सोमवार, 27 सितंबर 2021

बात सोचने वाली

 सोमवारिय चिंतन...

बात तो सोचने वाली है...

 हमारी या आपकी दादी मां ने कहीं से MBA नहीं किया था लेकिन संयुक्त परिवार का संयोजन और अर्थ प्रबंधन वो सबसे सुंदर ढंग से करतीं थीं।


 उन्होंने कोई समाज शास्त्र या राजनीतिशास्त्र नहीं पढ़ा था पर अपने आसपास के समाज से, पूरे गांव से उनके मधुर संबंध होते थे और अपने व्यवहार से उन्होंने पूरे गांव को आत्मीय रिश्तों से जोड़ कर रखा था।


 उन्होंने कोई मेडिकल साइंस नहीं पढ़ी थी पर सर्दी, जुकाम, बदन दर्द, मोच, चेचक और बुखार जैसी बीमारियों को ठीक कर देने का सामर्थ्य रखतीं थी।


 उन्होंने कहीं से स्ट्रेस मैनेजमेंट या इंस्प्रेशनल वीडियो नहीं देखे थे पर परिवार के हर हतोत्साहित में उत्साह का संचार कर देती थी।


  वो  पेटा "यूया* किसी और ऐसे संगठन की मेंबर नहीं थीं पर सुबह गाय को पहली रोटी डालने से लेकर दरवाजे पर बैठने वाले कुत्ते, बिल्लियों, बैल और चिड़ियों और चींटियों तक के लिए खाने पानी की व्यवस्था करती थी।


  उसे वोट लेना नहीं था, न ही अपने कामों के फोटो फेसबुक या व्हाट्सएप पर अपलोड करना था पर तब भी वो दरवाजे पर आने वाले हर सामान बेचने वाले, मांगने वाले, भांट, नट इत्यादि को अन्न, पैसे और भोजन देती थी और उनके नाम तक जानती थी।


  उसे अपनी स्थानिक बोली को छोड़कर ठीक से हिंदी बोलना भी नहीं आता था पर वो भारत के सारे तीर्थस्थानों का भ्रमण कर लेती थीं।


  उसने रामायण, महाभारत या पुराण नहीं पढ़े थे पर उसे दर्जनों पौराणिक आख्यान स्मरण थे।


   वो कोई पर्यावरणविद नहीं थीं लेकिन गंगा को गंगा जी, यमुना को यमुना जी कहतीं थीं और पेड़ के पत्ते को भी बिना जरूरत तोड़ने से मना करतीं थीं। 


  उन्होंने जैव विविधता पर कोई कोर्स नहीं किया था लेकिन हमें कहती थीं कि जीव हत्या पाप है।


हमारी/आपकी दादी-नानी को नमन!!

काश हम उन संस्कारों को यथावत अगली पीढ़ी को सौंप सकें... 


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