुश्किल कर देती हैं इसलिए उन मुसीबतों का सामना करिये, उन्हें दिखाइए कि आप उनसे डरते नहीं हैं, दिखाइए की आप सचमुच कितने ताकतवर है और पूरे साहस और हिम्मत के साथ उल्टा उनकी तरफ टूट पड़िये और जब आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि आपके परिवार और दोस्त पूरी ताकत से आपके पीछे खड़े हैं*
आपके साहस-हिम्मत की मजबूती लोगों को सहयोगी बनने की प्रेरणा देता है ।

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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

समस्या का मूल

 

हर किसी के जीवन में कभी ना कभी ऐसा समय आता है जब हम मुश्किलों में घिर जाते हैं और हमारे सामने अनेकों समस्यायें एक साथ आ जाती हैं। ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग घबरा जाते हैं और हमें खुद पर भरोसा नहीं रहता और हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। और खुद प्रयास करने के बजाय दूसरों से उम्मीद लगाने लग जाते हैं जिससे हमें और ज्यादा नुकसान होता है तथा और ज्यादा तनाव होता है और हम नकारात्मकता के शिकार हो जाते हैं और संघर्ष करना छोड़ देते हैं।

एक आदमी हर रोज सुबह बगीचे में टहलने जाता था। एक बार उसने बगीचे में एक पेड़ की टहनी पर एक तितली का कोकून (छत्ता) देखा। अब वह रोजाना उसे देखने लगा। एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद हो गया है। उत्सुकतावश वह उसके पास जाकर बड़े ध्यान से उसे देखने लगा। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक छोटी तितली उस छेद में से बाहर आने की कोशिश कर रही है लेकिन बहुत कोशिशो के बाद भी उसे बाहर निकलने में तकलीफ हो रही है। उस आदमी को उस पर दया आ गयी। उसने उस कोकून का छेद इतना बड़ा कर दिया कि तितली आसानी से बाहर निकल जाये | कुछ समय बाद तितली कोकून से बाहर आ गयी लेकिन उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख भी सूखे पड़े थे। आदमी ने सोचा कि तितली अब उड़ेगी लेकिन सूजन के कारण तितली उड़ नहीं सकी और कुछ देर बाद मर गयी।

दरअसल भगवान ने ही तितली के कोकून से बाहर आने की प्रक्रिया को इतना कठिन बनाया है जिससे की संघर्ष करने के दौरान तितली के शरीर पर मौजूद तरल उसके पंखो तक पहुँच सके और उसके पंख मजबूत होकर उड़ने लायक बन सकें और तितली खुले आसमान में उडान भर सके। यह संघर्ष ही उस तितली को उसकी क्षमताओं का एहसास कराता है।

यही बात हम पर भी लागू होती है। मुश्किलें, समस्यायें हमें कमजोर करने के लिए नहीं बल्कि हमें हमारी क्षमताओं का एहसास कराकर अपने आप को बेहतर बनाने के लिए हैं अपने आप को मजबूत बनाने के लिए हैं।

इसलिए जब भी कभी आपके जीवन में मुश्किलें या समस्यायें आयें तो उनसे घबरायें नहीं बल्कि डट कर उनका सामना करें। संघर्ष करते रहें तथा नकारात्मक विचार त्याग कर सकारात्मकता के साथ प्रयास करते रहें। एक दिन आप अपने मुश्किल रूपी कोकून से बाहर आयेंगे और खुले आसमान में उडान भरेंगे अर्थात आप जीत जायेंगे।
आप सभी मुश्किलों, समस्यायों पर विजय पा लेंगे।

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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

आत्मविश्वास

 

बिहार के एक विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के बाद कक्षाध्यापक महोदय सबको परीक्षाफल सुना रहे थे। उनमें एक प्रतिभाशाली छात्र राजेन्द्र भी था। उसका नाम जब उत्तीर्ण हुए छात्रों की सूची में नहीं आया, तो वह अध्यापक से बोला - गुरुजी, आपने मेरा नाम तो पढ़ा ही नहीं।

अध्यापक ने हँसकर कहा - तुम्हारा नाम नहीं है, इसका साफ अर्थ है तुम इस वर्ष फेल हो गये हो। ऐसे में मैं तुम्हारा नाम कैसे पढ़ता ? अध्यापक को मालूम था कि वह छात्र कई महीने मलेरिया बुखार के कारण बीमार रहा था। इस कारण वह लम्बे समय तक विद्यालय भी नहीं आ पाया था। ऐसे में छात्र का अनुत्तीर्ण हो जाना स्वाभाविक ही था।

लेकिन वह छात्र हिम्मत से बोला - नहीं गुरुजी, कृपया आप सूची को दुबारा देख लें। मेरा नाम इसमें अवश्य होगा।

अध्यापक ने कहा - नहीं राजेन्द्र, तुम्हारा नाम सूची में नहीं है। तुम इस बार उत्तीर्ण नहीं हो सके हो।

राजेन्द्र ने खड़े होकर ऊँचे स्वर में कहा - ऐसा नहीं हो सकता कि मैं उत्तीर्ण न होऊँ।

अब अध्यापक को भी क्रोध आ गया। वे बोले - बको मत, नीचे बैठ जाओ। अगले वर्ष और परिश्रम करो।

पर राजेन्द्र चुप नहीं हुआ - नहीं गुरुजी, आप अपनी सूची एक बार और जाँच लें। मेरा नाम अवश्य होगा।

अध्यापक ने झुंझलाकर कहा - यदि तुम नीचे नहीं बैठे तो मैं तुम पर जुर्माना कर दूँगा।

पर वह छात्र भी अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं था। अतः अध्यापक ने उस पर एक रु. जुर्माना कर दिया। लेकिन राजेन्द्र बार-बार यही कहता रहा - मैं अनुत्तीर्ण नहीं हो सकता।

अध्यापक ने अब जुर्माना दो रु. कर दिया। बात बढ़ती गयी। धीरे-धीरे जुर्माने की राशि पाँच रु. तक पहुँच गयी। उन दिनों पाँच रु. की कीमत बहुत थी। सरकारी अध्यापकों के वेतन भी 15-20 रु. से अधिक नहीं होते थे; लेकिन आत्मविश्वास का धनी वह छात्र किसी भी तरह दबने का नाम नहीं ले रहा था।

