शनिवार, 30 दिसंबर 2023

उर्मिला 33

 

उर्मिला 33

माता के प्रश्न अभी समाप्त नहीं हुए थे। उन्होंने फिर कहा, "चलो मान लिया कि राम का वनवास जगतकल्याण के लिए हुआ है। यह भी मान लेती हूँ कि इस कार्य के लिए मेरा चुनाव नियति ने इसी कारण किया कि राम को सर्वाधिक प्रेम मैंने ही किया है। पर यह तो संसार के कल्याण की बात हुई न बेटी? मेरा क्या? तनिक मेरे लिए तो सोचो... मुझे मेरे पति ने त्याग दिया, मेरे पुत्र ने त्याग दिया। युग युगांतर के लिए मैं सबसे बड़ी अपराधिनी सिद्ध हो गयी। राम और भरत जैसे पुत्रों की माता होने बाद भी मैं ऐसी कलंकिनी हो गयी कि अब भविष्य में शायद ही कोई अपनी पुत्री का नाम कैकई रखे। यह मेरे किस अपराध का दण्ड है पुत्री?
    उर्मिला कुछ क्षण मौन रहीं। माता का प्रश्न ऐसा नहीं था कि उसे सांत्वना दिलाने के प्रयास के साथ दबा दिया जाता। उनका प्रश्न, उनकी पीड़ा से उपजा था। एक निर्दोष स्त्री के अनायास ही युग युगांतर के लिए दोषी सिद्ध हो जाने की पीड़ा...
     कुछ क्षण बाद एक उदास मुस्कुराहट के साथ उर्मिला ने उत्तर दिया। हम युगनिर्माता के परिवारजन हैं माता! महानायक राम के अपने हैं हम। इसका कुछ तो मूल्य चुकाना होगा न? तनिक देखिये तो, कौन नहीं चुका रहा है मूल्य? पिता को प्राण देना पड़ा। एक वधु वन को गयी तो अन्य तीन वधुओं के हिस्से भी चौदह वर्ष का वियोग ही आया। भइया के साथ साथ उनके तीनों अनुज भी सन्यासी जीवन जी रहे हैं। तीनों माताओं को पुत्र वियोग भोगना पड़ रहा है। दुख तो सबके हिस्से में आये हैं माता! हाँ यह अवश्य है कि आपके हिस्से में तनिक अधिक आये। तो अब क्या ही किया जा सकता है? नियति की योजनाओं को चुपचाप स्वीकार करना पड़ता है, हम इससे अधिक तो कुछ नहीं ही कर सकते न!
      कैकई चुपचाप निहारती रह गईं उनकी ओर! उर्मिला सत्य ही तो कह रही थीं। देर तक शान्ति पसरी रही। यह शान्ति पुनः उर्मिला ने ही भंग की। कहा, "इस अपराधबोध से बाहर निकलिये माता! न आपका कोई दोष है, न मंथरा का। हम सब भइया की महायात्रा के संगी हैं और अपने अपने हिस्से का कार्य कर रहे हैं। इसमें न कोई अच्छा है न बुरा। सब समान ही है।"
      "तो क्या मुझे कभी क्षमा न मिलेगी?" सबकुछ समझने के बाद भी स्वयं से बार बार पराजित हो जाने वाली कैकई के प्रश्न कम नहीं हो रहे थे।
      "कैसी क्षमा माता? जिसके प्रति अपराधबोध भरा है आपमें, वे तो आप से जरा भी नाराज नहीं होंगे। उन्हें यूँ ही तो समूची अयोध्या इतना प्रेम नहीं करती न! वे एक क्षण के लिए भी अपनी माता से नाराज नहीं हो सकते। जब वे लौट कर आएंगे तब देखियेगा, वे सबसे पहले अपनी छोटी माँ के चरणों में ही गिरेंगे। और रही बात संसार की, तो वैसे मर्यादित और साधु पुरुषों की माता को संसार से किसी क्षमा की आवश्यकता नहीं। आपके पुत्रों के स्मरण मात्र से संसार के पाप धुलेंगे माता! यह इस संसार पर आपका उपकार है। संसार आपको क्या ही क्षमा करेगा, उसे तो युग युगांतर तक आपके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये।"
     कैकई के मुख पर जाने कितने दिनों बाद एक सहज मुस्कान तैर उठी। उन्होंने उर्मिला को भींच कर गले लगा लिया। पर पलभर में ही वह मुस्कान रुदन में बदल गयी। पुत्रवधु के गले से लिपटी कैकई देर तक रोती रहीं। उर्मिला चुपचाप उनकी पीठ सहला रही थीं।
     बहुत देर बाद जब वे अलग हुईं तो देखा, माता कौशल्या और सुमित्रा का साथ उनके कंधे पर था, और मांडवी और श्रुतिकीर्ति भी उनके पास खड़ी थीं। राम परिवार की देवियों ने जैसे कैकई को अपराधी मानने से इनकार कर दिया था।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )
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सोमवार, 25 दिसंबर 2023

