सोमवार, 7 अगस्त 2023

सब भगवान का

 

चिन्तन की धारा - राजशेखर जी तिवारी द्वारा ....

टैन्जेबल_बेनेफिट्स
एक अंग्रेज सज्जन हैं जो कई वर्षों तक मेरे साथ मेरे कार्यालय में काम करते थे । आजकल वे फुटबॉल की कोचिंग करते हैं और पूरे विश्व में अलग अलग देशों में साइकिल भी चलाते हैं , किसी चैरिटी के लिये ।

जब वे युवा थे तो स्वयम् भी उन्नत शील फुटबॉल प्लेयर थे ।

भारत में वे राजस्थान तथा मुंबई से गोवा तक की साइक्लिंग कर चुके हैं । उनका साइंस का बैकग्राऊंड भी अतः हर वस्तु में उन्हें टैंजेबल बेनेफिट चाहिये होता है ।

साइकिल चलाने में स्थान स्थान पर पड़ाव होता है और कई पड़ाव उन्होंने भारत के छोटे गावों में भी किया और लगभग हर गाँवों में उन्हें मंदिर मिले और पूजा पाठ करते हुये लोग दिखे ।

बहुत दिनों बाद जब वे पुनः मुझसे मिले जो पूछने लगे कि यह गाँव गाँव में हिन्दु लोग जो मंदिर में फूल माला कीर्तन इत्यादि कर रहे होते हैं उसका “ टैंजिबिल बेनेफिट” क्या है ।

मैंने कहा कि आप फुटबॉल खेलते हो और यदि मैं आपके साथ खेलूँ तो आप सहजता से मुझसे बॉल छीन लोगे और ड्रिबल करके निकल जाओगे ?

तो उन्होंने कहा हाँ यह तो है । तो मैंने समझाया यह ड्रिबल पास करके निकल जाना आपकी टैंजेबल बेनेफिट हुयी ।

फिर जैसे आप एक क्लब में बच्चों को कोचिंग देते हैं तो बच्चों को नयी नयी स्किल सिखाते हैं । तो, वे बोले हाँ ।

मैंने पूछा उस समय आपको कैसा लगता है जब आप बच्चों को कुछ नया सिखा रहे होते हैं । ही सेड, आई फील प्राऊड । मुझे गर्व का अनुभव होता है ।

फिर मैंने पूछा यदि आप, लियोनल मेसी के सामने जायें तो क्या आपको अपनी स्किल पर गर्व का अनुभव होगा । अब उनकी घिग्घी बंद हो गयी !

मैंने उनको उसके बाद समझाया ..

कि मनुष्य के अंदर का गर्व बहुत शीघ्र ही अहंकार में बदल जाता है और अहंकारी व्यक्ति जीवन में फिर अपमानित होने लगता है क्योंकि वास्तविक चोट , अहंकार पर ही लगती है ।

व्यक्ति को धन का अहंकार , ज्ञान का अहंकार , रूप सौंदर्य का अहंकार , मैं फलनवे नेता जी को जानता हूँ का अहंकार , मैं ढिमकवा लेखक हूँ और फ़ेसबुक के द्वारा मैंने पचास हज़ार पुस्तकें बेंच दी हैं अर्थात् मैं बड़का लेखक हूँ का अहंकार हो जाता है ।

अब जैसे आपके फुटबॉल का अहंकार जैसे ही लियोनल मेसी का नाम आया और टूट गया उसका कारण आपकी रेखा के सामने एक बड़ी रेखा आ गयी ।

भारत में सनातन हिन्दू धर्मी जब मंदिर में जाता है
तो देखता है कि
संसार के सारा धन , सारा रूप , सारा सौदर्य , सारा ज्ञान और कृपा सब तो हमारे ईश्वर के अधीन है ।

वह एक ऐसी बड़ी रेखा के समक्ष जाता है कि अन्य सभी रेखायें छोटी पड़ जाती हैं ।

अपने अहंकार पर चोंट मारकर हम ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं और जैसे ही हमारा अहंकार छोटा होता है जीवन उन्नत दिखने लग जाता है और यही टैंजेबल बेनेफिट है ।

हमारी “रेखा” सीताराम हैं ।
हमारी “रेखा” राधाकृष्ण हैं ।
हमारी “रेखा” पार्वतीशंकर हैं ।

और जब तक हम स्वयम को इन अनंत रेखाओं के समक्ष रखेंगे जीवन उन्नत बनता जायेगा ।
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