तभी एक चपरासी दौड़ता हुआ प्राचार्य जी के पास से कोई कागज लेकर आया। जब वह कागज अध्यापक ने देखा, तो वे चकित रह गये। परीक्षा में सर्वाधिक अंक उस छात्र ने ही पाये थे। उसका अंकपत्र फाइल में सबसे ऊपर रखा था; पर भूल से वह प्राचार्य जी के कमरे में ही रह गया।

अब तो अध्यापक ने उस छात्र की पीठ थपथपाई। सब छात्रों ने भी ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया।
यही बालक आगे चलकर भारत का पहला राष्ट्रपति बना।  *उनका जन्म ग्राम जीरादेई( जिला छपरा, बिहार) में 3 दिसम्बर, 1884 को श्री महादेव सहाय के घर में हुआ था।*  छात्र जीवन से ही मेधावी राजेन्द्र बाबू ने कानून की परीक्षा उत्तीर्णकर कुछ समय वकालत की; पर 33 वर्ष की अवस्था में गांधी जी के आह्वान पर वे वकालत छोड़कर देश की स्वतन्त्रता के लिए हो रहे चम्पारण आन्दोलन में कूद पड़े।

सादा जीवन, उच्च विचार के धनी डा. राजेन्द्र प्रसाद को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद वे दिल्ली के सरकारी आवास की बजाय पटना में अपने निजी आवास ‘सदाकत आश्रम’ में ही जाकर रहे। 28 फरवरी, 1963 को वहीं उनका देहान्त हुआ। उनके जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश में अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपति के रूप में वे प्रधानमन्त्री नेहरू जी के विरोध के बाद भी सोमनाथ मन्दिर की पुनर्प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए।

उनका आत्मविश्वास प्रेरणा देता है कि हमें भी स्वयं पर पहले विश्वास हो ! वही हमारी ताकत बने !!

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

नियत

 



एक गांव में, प्रवीण शर्मा जी, पेशे से प्राइमरी अध्यापक थे।
उनका विद्यालय 7 किलोमीटर की दुरी पर एकदम वीराने में था

अक्सर लिफ्ट मांग के ही स्कूल पहुँचते थे और न मिले तो प्रभु के दिये दो पैर, भला किस दिन काम आएंगे।

धीरे धीरे उन्होंने कुछ जमापूंजी इकठ्ठा कर, एक स्कूटर ले लिया।

स्कूटर लेने के साथ ही उन्होंने एक प्रण लिया कि वो कभी किसी को लिफ्ट के लिए मना नहीं करेंगें।।
आखिर वो जानते थे जब कोई लिफ्ट को मना करे तो कितनी शर्मिंदगी महसूस होती है।

अब प्रवीण जी रोज अपने चमचमाते स्कूटर से विद्यालय जाते, और रोज कोई न कोई उनके साथ जाता। लौटते में भी कोई न कोई मिल ही जाता।

एक रोज लौटते वक्त एक व्यक्ति परेशान सा लिफ्ट के लिये हाथ फैलाये था, , अपनी आदत अनुसार प्रवीण जी ने स्कूटर रोक दिया। वह व्यक्ति पीछे बैठ गया |

थोड़ा आगे चलते ही उस व्यक्ति ने छुरा निकाल प्रवीण जी की पीठ पर लगा दिया।

"जितना रुपया है वो, और ये स्कूटर मेरे हवाले करो।" व्यक्ति बोला।

प्रवीण जी बहुत घबरा गए, डर के मारे स्कूटर रोक दिया। पैसे तो पास में ज्यादा थे नहीं, पर प्राणों से प्यारा, पाई पाई जोड़ कर खरीदा स्कूटर तो था।

आँखों में आंसू लिए और कांपते हुए हाथों से प्रवीण जी बोले कि आपसे  *"एक निवेदन है,"*
कि तुम कभी किसी को ये मत बताना कि ये स्कूटर तुमने कहाँ से और कैसे चोरी किया।

"क्यों?" व्यक्ति हैरानी से बोला।

"यह रास्ता बहुत उजड्ड है, निरा वीरान | सवारी मिलती नहीं, उस पर ऐसे हादसे सुन आदमी लिफ्ट देना भी छोड़ देंगे।"  प्रवीण जी बोले।

'ठीक है, कहकर' वह व्यक्ति स्कूटर ले कर चला गया।

प्रवीण जी ने अपने को सँभालते हुए ऊपर देखा और कहने लगे,"प्रभु जो आपकी इच्छा"

अगले दिन प्रवीण जी सुबह सुबह अखबार उठाने दरवाजे पर आए, दरबाजा खोला तो स्कूटर सामने खड़ा था। प्रवीण जी की खुशी का ठिकाना न रहा, दौड़ कर गए और अपने स्कूटर को बच्चे जैसा खिलाने लगे, देखा तो उसमें एक कागज भी लगा था।

*"ओ प्रवीण, यह मत समझना कि तुम्हारी बातें सुन मेरा हृदय पिघल गया।*

कल मैं तुमसे स्कूटर लूट उसे कस्बे में ले गया, सोचा भंगार वाले के पास बेच दूँ।
"अरे ये तो प्रवीण जी का स्कूटर है। " इससे पहले मैं कुछ कहता भंगार वाला बोला।

"अरे, प्रवीण ने मुझे बाजार कुछ काम से भेजा है।" कहकर मैं बाल बाल बचा। परन्तु शायद उस व्यक्ति को मुझ पर शक सा हो गया था।

फिर मैं एक हलवाई की दुकान पर गया, जोरदार भूख लगी थी तो कुछ सामान ले लिया। "अरे ये तो परवीन जी का स्कूटर है।
" वो हलवाई भी बोल पड़ा।

"हाँ, उन्हीं के लिये तो ये सामान ले रहा हूँ, घर में कुछ मेहमान आये हुए हैं।" कहकर मैं जैसे तैसे वहां से भी बचा।

फिर मैंने सोचा कस्बे से बाहर जाकर कहीं इसे बेचता हूँ। शहर के नाके पर एक पुलिस वाले ने मुझे पकड़ लिया।