चिन्तन

 चिन्तन की धारा ...


Washington DC  एक मेट्रो स्टेशन पर........2007 में जनवरी की एक ठंडी सुबह .........

एक व्यक्ति ने Violin पे लगभग 45 मिनट तक Bach की 6 रचनाएं बजाईं। 

उस दौरान, लगभग 2000 लोग उस स्टेशन से गुज़रे, जिनमें से अधिकांश काम पर जा रहे थे।


लगभग चार मिनट के बाद, एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने देखा कि वहाँ एक संगीतकार Violin बजा रहा है । उसने अपनी गति धीमी कर दी और कुछ सेकंड के लिए रुक गया, और फिर वह अपने काम को पूरा करने के लिए जल्दी से आगे बढ़ गया।


लगभग चार मिनट बाद, वायलिन वादक को अपना पहला डॉलर प्राप्त हुआ। एक महिला ने टोपी में पैसे फेंके और बिना रुके चलती रही।

छह मिनट बाद एक युवक वो संगीत सुनने के लिए रुका, दीवार के सहारे झुक के कुछ देर सुना , फिर अपनी घड़ी की ओर देखा और फिर चला गया ।


दस मिनट पर, एक तीन साल का लड़का रुका, लेकिन उसकी माँ ने उसे जल्दी से खींच लिया। बच्चा फिर से वायलिन वादक को देखने के लिए रुका, लेकिन माँ ने जोर से धक्का दिया और बच्चा पूरे समय अपना सिर घुमाता हुआ चलता रहा। 

यह क्रिया कई अन्य बच्चों द्वारा दोहराई गई, लेकिन प्रत्येक माता-पिता ने - बिना किसी अपवाद के - अपने बच्चों को जल्दी से आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया।


पैंतालीस मिनट तक संगीतकार लगातार बजाता रहा। केवल छह लोगों ने थोड़ी देर रुककर सुना। लगभग बीस लोगों ने पैसे दिये लेकिन अपनी सामान्य गति से चलते रहे। 

उस आदमी ने कुल $32 एकत्र किये।


एक घंटे के बाद:

उसने बजाना बंद कर दिया और सन्नाटा छा गया। 

किसी ने ध्यान नहीं दिया और किसी ने सराहना नहीं की. 

Violin वादक की पहचान ही नहीं हुई.

कोई नहीं जानता था कि वह महान वायलिन वादक  Joshua Bell थे, जो दुनिया के महानतम संगीतकारों में से एक थे। 

उन्होंने 3.5 मिलियन डॉलर मूल्य के वायलिन पे अब तक लिखे गए सबसे जटिल बंदिश में से एक बजाई थी।

दो दिन पहले इन्ही जोशुआ बेल ने बोस्टन में श्रोताओं से भरे एक थिएटर में, जहां बैठने और उसी संगीत को सुनने के लिए प्रत्येक सीट की कीमत औसतन $100 थी , यही संगीत बजाया था।


यह एक सच्ची कहानी है। 

Joshua Bell DC मेट्रो स्टेशन में गुप्त रूप से Violin बजा रहे थे। Washington Post द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम लोगों की जीवन की प्राथमिकताओं के बारे में एक सामाजिक प्रयोग के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था।


इस प्रयोग ने कई प्रश्न खड़े किये:

किसी सामान्य स्थान पे , सामान्य वातावरण में, किसी अनुचित समय पर, क्या हम अपने इर्द गिर्द उपस्थित सौंदर्य का अनुभव कर पाते हैं?


