शनिवार, 30 दिसंबर 2023

उर्मिला 33

 

उर्मिला 33

माता के प्रश्न अभी समाप्त नहीं हुए थे। उन्होंने फिर कहा, "चलो मान लिया कि राम का वनवास जगतकल्याण के लिए हुआ है। यह भी मान लेती हूँ कि इस कार्य के लिए मेरा चुनाव नियति ने इसी कारण किया कि राम को सर्वाधिक प्रेम मैंने ही किया है। पर यह तो संसार के कल्याण की बात हुई न बेटी? मेरा क्या? तनिक मेरे लिए तो सोचो... मुझे मेरे पति ने त्याग दिया, मेरे पुत्र ने त्याग दिया। युग युगांतर के लिए मैं सबसे बड़ी अपराधिनी सिद्ध हो गयी। राम और भरत जैसे पुत्रों की माता होने बाद भी मैं ऐसी कलंकिनी हो गयी कि अब भविष्य में शायद ही कोई अपनी पुत्री का नाम कैकई रखे। यह मेरे किस अपराध का दण्ड है पुत्री?
    उर्मिला कुछ क्षण मौन रहीं। माता का प्रश्न ऐसा नहीं था कि उसे सांत्वना दिलाने के प्रयास के साथ दबा दिया जाता। उनका प्रश्न, उनकी पीड़ा से उपजा था। एक निर्दोष स्त्री के अनायास ही युग युगांतर के लिए दोषी सिद्ध हो जाने की पीड़ा...
     कुछ क्षण बाद एक उदास मुस्कुराहट के साथ उर्मिला ने उत्तर दिया। हम युगनिर्माता के परिवारजन हैं माता! महानायक राम के अपने हैं हम। इसका कुछ तो मूल्य चुकाना होगा न? तनिक देखिये तो, कौन नहीं चुका रहा है मूल्य? पिता को प्राण देना पड़ा। एक वधु वन को गयी तो अन्य तीन वधुओं के हिस्से भी चौदह वर्ष का वियोग ही आया। भइया के साथ साथ उनके तीनों अनुज भी सन्यासी जीवन जी रहे हैं। तीनों माताओं को पुत्र वियोग भोगना पड़ रहा है। दुख तो सबके हिस्से में आये हैं माता! हाँ यह अवश्य है कि आपके हिस्से में तनिक अधिक आये। तो अब क्या ही किया जा सकता है? नियति की योजनाओं को चुपचाप स्वीकार करना पड़ता है, हम इससे अधिक तो कुछ नहीं ही कर सकते न!
      कैकई चुपचाप निहारती रह गईं उनकी ओर! उर्मिला सत्य ही तो कह रही थीं। देर तक शान्ति पसरी रही। यह शान्ति पुनः उर्मिला ने ही भंग की। कहा, "इस अपराधबोध से बाहर निकलिये माता! न आपका कोई दोष है, न मंथरा का। हम सब भइया की महायात्रा के संगी हैं और अपने अपने हिस्से का कार्य कर रहे हैं। इसमें न कोई अच्छा है न बुरा। सब समान ही है।"
      "तो क्या मुझे कभी क्षमा न मिलेगी?" सबकुछ समझने के बाद भी स्वयं से बार बार पराजित हो जाने वाली कैकई के प्रश्न कम नहीं हो रहे थे।
      "कैसी क्षमा माता? जिसके प्रति अपराधबोध भरा है आपमें, वे तो आप से जरा भी नाराज नहीं होंगे। उन्हें यूँ ही तो समूची अयोध्या इतना प्रेम नहीं करती न! वे एक क्षण के लिए भी अपनी माता से नाराज नहीं हो सकते। जब वे लौट कर आएंगे तब देखियेगा, वे सबसे पहले अपनी छोटी माँ के चरणों में ही गिरेंगे। और रही बात संसार की, तो वैसे मर्यादित और साधु पुरुषों की माता को संसार से किसी क्षमा की आवश्यकता नहीं। आपके पुत्रों के स्मरण मात्र से संसार के पाप धुलेंगे माता! यह इस संसार पर आपका उपकार है। संसार आपको क्या ही क्षमा करेगा, उसे तो युग युगांतर तक आपके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये।"
     कैकई के मुख पर जाने कितने दिनों बाद एक सहज मुस्कान तैर उठी। उन्होंने उर्मिला को भींच कर गले लगा लिया। पर पलभर में ही वह मुस्कान रुदन में बदल गयी। पुत्रवधु के गले से लिपटी कैकई देर तक रोती रहीं। उर्मिला चुपचाप उनकी पीठ सहला रही थीं।
     बहुत देर बाद जब वे अलग हुईं तो देखा, माता कौशल्या और सुमित्रा का साथ उनके कंधे पर था, और मांडवी और श्रुतिकीर्ति भी उनके पास खड़ी थीं। राम परिवार की देवियों ने जैसे कैकई को अपराधी मानने से इनकार कर दिया था।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )
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