"कहाँ, जा रहे हो और ये प्रवीण जी का स्कूटर तुम्हारे पास कैसे।" वह मुझ पर गुर्राया। किसी तरह उससे भी बहाना बनाया।

अबे ओए प्रवीण तुम्हारा यह स्कूटर है या आमिताभ बच्चन।

तेरी अमानत मैं तेरे हवाले कर रहा हूँ, इसे बेचने की न मुझमें शक्ति बची है, न हौसला।

पत्र पढ़ कर प्रवीण जी मुस्कुरा दिए, और बोले ,"शुक्रिया प्रभु, आपका बहुत बहुत शुक्रिया"।

जब हम दूसरों की मदद करते हैं तो भगवान् भी हमारी मदद करते हैं।

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सोमवार, 22 नवंबर 2021

बदलती राय

 

*चिन्तन के पल...*

समुद्र के किनारे जब एक लहर आयी तो एक बच्चे की चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी.. बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है

"समुद्र चोर है"

उसी समुद्र के एक,  दूसरे किनारे कुछ मछुवारे बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेते हैं. ...
वह उसी रेत पर लिखते हैं

"समुद्र  मेरा पालनहार है"

एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है....उसकी मां रेत पर लिखती है,

"समुद्र हत्यारा है"

एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया, वह रेत पर लिखता है

"समुद्र दानी है"

.... अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारा लिखा मिटा कर चली जाती है

मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा कि, लोगों की क्या राय है उस के बारे में ,वो अपनी लहरों में मस्त बार-बार आता जाता रहा ..

अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान और शांति समुद्र की भाँति अपने हिसाब से तय करो।

लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
चाय मक्खी में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और  देशी घी मे गिरे तो मक्खी को फेंक देते हैं ।।


लोगों को अपने हित की बात लगे तो अच्छा - अच्छा , पर सनातन सत्य भी कड़वा लगेगा तो थू थू...  लोग क्या कहेंगे ,से ज्यादा सही है अपना आचरण ,अपना व्यवहार , अपनी नीति -सोच सही रखें !!

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रविवार, 21 नवंबर 2021

बदला नज़रिया

 

एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेशा "LOVE YOU ALL" बोला करतीं थी।
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मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं बोल रही ।
वह कक्षा के सभी बच्चों से एक जैसा प्यार नहीं करती थीं।
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको फटी आंख भी नहीं भाता था। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आ जाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान । पढ़ाई के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था।
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मेडम के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता, मगर उसकी खाली खाली नज़रों से साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब है  (यानी प्रजेंट बाडी अफसेटं माइड) .धीरे धीरे मेडम को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मेडम की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मेडम उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करती।
राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।
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मेडम को वह एक बेजान पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर आत्मा नाम की कोई चीज नहीं थी। प्रत्येक डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर झुका लेता। मेडम को अब इससे गंभीर नफरत हो चुकी थी।
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पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो मेडम ने राजू की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें लिख मारी । प्रगति रिपोर्ट माता पिता को दिखाने से पहले हेड मास्टर के पास जाया करती थी। उन्होंने जब राजू की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखी तो मेडम को बुला लिया। "मेडम प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो राजू की प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे राजू के पिता इससे बिल्कुल निराश हो जाएंगे।" मेडम ने कहा "मैं माफी माँगती हूँ, लेकिन राजू एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ। "मेडम घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ कर चली गई स्कूल की छुट्टी हो गई आज तो ।
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अगले दिन हेड मास्टर ने एक विचार किया ओर उन्होंने चपरासी के हाथ मेडम की डेस्क पर राजू की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन मेडम ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर देखा तो पता लगा कि यह राजू की रिपोर्ट हैं। " मेडम ने सोचा कि पिछली कक्षाओं में भी राजू ने निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे।" उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है। "राजू जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से बेहद लगाव रखता है।" "
.
यह लिखा था
अंतिम सेमेस्टर में भी राजू ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। "मेडम ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की रिपोर्ट खोली।" राजू ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव लिया। .उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। "" राजू की माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। । घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है.जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।
.
नीचे हेड मास्टर ने लिखा कि राजू की माँ मर चुकी है और इसके साथ ही राजू के जीवन की चमक और रौनक भी। । उसे बचाना होगा...इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। " यह पढ़कर मेडम के दिमाग पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की । मेडम की आखो से आंसू एक के बाद एक गिरने लगे. मेडम ने साङी से अपने आंसू पोछे
अगले दिन जब मेडम कक्षा में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू ऑल" दोहराया।
.
   मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं। क्योंकि इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे राजू के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में महसूस कर रही थीं..वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से अधिक था ।
पढ़ाई के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राजू पर दागा और हमेशा की तरह राजू ने सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक मेडम से कोई डांट फटकार और सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में न पड़ी तो उसने अचंभे में सिर उठाकर मेडम की ओर देखा। अप्रत्याशित उनके माथे पर आज बल न थे, वह मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने राजू को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर जबरन दोहराने के लिए कहा। राजू तीन चार बार के आग्रह के बाद अंतत:बोल ही पड़ा। इसके जवाब देते ही मेडम ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी बच्चो से भी बजवायी..
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  फिर तो यह दिनचर्या बन गयी। मेडम हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर उसकी खूब सराहना तारीफ करतीं। प्रत्येक अच्छा उदाहरण राजू के कारण दिया जाने लगा । धीरे-धीरे पुराना राजू सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आ गया। अब मेडम को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी करता ।
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उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था। देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और राजू ने दूसरा स्थान हासिल कर कक्षा 5 वी पास कर लिया यानी अब दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले के लिए तैयार था।
.
कक्षा 5 वी के विदाई समारोह में सभी बच्चे मेडम के लिये सुंदर उपहार लेकर आए और मेडम की टेबल पर ढेर लग गया । इन खूबसूरती से पैक हुए उपहारो में एक पुराने अखबार में बदतर सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे उसे देखकर हंस रहे थे । किसी को जानने में देर न लगी कि यह उपहार राजू लाया होगा। मेडम ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर राजू वाले उपहार को निकाला। खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं द्वारा इस्तेमाल करने वाली इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक बड़ा सा कड़ा कंगन था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। मिस ने चुपचाप इस इत्र को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। बच्चे यह दृश्य देखकर सब हैरान रह गए। खुद राजू भी। आखिर राजू से रहा न गया और मिस के पास आकर खड़ा हो गया। ।
.
   कुछ देर बाद उसने अटक अटक कर मेडम को बोला "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।" इतना सुनकर मेडम के आखो मे आसू आ गये ओर मेडम ने राजू को अपने गले से लगा लिया
राजू अब दुसरी स्कूल मे जाने वाला था
राजू ने दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले ले लिया था
समय बितने लगा।
दिन सप्ताह,
सप्ताह महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है?
मगर हर साल के अंत में मेडम को राजू से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला।। मगर आप जैसा मेडम कोई नहीं था।"
.
फिर राजू की पढ़ाई समाप्त हो गया और पत्रों का सिलसिला भी सम्माप्त । कई साल आगे गुज़रे और मेडम रिटायर हो गईं।
एक दिन मेडम के घर अपनी मेल में राजू का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
"इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता। एक और बात .. मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं।। आप जैसा कोई नहीं है.........आपका डॉक्टर राजू
.
पत्र मे साथ ही विमान का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था।
मेडम खुद को हरगिज़ न रोक सकी। उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह राजू के शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं।
.
    उन्हें लगा समारोह समाप्त हो चुका होगा.. मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े डॉक्टर , बिजनेसमैन और यहां तक कि वहां पर शादी कराने वाले पंडितजी भी थक गये थे. कि आखिर कौन आना बाकी है...मगर राजू समारोह में शादी के मंडप के बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही एक बुड्ढी ओरत ने गेट से प्रवेश किया राजू उनकी ओर लपका और उनका वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह कड़ा पहना हुआ था कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया।
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   राजू ने माइक हाथ में पकड़ कर कुछ यूं बोला "दोस्तों आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलाउंगा।।।........
ध्यान से देखो यह यह मेरी प्यारी सी माँ दुनिया की सबसे अच्छी है यह मेरी माँ !  यह मेरी माँ हैं -
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!! प्रिय दोस्तों.... अपने आसपास देखें, राजू जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार और स्नेह नया जीवन दे सकता है...........