यदि हम उस सौंदर्य को पहचान भी लें तो क्या हम इसकी सराहना करने उसे enjoy करने के लिए पल भर ठहरते हैं?


क्या हम किसी अप्रत्याशित संदर्भ में प्रतिभा को पहचानते हैं?


इस प्रयोग से प्राप्त एक संभावित निष्कर्ष यह हो सकता है:

अगर हमारे पास रुकने और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से एक को सुनने के लिए एक पल का भी समय नहीं है, जो अब तक रचित सबसे बेहतरीन संगीतों में से एक को सुना रहा है, आज तक की सबसे खूबसूरत और महंगी Violin पे?


जीवन की भागदौड़ में हम और कितनी चीज़ें खो रहे हैं?


एक पल ठहर के सोचिए ज़रा।


मूलतः अंग्रेजी में लिखी अज्ञात पोस्ट का हिंदी अनुवाद

रविवार, 24 दिसंबर 2023

कहानी टीचर बनने की

 कहानी

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सर .....मुझे पहचाना.....

कौन....

सर..... मैं आपका स्टूडेंट.. 40 साल पहले का.....


ओह.... अच्छा, आजकल ठीक से दिखता नही बेटा 

और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है...

इसलिए नही पहचान पाया। 


खैर... आओ, बैठो.. क्या करते हो आजकल......

उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते 

हुए पूछा...

.

सर....मैं भी आपकी ही तरह टीचर बन गया हूँ....

.

वाह.....यह तो अच्छी बात है लेकिन टीचर की तनख़ाह तो बहुत कम होती है फिर तुम कैसे…...

.

सर.... जब मैं सातवीं क्लास में था तब हमारी कलास में एक वाक़िआ हुआ था.. उस से आपने मुझे बचाया था। मैंने तभी टीचर बनने का इरादा कर लिया था। 

.

वो वाक़िआ मैं आपको याद दिलाता हूँ.. 

आपको मैं भी याद आ जाऊँगा।

.

अच्छा ....

क्या हुआ था तब .....

.

सर, सातवीं में हमारी क्लास में एक बहुत अमीर 

लड़का पढ़ता था। 

जबकि हम बाक़ी सब बहुत ग़रीब थे। 

.

एक दिन वोह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया था 

और उसकी घड़ी चोरी हो गयी थी। 

कुछ याद आया सर.....

.

सातवीं कक्षा.....

.

हाँ सर, उस दिन मेरा दिल उस घड़ी पर आ गया था 

और खेल के पीरियड में जब उसने वह घड़ी अपने 

पेंसिल बॉक्स में रखी तो मैंने मौक़ा देखकर 

वह घड़ी चुरा ली थी।

.

उसके बाद आपका पीरियड था...

.

उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की 

शिकायत की। 

.

आपने कहा कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है 

उसे वापस कर दो। मैं उसे सज़ा नहीं दूँगा। 

.

लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई 

घड़ी वापस करने की।

.

फिर आपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और 

हम सबको एक लाइन से आँखें बंद कर खड़े 

होने को कहा... 

.

और यह भी कहा कि आप सबकी जेब देखेंगे... 

.

लेकिन जब तक घड़ी मिल नहीं जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नहीं खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।

.

हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए। 

.

आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे। 

जब आप मेरे पास आये तो 

मेरी धड़कन तेज होने लगी। 

.

मेरी चोरी पकड़ी जानी थी। 

अब जिंदगी भर के लिए मेरे ऊपर चोर का 

ठप्पा लगने वाला था। 

.

मैं पछतावे से भर उठा था। 

उसी वक्त जान देने का इरादा कर लिया था लेकिन….

.

लेकिन मेरी जेब में घड़ी मिलने के बाद भी 

आप लाइन के आख़िर तक सबकी जेब देखते रहे। 

.

और घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा...

.

अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नहीं आना 

और जिसने भी यह चोरी की थी वह 

दोबारा ऐसा काम न करे। 

.

इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढाने लगे थे... कहते कहते उसकी आँख भर आई।

.

वह रुंधे गले से बोला, 

आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया। आगे भी कभी किसी पर भी आपने मेरा चोर होना 

जाहिर न होने दिया। 

.

आपने कभी मेरे साथ फ़र्क़ नहीं किया। 

उसी दिन मैंने तय कर लिया था कि मैं 

आपके जैसा टीचर ही बनूँगा।

.

हाँ हाँ…मुझे याद आया। 

उनकी आँखों मे चमक आ गयी। 

फिर चकित हो बोले... 

.

लेकिन बेटा… मैं आजतक नहीं जानता था 

कि वह चोरी किसने की थी क्योंकि...

.

जब मैं तुम सबकी जेब देख कर रहा था तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं..!!

.

रविवार, 10 दिसंबर 2023

कहानी मनहूसियत की

 

कहानी - सोया भाग्य :

एक व्यक्ति जीवन से हर प्रकार से निराश था। लोग उसे मनहूस के नाम से बुलाते थे। एक ज्ञानी पंडित ने उसे बताया कि तेरा भाग्य फलां पर्वत पर सोया हुआ है, तू उसे जाकर जगा ले तो भाग्य तेरे साथ हो जाएगा। बस! फिर क्या था वो चल पड़ा अपना सोया भाग्य जगाने। रास्ते में जंगल पड़ा तो एक शेर उसे खाने को लपका, वो बोला भाई! मुझे मत खाओ, मैं अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा हूँ।

शेर ने कहा कि तुम्हारा भाग्य जाग जाये तो मेरी एक समस्या है, उसका समाधान पूछते लाना। मेरी समस्या ये है कि _मैं कितना भी खाऊं … मेरा पेट भरता ही नहीं है, हर समय पेट भूख की ज्वाला से जलता रहता है।_

मनहूस ने कहा– ठीक है।

आगे जाने पर एक किसान के घर उसने रात बिताई। बातों बातों में पता चलने पर कि वो अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा है, किसान ने कहा कि मेरा भी एक सवाल है.. अपने भाग्य से पूछकर उसका समाधान लेते आना … _मेरे खेत में, मैं कितनी भी मेहनत कर लूँ पैदावार अच्छी होती ही नहीं। मेरी शादी योग्य एक कन्या है, उसका विवाह इन परिस्थितियों में मैं कैसे कर पाऊंगा?_

मनहूस बोला — ठीक है।

और आगे जाने पर वो एक राजा के घर मेहमान बना। रात्री भोज के उपरान्त राजा ने ये जानने पर कि वो अपने भाग्य को जगाने जा रहा है, उससे कहा कि मेरी परेशानी का हल भी अपने भाग्य से पूछते आना। मेरी परेशानी ये है कि _कितनी भी समझदारी से राज्य चलाऊं… मेरे राज्य में अराजकता का बोलबाला ही बना रहता है।_
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मनहूस ने उससे भी कहा — ठीक है।

अब वो पर्वत के पास पहुँच चुका था। वहां पर उसने अपने सोये भाग्य को झिंझोड़ कर जगाया— _उठो! उठो! मैं तुम्हें जगाने आया हूँ। उसके भाग्य ने एक अंगडाई ली और उसके साथ चल दिया। उसका भाग्य बोला — अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा।_

अब वो मनहूस न रह गया था बल्कि भाग्यशाली व्यक्ति बन गया था और अपने भाग्य की बदौलत वो सारे सवालों के जवाब जानता था।

वापसी यात्रा में वो उसी राजा का मेहमान बना और राजा की परेशानी का हल बताते हुए वो बोला — _चूँकि तुम एक स्त्री हो और पुरुष वेश में रहकर राज – काज संभालती हो, इसीलिए राज्य में अराजकता का बोलबाला है। तुम किसी योग्य पुरुष के साथ विवाह कर लो, दोनों मिलकर राज्य भार संभालो तो तुम्हारे राज्य में शांति स्थापित हो जाएगी।_

