सोमवार, 24 अप्रैल 2023

पंथ

 

वाह क्या जिज्ञासा है,,,

कल इंदौर से तीन जन आए थे धाम पर,,कहने लगे कि मत या पंथ और धर्म में क्या अंतर है और कौन सत्य है??

मैंने उन्हें सिर्फ इतना कहा कि आयुर्वेद में आयु को बढ़ाने वाली अनेकों बातें बताई हैं,, शिष्यों ने महर्षि चरक से पूछा कि आपने घृत का नाम नहीं लिया इनमें??  ऋषि ने कहा कि बाकी चीजें आयु को बढ़ाने वाली हैं लेकिन घृत तो स्वयं ही आयु है--आयुर्वै घृतम--घृत आयु का ही दूसरा नाम है,,
अब कोई अजीर्ण का या फैटी लिवर का या हार्ट का रोगी है,, वह कहने लगे कि झूठ,, बिल्कुल झूठ,, घृत आयु नहीं मृत्यु है,,खाया कि मरे,,

तो बात इतनी ही है बन्धु की घृत आयु है यह है धर्म,, पृथ्वी पर आप किसी को भी यह खिलाओ वह पुष्ट ही होगा,, यह सनातन सत्य है, यह ध्रुव सत्य है,,यह जागतिक सत्य है,,लेकिन जो अजीर्ण या फैटी लिवर या हार्ट रोगी है उसे मार डालेगा यह उसका व्यक्तिगत सत्य है,,तो व्यक्तिगत मान्यताएं जो होती हैं वह मत या पंथ होता है,,जागतिक सत्य जो होता है वह धर्म होता है जो मनुष्य मात्र पर लागू होता है,,

तो उन्होंने पूछा कि व्यक्ति पंथ में जुड़ते ही धर्म का बैरी क्यों हो जाता है?? मैंने उन्हें कहा कि अज्ञानता के कारण,, यही तो पंथ की शक्ति है,,मान लो अजीर्ण या फैटी लिवर के व्यक्ति ने घृत का विरोध किया तो दुनिया में जितने लोग अजीर्ण  फैटी लिवर हैं वे उसके समर्थन में आ जाएंगे,, कहेंगे यह व्यक्ति सत्य कह रहा है हम भी इसकी पुष्टि करते हैं,, बस यही उनकी धूर्तता है, यहीं उसका छल है जो सामान्य व्यक्ति समझ नहीं सकता,,

छल या धूर्तता यह है कि वे घृत पर दोषारोपण कर रहे हैं कि यह तो मार डालेगा,, जबकि स्वयं के बारे में यह नहीं बता रहे हैं कि घृत तो अमृत ही है, यह तो वास्तव में आयु ही है लेकिन हम अजीर्ण के रोगी हैं हम फैटी लिवर हैं हम  अयोग्य हैं इस महाताकतवर चीज को पचाने में,, हममें शक्ति नही रही शुद्धता या सही चीज को पचाने की,,

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*शनि-रवि-सोम प्रेरक प्रसंग । यदा कदा तत्कालीन प्रसंग - स्वास्थ्य - हास्य ...*    👉🏼
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बस इतनी सी बात है,, घी को कोसने लगते हैं अपना अजीर्ण या फैटी लिवर नहीं दिखता अपनी अयोग्यता अपनी  अपच नहीं दिखती,, ठीक यही पंथ या मत का फंडा होता है,, वह यह नहीं कहेगा कि धर्म जैसी अमूल्य मणि धारण करने की हममें सामर्थ्य नहीं रही, अब ऊर्ध्वारोहण की हममें शक्ति नहीं रही,, उल्टे कोसने लगेंगे की यह कोई धर्म है यह तो मार डालेगा,, और उनकी हां में हां मिलाने वाले रोगी जुड़ते और बढ़ते जाएंगे,, यही मत या पंथ के विस्तार का सीक्रेट है,, मत या पंथ शुद्धता पर नहीं रोग पर टिके होते हैं ।।
ॐ श्री परमात्मने नमः।             
  - *स्वामी सूर्यदेव*

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