शनिवार, 20 नवंबर 2021

भक्ति में शक्ति

 

हरिराम एक मेडिकल स्टोर का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई  कहाँ रखी है।
वह इस व्यवसाय को बड़ी सावधानी और बहुत ही निष्ठा से करता था।

  दिन भर उसकी दुकान में  भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों  को सावधानी और समझदारी से देता था।

  परन्तु उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था । वह एक नास्तिक था,उसका मानना था की प्राणी मात्र की सेवा करना ही सबसे बड़ी पूजा है। और वह जरूरतमंद लोगों को दवा निशुल्क भी दे दिया करता था।
  और समय मिलने पर वह मनोरंजन हेतु अपने दोस्तों के संग दुकान में लूडो खेलता था।

एक दिन अचानक बारिश  होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, दोस्तों को बुला लिया और सब दोस्त मिलकर लूडो खेलने लगे।

  तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।

  हरिराम लूडो खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।

  ठंड से ठिठुरते हुए उस बच्चे ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए। बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि अब मेरी मां बच जाएगी।

उस लड़के की पुकार सुनकर लूडो खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई देने को उठा, लूडो के खेल में व्यवधान के कारण  अनमने से दवाई देने के लिए उठा ही था की बिजली चली गयी। अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।

दवा के पैसे दे कर लड़का  खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया।
अंधेरा होने के कारण खेल बन्द हो गया और दोस्त भी चले गऐ।

अब वह दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था। तभी लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा की शीशी थी। जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था और लूडो  खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि खेल समाप्त करने के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा !!

उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की विश्वसनीयता पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा।

यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को पिला दी, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी  छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपने लूडो खेलने के शौक को कोसने लगा और दूकान में खेलने के अपने शौक   को छोड़ने का निश्चय कर लिया
पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब उस गलत दी दवा का क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ  को बचाया जाए?

सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा।

पहली बार श्रद्धा से उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने भगवान का छोटा सा चित्र दुकान के उदघाटन के वक्त लगा दिया था , पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से परमात्मा के चित्र को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।

उन्होंने कहा था कि भगवान  की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और  हर बिगडे काम को ठीक करने की शक्ति है । हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने हाथ  जोड़कर, आंखें बंद करके कुछ बोलते हुऐ  देखा था।

उसने भी आज पहली बार दूकान के कोने में रखी उस धूल भरी भगवान की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम बहुत अधीर हो उठा। क्या बच्चे ने माँ को दवा समझ के जहर पिला दिया ? इसकी माँ मर तो नही गयी !!

हरिराम का रोम रोम कांप उठा ।पसीना पोंछते हुए उसने संयत हो कर धीरे से कहा- क्या बात है बेटा अब तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी...बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के निकट पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी?
हरिराम हक्का बक्का रह गया। क्या ये सचमुच परमात्मा का चमत्कार है !

हाँ! हाँ ! क्यों नहीं? हरिराम  ने चैन की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!
पर मेरे पास पैसे नहीं है।"उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।

कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना।  लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।

हरिराम की आंखों से अविरल आंसुओं की धार बह निकली। श्री बांके बिहारी को धन्यवाद  देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी छाती से पोंछने लगा और अपने माथे से लगा लिया
आज के चमत्कार को वह पहले अपने परिवार को सुनाना चाहता था।

जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी

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सोमवार, 15 नवंबर 2021

धर्म

 

*चिंतन के पल ....*  
   

      क्लास में आते ही नये टीचर ने बच्चों को अपना लंबा परिचय दिया.

बातों ही बातों में उसने जान लिया कि
लड़कियों की इस क्लास में सबसे तेज और सबसे आगे कौन सी लड़की है ?

       उसने खामोश सी बैठी उस लड़की से पूछा ~

बेटा, आपका नाम क्या है ?

   लड़की खड़ी हुई और बोली ~ जी सर , मेरा नाम है कल्पना !

         टीचर ने फिर पूछा ~ पूरा नाम बताओ बेटा ?
जैसे उस लड़की ने नाम में कुछ छुपा रखा हो.