रानी बोली — _तुम्हीं मुझ से ब्याह कर लो और यहीं रह जाओ। भाग्यशाली बन चुका वो मनहूस इन्कार करते हुए बोला — नहीं नहीं! मेरा तो भाग्य जाग चुका है। तुम किसी और से विवाह कर लो। तब रानी ने अपने मंत्री से विवाह किया और सुखपूर्वक राज्य चलाने लगी। कुछ दिन राजकीय मेहमान बनने के बाद उसने वहां से विदा ली।_

_चलते चलते वो किसान के घर पहुंचा और उसके सवाल के जवाब में बताया कि तुम्हारे खेत में सात कलश हीरे जवाहरात के गड़े हैं, उस खजाने को निकाल लेने पर तुम्हारी जमीन उपजाऊ हो जाएगी और उस धन से तुम अपनी बेटी का ब्याह भी धूमधाम से कर सकोगे।_

_किसान ने अनुग्रहित होते हुए उससे कहा कि मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ, तुम ही मेरी बेटी के साथ ब्याह कर लो। पर भाग्यशाली बन चुका वह व्यक्ति बोला कि नहीं! नहीं! मेरा तो भाग्योदय हो चुका है, तुम कहीं और अपनी सुन्दर कन्या का विवाह करो। किसान ने उचित वर देखकर अपनी कन्या का विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा।_

_कुछ दिन किसान की मेहमाननवाजी भोगने के बाद वो जंगल में पहुंचा और शेर से उसकी समस्या के समाधानस्वरुप कहा कि यदि तुम किसी बड़े मूर्ख को खा लोगे तो तुम्हारी ये क्षुधा शांत हो जाएगी।_

_शेर ने उसकी बड़ी आवभगत की और यात्रा का पूरा हाल जाना। सारी बात पता चलने के बाद शेर ने कहा कि भाग्योदय होने के बाद इतने अच्छे और बड़े दो मौके गंवाने वाले ऐ इंसान! तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा? तुझे खाकर ही मेरी भूख शांत होगी और इस तरह वो इंसान शेर का शिकार बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।

सच है —
यदि आपके पास सही मौका परखने का विवेक
और
अवसर को पकड़ लेने का ज्ञान  नहीं है तो भाग्य भी आपके साथ आकर आपका कुछ भला नहीं कर सकता।

रविवार, 3 दिसंबर 2023

खरगोश की कहानी

 

खरगोश की कहानी

सदियों से दुनिया को खरगोश और कछुए की कहानी सुनाई जा रही है ।
कछुए और खरगोश में दौड़ हुई । तेज़ दौड़ने वाला खरगोश हार गया । धीरे धीरे रेंगने वाला कछुआ जीत गया । दुनिया को सबक मिला कि Slow n Steady wins the race ....... चलते रहो चलते रहो .....
कभी मत रुको ...... चलते रहो ...... चरैवेति चरैवेति ......

पर आज तक किसी ने खरगोश से न पूछा कि उस दिन आखिर हुआ क्या था ?????
एक दिन मुझे मिल गया वो खरगोश .......एक पेड़ के नीचे लेटा ....... ऊँघता , अलसाता ।
मैंने पूछा , तुम वही हो न ???? जो उस दिन हार गया था कछुए से ?????

हाँ .......मैं वही हूँ ......

क्या हुआ था उस दिन ?

