सोमवार, 19 दिसंबर 2022

बहुमूल्य रत्न

 

*चिंतन की धारा.....*

 
परिचित पंकज झा जी के एक प्रसंग प्रस्तुतिकरण ने मन मोह लिया, थोड़े में बहुत कह दिया , चिंतन को दिशा देने वाला !!
उन्होंने बताया - मेरा थोड़ा-बहुत विश्वास ज्योतिष विद्या में है। स्वर्णिम समय था  यह विद्या सीखने का, पर चूक गए ।  वर्तमनातः इससे जुड़ा एक सुंदर प्रसंग।

एक विद्वान मित्र हैं अपने। हर विधा के विधायक अर्थात् पारंगत। शायद ही कोई विषय हो जिस पर वे साधिकार बात नहीं करते हों। मूलतः पेशातः वे पत्रकार ही हैं। तो पिछले दिनों जिज्ञासावश अपन ने भी अपने जन्म से संबंधित विवरण उन्हें भेज दिया। देर रात फोन आया। उन्होंने अनेक विश्लेषण के उपरांत दो उपाय बताये।

पहला - मां समान किसी स्त्री की सेवा सम्पूर्ण भक्ति भाव से करें। वे प्रसन्न होंगी तो अधिक और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। दूसरा - नीलम समान ‘नीली’ छः रत्ती मध्यमा अंगुली में धारण करना है। इन उपायों के बाद और कुछ करने की आवश्यकता नहीं।

अपन ने पूछा उनसे कि ‘नीलम समान’ का मंतव्य तो समझा कि वह अपेक्षाकृत काफी सस्ता और सुलभ होगा तो असली नहीं भी पहनें तो चलेगा। साथ ही इस जेम्स के कुछ दुष्प्रभाव भी संभावित होते हैं इसलिए ‘प्रतिकृति’ पहनना प्रथमतः उचित। किंतु …

किंतु क्या मां समान के बजाय ‘माँ’ ही हों तो कोई समस्या है? क्या यहां भी ‘नीलम-नीली’ विषय प्रासंगिक है? उन्होंने कहा कि बिल्कुल नहीं! कदापि नहीं। कथमपि नहीं। क्वचिदपि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि एकल परिवार के इस युग में क्योंकि यह अंडरस्टुड है कि ‘मां-पिता’ के संग नहीं होंगे, इसलिए मां समान स्त्री की पूजा को कहा। अन्यथा मां की पूजा हो, फिर और क्या चाहिये भला? फिर तो नीलम-नीली झंझट की भी आवश्यकता अधिक नहीं। शनि फिर क्या बिगाड़ सकते किसी जातक का भला? आदि अनादि।

मुझे स्मरण हो आया रामायण का प्रसंग। स्वायंभुव मनु और सतरूपा ने भगवान विष्णु की तपस्या की। प्रसन्न होने पर भगवान से यह मांगा कि ‘उन्हीं के समान’ पुत्र हो दंपत्ति को। राजीव नयन ने कहा  - आपु सरिस खोजौं कहँ जाई, नृप तव तनय होब मैं आई! अर्थात् अपने समान मैं कहां खोजने जाऊंगा भला, मैं स्वयं आपके पुत्र के रूप में आऊंगा।

आगे की कथा तो मानवता जानती ही है। श्रीराम का जन्म और मर्यादा की पुनर्स्थापना तक का प्रसंग….. हालांकि पुत्रों के कुपुत्र होने की तो अब श्रृंखला है, पर क्वचिदपि कुमाता न भवति की शास्त्रोक्त आश्वासन आज तक निरंतर और अनवरत कायम है। तो मां समान खोजने के बजाय माँ ही हों तो क्या सर्वोत्तम नहीं होगा? है न?

बड़ी संख्या में समाज में ऐसे ज्योतिषियों की आवश्यकता है जो ऐसे उपाय अवश्य बतायें जातक को कि ग्रह शांति चाहिये तो नीलम भले न पहन पायें, सोने में नीली भी पहनना छोड़ दें… पर मातृ सेवा मात्रानाम नीलम धारण फल लभेत!  🙏
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