    लड़की ने फिर कहा ~ जी सर ,
मेरा पूरा नाम कल्पना ही है.

टीचर ने सवाल बदल दिया ~ अच्छा ...
     
तुम्हारे पापा का नाम बताओ ?
लड़की ने जवाब दिया ~ जी सर ,
मेरे पापा का नाम है रामदयाल.

             टीचर ने फिर पूछा ? अपने पापा का पूरा नाम बताओ ?

               लड़की ने जवाब दिया ~
          मेरे पापा का पूरा नाम रामदयाल ही है, सर जी !

    अब टीचर कुछ सोचकर बोले ~
अच्छा अपनी माँ का पूरा नाम बताओ ?

    लड़की ने जवाब दिया ~ सर जी , मेरी माँ का पूरा नाम है जाह्नवि.

  टीचर के पसीने छूट चुके थे, क्योंकि अब तक वो, उस लड़की की फैमिली के पूरे बायोडाटा में जो एक चीज ढूंढने की कोशिश कर रहा था .... वो उसे नहीं मिली थी.

    उसने आखिरी पैंतरा आजमाया और पूछा  ~
  अच्छा तुम कितने भाई बहन हो ?

               टीचर ने सोचा, कि जो चीज वो ढूँढ रहा है शायद इसके भाई बहनों के नाम में वो क्लू मिल जाये ?

लड़की ने टीचर के इस सवाल का भी
बड़ी मासूमियत से जवाब दिया ~

     बोली ~ सर जी , मैं अकेली हूँ.
        मेरे कोई भाई बहन नहीं है.

         अब टीचर ने सीधा और निर्णायक सवाल पूछा ~
   बेटी, तुम्हारा धर्म और जाति क्या है ?

   लड़की ने इस सीधे से सवाल का भी सीधा सा जवाब दिया ~

बोली ~
सर, मैं एक विद्यार्थी हूँ, यही मेरी जाति है, और  ज्ञान प्राप्त करना ही मेरा धर्म है.

मैं जानती हूँ, कि अब आप मेरे पेरेंट्स की जाति और धर्म पूछोगे. ऊंची जात - नीची जात में बांटोगे !!
तो मैं आपको बता दूँ, कि
      मेरे पापा का धर्म है मुझे पढ़ाना  और ... मेरी मम्मी की जरूरतो को पूरा करना.
         और
मेरी मम्मी का धर्म है ...
मेरी देखभाल और मेरे  पापा की जरूरतों को पूरा करना.

लड़की का जवाब सुनकर टीचर के होश उड़ गये ...

उसने टेबल पर रख पानी के गिलास की ओर देखा, लेकिन उसे उठाकर पीना भूल गया.

तभी लड़की की आवाज ...
  एक बार फिर उसके कानों में किसी धमाके की तरह गूँजी ~

सर,
     मैं विज्ञान की छात्रा हूँ, और एक साइंटिस्ट बनना चाहती हूँ.
    जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगी, और अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर लूँगी, तब कभी फुरसत में सभी धर्मों के अध्ययन में जुटूँगी
❗ और जो भी धर्म ❗विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरेगा, उस पर अपनी पूरी श्रद्धा रखूंगी ।

लेकिन अगर धर्मग्रंथों के उन पन्नों में एक भी बात विज्ञान के विरुद्ध हुई, तो मैं उस पूरी पवित्र किताब को
अपवित्र समझूँगी.

क्योंकि साइंस कहता है?? ~
एक गिलास दूध में अगर एक बूंद भी केरोसिन मिली हो, तो पूरा का पूरा दूध ही बेकार हो जाता है.

लड़की की बात खत्म होते ही पूरी क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से  गूंज उठी.

तालियों की गूंज टीचर के कानों में बंदूक की गोलियों की गड़गड़ाहट की तरह सुनाई दे रही थी.

उसने आँंखों पर लगे   धर्म और जाति के मोटे चश्मे को उतार कर कुछ देर के लिए टेबल पर रख दिया.

थोड़ी हिम्मत जुटा कर ...
लड़की से बिना नजर मिलाये ही बोला ~ गर्व है तुम्हारी सोच पर !!

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रविवार, 14 नवंबर 2021

क़ीमत

 

एक बार दुनिया के सबसे धनवान व्यक्तियों में से एक बिल गेट्स से किसी ने पूछा:- "क्या इस धरती पर आपसे भी धनवान कोई है? "

बिल गेट्स ने जवाब दिया:- "हां, मेरी नज़र में एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी धनवान है।"
"कौन....? "
बिल गेट्स ने बताया....
"एक समय में जब मेरी प्रसिद्धि और अमीरी के दिन नहीं था । मैं न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था। वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा। पर मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया। अखबार बेचने वाले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने उससे छुट्टे पैसे ना होने की बात कही...
लेकिन लड़के ने मुझें अखबार देते हुए कहा:- "यह मैं आपको मुफ्त में देता हूं..."

बात आई और गई ...
कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे। उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया। मैं ये नहीं ले सकता..
उस लड़के ने कहा:- "आप इसे ले सकते हैं, मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूं, मैंने अखबार ले लिया ।"

तकरीबन 19 साल गुजरने के उपरांत अपनी ख्याति के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आई और मैंने उसे ढूंढना शुरू किया। कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया....
मैंने पूछा:- "क्या तुम मुझे पहचानते हो ? "

लड़का:- "हां,आप मि. बिल गेट्स हैं। "

गेट्स:- "तुम्हें याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ?"

लड़का:- "जी हां, बिल्कुल.. ऐसा दो बार हुआ था.."

गेट्स:- "मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूं....तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा.."

लड़का:- "सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि ऐसा करके आप मेरी मदद की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे.."

गेट्स:-  "क्यूं ..?"

लड़का:- "मैंने जब आपकी मदद की थी, उस वक़्त मैं एक गरीब लड़का था, जो सिर्फ़ अखबार बेचकर अपना गुजारा करता था। आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्यवान व्यक्ति हैं.. फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे...?"

बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति से भी अमीर था क्योंकि---

*"किसी की मदद करने के लिए उसने ख़ुद के अमीर होने का इंतजार नहीं किया था "....*

अमीरी पैसे से नहीं दिल से होती है। औऱ यकीनन किसी की मदद करने के लिए एक अमीर दिल का होना भी बहुत जरूरी है.....