अरे कुछ नही यार । ये आलसी लापरवाह होने की कहानी झूठी है ।
मैं बेतहाशा दौड़ा चला जा रहा था । कछुआ बहुत बहुत पीछे छूट गया था । मुझे पता था मैं बहुत आगे हूँ ..... मैंने सोचा , इस पेड़ के नीचे दो घड़ी सुस्ता लेता हूँ ।
पिछली रात कायदे से सोया नही था ।
Competition की anxiety के कारण नींद ही न आई । बरसों से कछूए की कहानियां सुनाई जा रही थीं मुझे , वो बिना थके चल सकता है , सालों साल चल सकता है ......कभी नही थकता ...... ये ज़िन्दगी एक मैराथन रेस की तरह है ।
मैं उस कछुए को दिखाना चाहता था कि मैं भी तेज दौड़ सकता हूँ और बहुत दूर तक दौड़ सकता हूँ ।
इस पेड़ की छांव कितनी शीतल है ...... मैंने घास बिछा के एक नर्म गुदगुदा बिस्तर बनाया और उसपे लेट गया ....... लेटते ही आँख लग गई ।
स्वप्नलोक में पहुंच गया ।
वहां एक सन्यासी ध्यानमग्न बैठे थे ।
मुझे पास जान उन्होंने आँखें खोली ।
वो मुस्कुराए ।
कौन हो ?????
मैं खरगोश हूँ . दौड़ में हिस्सा ले रहा हूँ । दौड़ लगी हुई है ।
क्यों दौड़ रहे हो ?
जंगल को ये बताने के लिए कि मैं ही सबसे तेज़ दौड़ता हूँ .......
उससे क्या होगा ? तुम जंगल को क्यों बताना चाहते हो कि तुम बहुत तेज़ दौड़ते हो ??? इतना तेज दौड़ के क्या मिलेगा ???

सबसे तेज़ धावक का medal मिलेगा । इज़्ज़त शोहरत मिलेगी .....मान सम्मान होगा ....... पैसा मिलेगा । मैं अच्छा भोजन खाऊंगा ।

अच्छा भोजन तो आज भी है चारों ओर । देखो चारों तरफ कितनी हरियाली है । पेड़ पौधों पे फल फूल लदे हुए हैं ।

जंगल मुझे याद करेगा कि मैं सबसे तेज़ दौड़ने वाला खरगोश था ।

एक हज़ार साल पहले सबसे तेज़ दौड़ने वाले हिरण का नाम याद है तुम्हें ???? या सबसे बड़े हाथी का ??????
सबसे ताकतवर शेर का ?????

नही तो ......

आज तुम्हारा मुकाबला कछुए से है ।
कल हिरण से होगा
परसों घोड़े से .......
किस किस से दौड़ लगाओगे ?????
क्या सारी जिंदगी दौड़ते ही रहोगे ?????
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अच्छा आज की दौड़ जीतने के बाद क्या करोगे ?????

चैन की बंसी बजाऊंगा । उस विशाल पेड़ की घनी छांव में आराम की नींद सोऊंगा । भंवरे मुझे लोरियां सुनाएंगे । तितलियां गुनगुनाएँगी । मैं उस तालाब में बतख के साथ खेलूंगा ।
चैन की नींद तो तुम अब भी सो रहे हो .......उस बतख के साथ तो तुम अब भी खेल सकते हो ।

मेरी नींद खुल गई ।
सामने देखा तो पक्षी चहचहा रहे थे । मैं तालाब में कूद गया । मुझे बत्तखों ने घेर लिया । मछलियां मेरे साथ अठखेलियाँ करने लगी ।
तभी एक बतख ने याद दिलाया ......हे , तुम्हारी तो दौड़ लगी है न कछुए के साथ ........ तुमको तो दौड़ना है अभी .......

छोड़ो , कुछ नही रखा इस बेकार की दौड़ में .......
मुझे किसी के सामने कुछ prove नही करना .......
मुझे किसी से मुकाबला नही करना .......….
चलो तैरने चलें .........
इस तरह मैंने वो दौड़ छोड़ दी ।

कछुए वाली दौड़ मैं बेशक हार गया , पर ज़िन्दगी की दौड़ में जीत गया हूँ ।

इस दुनिया मे 7 Billion लोग हैं ।
हम किसी को खुश नही रख सकते ।
इस भरी दुनिया मे आप सिर्फ एक आदमी को खुश रख सकते हैं .......खुद को ।

दुनिया को खुश करने के लिए नही , स्वयं को खुश रखने के लिये जियो ।

Fb पे पढ़ी एक पोस्ट का हिंदी रूपांतरण  है ।
मूल रचना अंग्रेज़ी में है ।

शनिवार, 2 दिसंबर 2023

राजा राजेन्द्र चोल प्रथम

 

   हमारा गौरवशाली इतिहास

    इतिहासकारों ने हमारे  इतिहास को केवल 200 वर्षों में ही समेट कर रख दिया है जबकि उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि एक  राजा ऐसा भी था जिसकी सेना में  महिलाएं  कमांडर थी और जिसने अपनी  विशाल  नौकाओं वाली  शक्तिशाली  नौसेना की मदद से पूरे दक्षिण-पूर्व  एशिया पर कब्जा कर लिया था

