रविवार, 12 सितंबर 2021

ज्यादा इंसान

 

एक फ्रीजर की प्लांट में काम करने वाले इंजिनियर का किस्सा है। होता यूँ है की जब भी कभी कोई पुर्जा ख़राब होता है तभी इंजिनियर का काम शुरू होता है। ऐसे में मैकेनिकल इंजिनियर का काम अक्सर शाम में ही शुरू होता है। करीब पचास लोग इस प्लांट में काम करते थे और शाम के वक्त एक दिन कुछ ख़राब हो गया। इंजिनियर ठीक करने में जुटा, थोड़ी ही देर में बता दिया की जो पुर्जा टूटा है वो कोई दो तीन घंटे में ठीक होगा। इंजिनियर पुर्जे को ठीक करने मशीनों के बीच कहीं जा घुसा।

लोगों को पता था की शाम हो चुकी है और काफी वक्त लगने वाला है मरम्मत में, एक एक करके लोग घर की तरफ निकलने लगे। गार्ड अन्दर झाँका, फैक्ट्री बंद करने का समय हो चुका था और कोई भी अन्दर नजर नहीं आया तो वो भी ताला बंद कर के अपनी रात की ड्यूटी पर जा बैठा। इधर अन्दर घुसे हुए इंजिनियर को जैसे ही बाहर आना पड़ा तो उसने देखा की सब लोग तो उसे बंद करके जा चुके है !

रात भर बर्फ़ बनाने की फैक्ट्री में बंद रहने का एक ही मतलब था। निश्चित मौत ! इंजिनियर अक्सर ऐसी स्थिति के लिए प्रशिक्षित होते हैं। इंजिनियर को पता था की शोर मचाने और दौड़ भाग करने पर उसके शरीर की गर्मी ख़त्म होती जाएगी और उस हाल में मौत जल्दी होगी। इंजिनियर चुप चाप बैठकर आने वाली मौत का इंतज़ार करने लगा। उधर दस बजे सिक्यूरिटी गार्ड की ड्यूटी बदलने का वक्त हुआ तो दूसरा गार्ड दिन वाले की जगह आया। जैसे ही उसे चाभी देकर दिन का गार्ड जाने वाला था अचानक उसे कुछ याद आया।

उसने भागकर फैक्ट्री का दरवाजा खोला और जल्दी फ्रीजिंग मशीन की तरफ भागा। टॉर्च जलाते ही वहां बैठा इंजिनियर नजर आ गया। दोनों कर्मचारियों ने मिलकर काफी कमज़ोर हो चुके इंजिनियर को खींचकर बाहर निकाला। थोड़ी देर में जब इंजिनियर की हालत कुछ बेहतर हुई तो उसने पुछा, तुम्हें अंदाजा कैसे हुआ की मैं अन्दर फंसा हूँ ? किसने तुम्हें ढूँढने भेजा ? दिन वाला गार्ड बोला, किसी ने नहीं भेजा साहब ! आप हर रोज़ आते जाते मुझे भी गुड मॉर्निंग, गुड नाईट कहते जाते हो। आज आपने गुड नाईट कहा नहीं था। मैंने रात वाले गार्ड को गुड नाईट कहा तो मुझे याद आया की हर रोज़ गुड नाईट कहने वाले साहब आज निकले नहीं क्या ?

मैंने पता किया,  आये थे? पता चला आये हो ! , तो मैं ढूँढने चला आया।

कुछ साल पहले एक स्पेशल बत्ती वाली कार में बैठे कमिश्नर की गाड़ी से जाते जब उनको हर सिपाही को वापिस सलाम करते देखा था तो उनसे पुछा था। जवाब आया था की वो हम जैसों की सुविधा के लिए सारे दिन धूप में खड़ा है मैं सल्यूट का जवाब भी ना दूं ? फिर उन्होंने ये किस्सा सुनाया था। 

आम तौर पर ऐसे कैब-टैक्सी या एम्बुलेंस के ड्राईवर हों, फल सब्जी बेचने के ठेले लगाने वाले हों, दूध-अख़बार पहुँचाने वाले हों, उन सब पर कोई ध्यान नहीं देता। कम पहचाने जाने वाले लोगों को नमस्ते कर देने में उतना कुछ जाता नहीं। हाँ, आप थोड़े ज्यादा इंसान हो जायेंगे, ऐसा हो सकता है।

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