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शनिवार, 13 नवंबर 2021

व्यवहार की सीख

 

एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा मिलनसार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुंचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?

उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहां पहुंचकर वह बोला— ''यह साड़ी कितने की दोगे?'' जुलाहे ने कहा- ''10 रुपए की।''

तब लड़के ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला- ''मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे?'' जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा— ''5 रुपए।'' लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किए और दाम पूछा? जुलाहा अब भी शांत। उसने बताया - ''ढाई रुपए।''


लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया। अंत में बोला- ''अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के?'' जुलाहे ने शांत भाव से कहा- ''बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।''

अब लड़के को शर्म आई और कहने लगा- ''मैंने आपका नुकसान किया है। अतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूं।'' जुलाहे ने कहा— ''जब आपने साड़ी ली ही नहीं, तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं?''

लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा, ''मैं बहुत अमीर आदमी हूं। तुम गरीब हो। मैं रुपए  दे दूंगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।''

जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा- ''तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल होती जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपए से यह घाटा कैसे पूरा होगा?''

जुलाहे की आवाज में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी। लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आंखें भर आई और वह जुलाहे के पैरों में गिर गया।

जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा- ''बेटा! यदि मैं तुम्हारे रुपए ले लेता तो उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी जिन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूंगा। पर तुम्हारी जिन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहां से लाओगे तुम? तुम्हारा पश्चाताप या अपने अभिमान को पहचानना ही मेरे लिए बहुत कीमती है।''

जुलाहे की ऊंची सोच-समझ और संयम की पराकाष्ठा ने लडके का जीवन बदल दिया।

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सोमवार, 8 नवंबर 2021

कर्मफल नियति

 

चिंतन के पल...

कर्म और कर्म फल की गति बहुत न्यारी होती है ।

आपने देखा होगा की बहुत से सेठ बहुत दान करते हैं और बहुत सी धर्मशाला और बहुत से अनाथालय और निःशुल्क अस्पताल और विद्यालय चला रहे होते हैं पर या तो वे कष्ट में पड़ जाते हैं या संतान शोक आदि हो जाता है ।

बहुत से लोग अचंभित हो जाते हैं की इतने अच्छे व्यक्ति को ईश्वर ने ( ईश्वर कह लें , प्रारब्ध कह लें , भाग्य कह लें , प्रकृति कह लें , फल कह लें , अनहोनी कह लें , बैड लक कह लें , आपके क्या शब्द प्रयोग करते हैं उस पर टिप्पणी नहीं है ) इतना शीघ्र क्यों उठा लिया ..

तो इसका संकेत भगवान मनु ने मनुस्मृति ( वही मनुस्मृति जो कुछ अज्ञानीयों द्वारा छाप छाप कर जलायी जाती है) में दिया है ..

वे कहते हैं की यदि किसी ने दूसरे का धन चोरी बेइमानी ( कम तौलना , अधिक लाभ पर बेचना , मूर्ख बनाकर बेचना ) या सूद खाकर बटोरा है तब उस धन का पाप ही उसे मिलेगा और उससे किया हुआ हर पुण्य कार्य ( धर्मशाला स्कूल अस्पताल इत्यादि) और तीर्थ यज्ञ इत्यादि का फल उसे मिलेगा जिसका वो धन था ।

अत: चालाकियाँ करके मनुष्य को धोखा दे सकते हैं , कर्म फल को नहीं और अगली कई पीढ़ियाँ उस पाप को ढोती रहती हैं ।

अत: हम बहुत चालाक न बनें और दूसरे का धन ( प्रत्यक्ष या परोक्ष सूद इत्यादि से ) न लूटें … प्रारब्ध को गणित भी आती है और न्याय भी …

दूसरों के ह्रदय को कष्ट पहुंचाना, तकलीफ़ देना , उसकी मजबूरी का फ़ायदा लेने की वृत्ति वाले कदापि कर्मफ़ल से बच न पाते हैं । निर्मल मन के होने की आदत बनाएं ।

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रविवार, 7 नवंबर 2021

स्वास्थ्य चर्चा - डेंगू से बचाव


आजकल डेंगू का बुखार बहुत ज्यादा फैला हुआ है जिसके कारण अस्पतालों में भारी भीड़ है और डेंगू जानलेवा भी बन जाता है ।

आमतौर पर डेंगू का बुखार जुलाई से नवंबर के मध्य ही ज्यादा होता है। डेंगू के बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है। यह एक तरह से फ्लू जैसी बीमारी है जो डेंगू के कारण होती है।

  डेंगू का मच्छर आमतौर पर सुबह और शाम के वक्त ही काटता है।
लक्षण-
     आमतौर पर डेंगू में बुखार 104 डिग्री होता है। सिर दर्द, हडियो और जोड़ में दर्द, जी मचलना, उल्टी लगना, आंखों के पीछे दर्द और शरीर पर लाल चकते होना इसकी मुख्य पहचान है।

आज तक डेंगू की कोई स्पेशल दवाई या गोली नहीं बनी है।

डेंगू का बुखार आमतौर पर एक सप्ताह तक रहता है। बुखार उतारने के लिए आयुर्वेदिक ओषधि महासुदर्शन घनवटी की दो– दो गोली सुबह और शाम चबा कर ले। अंग्रेजी दवाई पेरासिटामोल दे सकते हैं।

डेंगू का मच्छर 3 फीट से ऊंचा नहीं उड़ सकता इसलिए यह घुटनों से नीचे ही काटता है। अतः सबको सलाह है कि हर समय जूते पहनकर रखें।

डेंगू का बुखार होने पर सबसे बडी समस्या प्लेटलेट्स का कम होना है। आमतौर पर देखा गया है कि प्लेटलेट्स ज्यादा कम होने पर ब्लीडिंग होने के कारण मरीज की मृत्यु हो जाती है।

इसलिए सलाह है कि बुखार होने पर टेस्ट जरूर करवाएं , कहीं डेंगू वाला बुखार तो नहीं है और प्लेटलेट्स की भी जांच जरूर करवाएं।

