गुरुवार, 23 जून 2022

भावना

 

प्रासंगिक -

अयोध्या की पिटाई , सनातन धर्म का दृष्टिकोण

पहली बात कामना भी एक पुरुषार्थ है । और यह चारों पुरुषार्थ से कम महत्व की नहीं है अन्यथा संसार की गति ही रूक जाए ।

काम को भी शास्त्र माना गया और वात्स्यायन को भी मुनि । और चौसठ हो या चौरासी आसन ( काम शास्त्र के ) उन पर भी सनातन धर्म की बड़ी स्पष्ट दृष्टि रही ।

अरबी जानवरों के प्रभाव के कारण चौदह सौ वर्षों में हममें भी वही विकृतियाँ आयीं हैं और हमारा साधारण व्यवहार भी उन्हीं किताबियों के जैसे ही होता जा रहा है ।

सनातन धर्म का एक सर्वमान्य सिद्धांत है की कोई क्रिया सदैव धर्म या अधर्म नहीं रहती , वही क्रिया उचित स्थान , उचित देश , उचित समय में धर्म बन जाती है पर वही क्रिया उस क्रिया के उपयुक्त स्थान देश काल न होने पर अधर्म बन जाती है ।

अपनी पत्नी के प्रति कामना बुद्धि धर्म है । पर उस कामना की पूर्ति के लिए स्थान देश और समय का ध्यान रखना पड़ता है ।

जैसे तीर्थयात्रा में , ग्रहण काल में , व्रत उपवास में , घर में सूतक या अशौच लगा हो तो अपनी पत्नी से भी काम क्रिया अधर्म हो जाती है ।

अतः अयोध्या में सरयू स्नान के समय पति पत्नी को ऐसी कोई कामुक क्रिया या बेहूदा प्रदर्शन नहीं करना चाहिए जो अन्य लोगों के भाव को क्षति पहुताए ।

जो वस्तु जितनी लाभदायक होती है वही वस्तु उतनी ही हानिकारक हो जाती है यदि उसका अनुचित उपयोग हो तो ।

न्यूक्लिअर पॉवर से स्वच्छ बिजली पैदा करी जा सकती है पर उसी न्यूक्लियर के अनुचित उपयोग से मानवता नष्ट भ्रष्ट भी हो सकती है ।

तीर्थयात्रा में किये हुए पुण्य सौ गुना फल देते हैं पर उसी तीर्थयात्रा में किए हुए पाप लाख गुना पाप भी देते हैं ।

बहुत संभव है अयोध्या की घटना टूलकिट का हिस्सा हो समाचार बनने के लिए ,  पर जो भी यह पोस्ट पढ़े वह व्रत उपवास , तीर्थयात्रा, एकादशी और ग्रहणकाल में कामक्रिया से दूर रहे ।

और यदि आप यह सब कुछ नहीं मानते तो अयोध्या क्यों जाना ? क्यों औरो की भावना को अशुद्ध करना ?
- शब्द राज शेखर जी के

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