राजा राजेन्द्र चोल प्रथम (1012-1044) -- वामपंथी इतिहासकारों के साजिशों की भेंट चढ़ने वाला हमारे इतिहास का एक महान शासक

राजा_राजेन्द्र_चोल,  चोल राजवंश के सबसे महान शासक थे उन्होंने अपनी विजयों द्वारा चोल सम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया था । राजेंद्र चोल एकमात्र राजा थे जिन्होंने न केवल अन्य स्थानों पर अपनी विजय का पताका लहराया बल्कि उन स्थानों पर वास्तुकला और प्रशासन की अद्भुत प्रणाली का प्रसार किया जहां उन्होंने शासन किया।

सन 1017 ईसवी में हमारे इस शक्तिशाली नायक ने सिंहल (श्रीलंका) के प्रतापी राजा महेंद्र पंचम को बुरी तरह परास्त करके सम्पूर्ण सिंहल(श्रीलंका) पर कब्जा कर लिया था ।

जहाँ कई महान राजा नदियों के मुहाने पर पहुँचकर अपनी सेना के साथ आगे बढ़ पाने का हिम्मत नहीं कर पाते थे वहीं राजेन्द्र चोल ने एक शक्तिशाली नेवी का गठन किया था जिसकी सहायता से वह अपने मार्ग में आने वाली हर विशाल नदी को आसानी से पार कर लेते थे ।

अपनी इसी नौसेना की बदौलत राजेन्द्र चोल ने अरब सागर स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया यहाँ तक कि अपने घातक युद्धपोतों की सहायता से कई राजाओं की सेना को तबाह करते हुए राजेन्द्र प्रथम ने जावा, सुमात्रा एवं मालदीव पर अधिकार कर लिया था ।

एक विशाल भूभाग पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद उन्होंने (गंगई कोड़ा) चोलपुरम नामक एक नई राजधानी का निर्माण किया था, वहाँ उन्होंने एक विशाल कृत्रिम झील का निर्माण कराया जो सोलह मील लंबी तथा तीन मील चौड़ी थी। यह झील भारत के इतिहास में मानव निर्मित सबसे बड़ी झीलों में से एक मानी जाती है। उस झील में बंगाल से गंगा का जल लाकर डाला गया।

एक तरफ आगरा मे शांहजहाँ के शासन के दौरान भीषण अकाल के बावजूद इतिहासकार उसकी प्रशंसा में इतिहास के पन्नों को भरने में लगे रहे दूसरी तरफ जिस राजेन्द्र चोल के अधीन दक्षिण भारत एशिया में समृद्धि और वैभव का प्रतिनिधित्व कर रहा था उसके बारे में हमारे इतिहास की किताबें एक साजिश के तहत खामोश रहीं ।

यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी है इसका प्राचीन नाम चोला झील था, यह सदियों तक अपने नाम से चोल की महानता को बयाँ करती रही, बाद में यह कलिंग सागर में बदल दिया गया गया और फिर ब्रिटिशर्स द्वारा बंगाल की खाड़ी में परिवर्तित कर दिया गया, वाम इतिहासकारों ने हमेशा हमारे नायकों के इतिहास को नष्ट करने की साजिश रची और हमारे मंदिरों और संस्कृति को नष्ट करने वाले मुगल आक्रांताओं के बारे में पढ़ाया, राजेन्द्र चोल की सेना में कमांडर के पद पर कुछ महिलाएं भी थी, सदियों बाद मुगलों का एक ऐसा वक्त आया जब महिलाएं पर्दे के पीछे चली गईं ।

हममें से बहुत से लोगों को चोल राजवंश और मातृभूमि के लिए उनके योगदान के बारे में नहीं पता है। मैंने इतिहास के अलग-अलग स्रोतों से अपने इस महान नायक के बारे में जाने की कोशिश की और मुझे महसूस हुआ कि अपने इस स्वर्णिम इतिहास के बारे में आपको भी जानने का हक है
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