डेंगू के मरीज को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड ही लेना चाहिए।

प्लेटलेट गिरने पर-

अगर प्लेटलेट कम है तो इनको बढ़ाने के लिए नारियल पानी, पपीते के पत्तों का जूस, गिलोय पानी में उबालकर उसका पानी, कीवी फ्रूट, पपीते का जूस और पपीते की गोली लगातार लेते रहे।

हर रोज दो कीवी फ्रूट जरूर खाएं।
दिन में दो बार नारियल पानी जरूर लें।
हर 15 मिनट में कोई ना कोई जूस जरूर लें।
पपीते के पत्तों की गोली दिन में तीन बार जरूर ले।
रात को सोते समय दूध में हल्दी उबालकर उसको पीएं।
दो गिलास पानी में 1 फीट गिलोय की डंडी को कुटकर हल्की आंच में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो ठंडा करके दिन में 4 बार उसको पिएं।

   सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी सोच को सकारात्मक रखें और यह सारी विधि करने से प्लेटलेट जल्दी ही बढ़ जाएंगी।

    अपने प्लेटलेटस को हर रोज चेक करवाएं एक बार प्लेटलेटस बढ़नी शुरू हो गई तो फिर एकदम से बढ़ जाती है।

   डेंगू के बुखार में प्लेटलेट गिरने के कारण खून पतला हो जाता है अतः ऐसी कोई गोली ना लें जिससे खून और पतला हो जाए और अगर शरीर पर कहीं भी खुजली हो रही हो तो खुजली बिल्कुल ना करें।

   डेंगू के बुखार में हैवी डाइट ना लें सिर्फ लिक्विड ही ज्यादा लें।

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दुनियादारी

 

जीवन का तीन पौन निकल गया पर सुदर्शन महतो इतने व्यग्र कभी नहीं हुए जितने उस दिन थे। जिसे दस वर्ष पूर्व ही इस तरह त्याग दिया कि फिर कभी उसका नाम तक ध्यान में नहीं आया, उसके लिए जाने क्यों आँखों से बार-बार लोर टपक उठता था। सन्तान का मोह सबसे बड़ा होता है। सुदर्शन महतो का तलमलाता हृदय कभी कह रहा था कि उन्हें दौड़ते हुए उसके पास चले जाना चाहिए, तो फिर उसी हृदय से आवाज आती, "नहीं! जिसने दुनिया के सामने मूँछ नीची कर दी उसके लिए कैसा मोह? उसके पास भूल कर भी नहीं जाना। मरती है तो मरे..."
सुदर्शन महतो इतने कठकरेजी नहीं थे कि बेटी मरती रहे और वे देखने भी न जाएं, पर समय और समाज के तानों नें उन्हें पत्थर बना दिया था।
गाँव के सभ्य लोगों में गिनती होती थी सुदर्शन महतो की, गाँव के किसी भी पँचायत में सबसे पहले बुलाया जाता था उन्हें। सरकारी स्कूल के चपरासी थे सुदर्शन महतो, पर समाज ने उन्हें मास्टर-डाक्टर के बराबर सम्मान दिया था। सम्मान के योग्य थे भी, उनकी सत्यनिष्ठा और प्रेम भरा व्यवहार पूरे जवार में प्रसिद्ध था।
पर जीवन की सारी कमाई ले कर डूब गई थी सुरतिया। एक झटके में सुदर्शन महतो आसमान से पाताल में जा गिरे थे।
सुरतिया उनकी सबसे छोटी पेटपोंछनी बेटी थी। अपने अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा मानते थे उसे सुदर्शन महतो। दूसरों के लिए डेढ़ सौ का कपड़ा किनते तो सुरतिया के लिए चार सौ से कम का सूट पसन्द नहीं आता था उन्हें। उनकी बड़ी लड़कियां मैटिक से आगे न बढ़ पायीं पर सुरतिया को इंटर तक पढ़ाया था उन्होंने। पर यही पढ़ाई ले डूबी। गाँव की दस लड़कियों के साथ इंटर की परीच्छा देने सीवान गयी सुरतिया जब लौट कर नहीं आयी तो बाप ने देखा, सुरतिया के साथ उनकी सारी प्रतिष्ठा भाग गई थी। उसके साथ की लड़कियों ने ही बताया कि वह अपने ही कॉलेज के "मकसूद अली" की मोटरसाइकिल पर बैठ कर चली गयी। गाँव मे किसी की बेटी भाग जाय तो यह खबर आग से भी तेज पसरती है। सुदर्शन महतो की नाक कट गई थी। लोगों के कहने पर उन्होंने मकसूद और उसके बाप पर अपहरण का केस किया, पर दस दिन के बाद कचहरी में जज साहेब के सामने सुरतिया ने कह दिया कि "हम अपने मन से मकसूद के साथ गए थे। हमलोगों ने बियाह कर लिया है। हमको अपने बाप माई से कवनो मतलब नहीं..."

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सुदर्शन महतो के लिए अब कुछ बचा नहीं था। कचहरी के बाहर सुरतिया से बस दो टुम बोल पाए सुदर्शन महतो, " एक दिन बड़ी पछतइबे बबुनी...", पर सुरतिया प्रेम के नशे में थी, वह मुह घुमा कर चली गयी। सुदर्शन महतो ने उसी दिन सुरतिया को मरा हुआ मान लिया। तबसे सुदर्शन महतो लाज के मारे घर से नहीं निकलते थे। उनकी सारी दिनचर्या घर में ही पूरी होती थी। कहीं जाते भी तो लोगों से बचते बचाते... सुरतिया उन्हें समाज से काट चुकी थी।
दस वर्ष बीत गए, पर कभी पिघले नहीं महतो जी।मकसूद का गाँव मात्र पाँच किलोमीटर दूर था, पर कभी भूल कर भी उधर नहीं गए। दो बरस बाद ही मकसूद ने सुरतिया को तलाक दे दिया, पर महतो जी ने उसके बारे में जानना भी नहीं चाहा। सुरतिया भी कौन सा मुह लेकर आती? बाद में लोगों ने बताया कि सिवान में ही अपने छह माह के बेटे को लेकर रहती है, और लोगों के घर चौका-बरतन करती है। महतो जी के लिए यह रेडियो-अखबार के समाचार जैसा था, उन्होंने सुन कर भी जैसे कुछ नहीं सुना।
तीन साल पूर्व उनके अंदर कुछ पिघला था। गाँव के राजेसर तिवारी से एक दिन सिवान सदर अस्पताल में मिली थी सुरतिया, उसके बेटे को निमोनिया हुआ था। राजेसर तिवारी ने महतो जी को बताया कि बहुत रो रही थी। हिचकते-हिचकते ही बोली कि बाबूजी से दू हजार रुपिया... गलती सही का हिसाब करने से अब क्या लाभ, अभागिन के पास जीने का बहाना यही बेटा ही है, बच जाय तो कइसे भी जिनगी गुजार लेगी...
पता नहीं पैसा महतो जी ने दिया या राजेसर तिवारी अपने पास से ले गए, पर अगली सुबह जब तक पहुँचे तबतक सुरतिया का बेटा निकल चुका था।
महतो जी का हृदय थोड़ा सा भीगा था उसदिन, पर फिर बात जैसे आयी-गयी हो गयी। महतो जी सुरतिया को देखने भी नहीं गए, उनके लिए सुरतिया जैसे थी ही नहीं... पर आज वे स्वयं को रोक नहीं पा रहे थे। उनके अंदर का सारा क्रोध, सारी घृणा, सारी पीड़ा जैसे सन्तान के मोह से हार रही थी। आज सुबह ही किसी ने बताया था सुरतिया फिर अस्पताल में है। अकेली... उसे टीबी है और अंतिम चरण में है।

हिन्दी फिल्मों का एक बड़ा ही प्रसिद्ध संवाद है-"प्रेम के आगे हर माँ-बाप हारते हैं"। असल में यह कोरा झूठ है। माँ-बाप अपने बच्चों के प्रेम के आगे नहीं हारते, वे हारते हैं अपने उस प्रेम के आगे जो स्वयं वे अपने बच्चों से करते हैं। महतो जी भी भले सदैव सुरतिया के प्रेम पर थूकते रहे थे, पर आज अपने प्रेम के आगे जैसे हार गए थे।

महतो जी दोपहर में सदर अस्पताल पहुँचे तो जाने क्यों उन्हें सुरतिया के सामने जाने में डर लग रहा था। वे भावनाओं में बह कर आये तो थे, पर उसका सामना नहीं करना चाहते थे। पर सामना तो करना था... पूरे दस वर्ष बाद वे देख रहे थे बेटी को, पर यह तो जैसे उनकी बेटी थी ही नहीं। भिखमंगे की तरह फटेहाल, देह में जैसे खून-पानी ही नहीं था। सूख कर हड्डी का ढाँचा हो गयी थी। महतो जी फफक पड़े। बच्चे कितना भी बड़ा अपराध कर दें, पिता उनका त्याग नहीं कर पाता। महतो जी के पास कहने सुनने को कुछ था नहीं, डाक्टर ने पहले ही बता दिया था कि अब अंतिम.... समय से खाना नहीं खाने के कारण... सीधे सीधे भुखमरी...
महतो जी ने कुछ कहने के लिए कहा- एक बार कह कर तो देखती बेटी...
पीली पड़ चुकी सुरतिया के मुह पर अजीब से भाव उभर आये। बोली- कौन सा मुह ले कर आती बाबूजी?
महतो जी की आँखे फिर भर गयीं। बोले- पूछना नहीं चाहता था पर पूछता हूँ, वैसा क्यों किया था?
सुरतिया चुपचाप पड़ी रही। बहुत समय बाद बोली- बाबूजी कहूँ तो बुरा नहीं न मानोगे?
-अब बुरा मानने के लिए बचा ही क्या है रे, कह ले...

- मैं तो बच्ची थी बाबूजी, समझ नहीं पायी कि गलत क्या और सही क्या है। गलती मेरी थी तो सजा भी अकेले ही भोग लिए। सुअर की तरह मार खाती रही पर कभी आपका नाम ले कर नहीं रोई। घर से निकाल दी गयी तो भीख माँग कर खाती रही पर आपके पास नहीं गयी। लोगों के घर झाड़ू-पोंछा करती रही, पर कभी आपको दोष नहीं दिया। गलती मेरी थी, किस मुह से आपको दोष देती? पर क्या सारा दोष मेरा ही था? बच्चे तो कोरा कागज होते हैं न... मैं घर में रहने वाली बच्ची, मुझे दुनियादारी की समझ नहीं थी, पर आपको तो थी न? क्या आपने कभी बताया था कि दुनिया में लड़कियों को बहला कर लूटने वाले भी घूम रहे हैं इनसे दूर रहना चाहिये? तनिक सोचिये तो, यदि आपने समय पर अच्छा बुरा समझाया होता तो आज आपकी बेटी ऐसी मिलती? आपने कभी आपने प्रेम से अपने पास बैठा कर अच्छा-बुरा समझाया नहीं था, उसने प्रेम का झूठ बोला मैं उसी को सच समझ बैठी। आपसे प्रेम मिला नहीं था, उसके प्रेम को देख कर लगा कि यही सबकुछ है सो बहक गयी। अब तो सब कुछ....
सुरतिया की सांस फूलने लगी थी। महतो जी अब खुल कर रो उठे थे... वे सरक कर बेटी के निकट आ गए थे, उसका सर अब उनकी गोद मे था।
कुछ देर बाद सुरतिया के मुह से कुछ शब्द फूटे, "भागने वाली लड़कियां बुरी नहीं होतीं बाबूजी, नादान होती हैं... खैर छोड़िये! अब तो सब... अच्छी-बुरी जैसी भी थी, अभागन आपकी बेटी ही थी न... मुझे याद रखियेगा न बाबूजी..."
सुदर्शन महतो चिल्ला उठे, सुरतिया उनकी जाँघ पर सर रखे ही निकल गयी...

दस वर्षों तक दुनियादारी से दूर रहने वाले सुदर्शन महतो आजकल हर मिलने वाले से एक बात जरूर कह जाते हैं, " हमारी तरह मूर्खता मत करना भाई, बेटी हो तो उसका मित्र बनना बाप नहीं।"
पता नहीं कोई उनकी बात सुनता भी है या नहीं...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख जी की रचना.

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